Book Title: Bhagwati Sutra Part 02
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 576
________________ पृष्ठ सूत्र पंक्ति ८७० २९ ३. " ८७१ ३० ५ ८७१ " " " ८७१ ९ ८७१ ११ ८७१ ३० १४ ३१ ३.१ ३२ ८७१ :: 333 ८७२ ३० : " ८७३ ३० ७ ३० " ३२ ३४ २४ ३४ " " २६ " " ३६ १,२ ३८ 59 m ४० सर्वत्र ४२ ८७३ ४४-४० १ २,३ था ? ५. ६. २ ३ ܡ ver : mu ८७२ ८७२ ३६ ४-६ ८ ९ २ ३ ३ ३ २ له الله الله ३ अशुद्ध अनन्तर उपपत्र कोई नैरयिक था......? पृच्छा। (भ. २६ / १ ) नहीं हैं। - तिर्यग्योनिक जीव नो-संज्ञोपयुक्त वैमानिक देव में नैरयिक पाप की वक्तव्यता था......? पृच्छा अनन्तर उपपन्न - नैरयिक-जीव ने ३ (भ. २६ / २९ ) । इसी प्रकार (उपपत्र) वैमानिक देवों कृष्णपाक्षिक मनुष्य में तृतीय भंग शुद्ध (अनन्तर उपपन्न) कोई (नैरयिक) था (भ. २६ / १ ) पृच्छा। नहीं है। तिर्यग्योनिक-जीवों नोसंज्ञोपयुक्त वैमानिक देवों में नैरयिकों पाप (भ. २६/१६) की वक्तव्यता था-पृच्छा (अनन्तर उपपन्न-नैरयिक-जीव ने) था ? (भ. २६ / २९ ) । इसी प्रकार (अनन्तर उपपन्न) वैमानिक देव (अनन्तर उपपन्न) कृष्णपाक्षिक मनुष्यों में तृतीय भंग (वक्तव्य है)। था-पृच्छा था.....? पृच्छा परम्पर उपपन्नक किसी नैरयिक जीव (परम्पर उपपत्रक) किसी (नैरयिक ने पाप कर्म का बंध किया था। प्रथम जीव) ने (पाप कर्म का बंध किया उद्देशक की वक्तव्यता थी वैसे | था) ...... प्रथम उद्देशक (भ. २६ / १६-२७) (उक्त था), वैसे है यावत् देवों के अनाकारनैरयिक जीव था-पृच्छा था...... इस प्रकार ? (अनन्तरावगाढ-नैरयिक-जीव) -उद्देशक (भ. २६ / २९-३२) उक्त है, वैसे ही अनन्तरावगाढ-नैरयिक- आदिक जीव भी यावत् वैमानिकदेव न हीन और न अधिक वक्तव्य है। है। यावत् देव और अनाकारनैरयिक जीव था.....? पृच्छा था, इसी प्रकार अनन्तरावगाढ नैरयिक जीव -उद्देशक की वक्तव्यता, वैसे ही अनन्तरावगाढ-नैरयिक जीव की भी न हीन और न अधिक वक्तव्यता (अनन्तरावगाढ)नैरयिक आदिक जीव यावत् (अनन्तरावगाढ) - वैमानिक देव तक वक्तव्यता (भ. २६ / २९-३२) उद्देशक की वक्तव्यता है। (भ. २६/३४) वही था.....? पृच्छा था.....? पृच्छा - उद्देशक की वक्तव्यता है, भ. २६/३४) वही -उद्देशक की वक्तव्यता है, भ. २६ / २९-३२) वह जैसे उद्देशक (भ. २६ / ३४) (उक्त है), वहा था-पृच्छा था- पृच्छा -उद्देशक (भ. २६ / ३४) (उक्त है). वहा -उद्देशक है (भ. २६ / २९-३२) (उक्त है), वही जैसा पृष्ठ सूत्र पंक्ति ८७३ ४६ ४,५ ८७३ ४८ ८७४ सर्वत्र ८७४ ५० ८७४ 40 ८७४ ८७४ === :: 55 ८७४ " " ८७४ " ८७५ ८७५ " " " " ८७५ " = *** = " (दोनों बार) " ५१ २,३ ५२ ५२ ५२ ==== " ५३ ५२ २ 23 ५४ अशुद्ध -उद्देशक की वक्तव्यता है, (भ. २६ / ३४) वैसा ३, ४ उद्देशक की वक्तव्यता है। (भ. २६ / ३४) वैसे था.....? पृच्छा अचरम-नैरयिक जीव ने इसी उद्देशक में (भ. २६ / १-२८) भंग की सर्वत्र तिर्यग्योनिक अचरम-मनुष्य ५४ २ ३ ******* २ * ~~~ŏ १ ३. २ ७-८ अचरम वानमन्तर, ज्योतिषिक, वैमानिक देवों की नैरयिक की " ६ ८ ८ ३ ३. ३-४ ६,७ ९ १० था......? प्रकार जैसे प्रथम वैसे ही बतलाना चाहिए, १४ १५ १७ १८. २० था० ? प्रकार प्रथम बतलाना चाहिए, अचरम वानमन्तर, ज्योतिषिक, - वैमानिक देव नैरयिकों (भ. २६/ ५०) की भांति (अचरम-नैरयिक के) भांति (भ. २६ / ५० ) अचरम-नैरयिक के -कर्म-बंध की भांति (भ. २६/५०) कर्म-बन्ध (भ. २६ / ५० ) की भांति वक्तव्यता, वक्तव्यता वक्तव्यता (वक्तव्यता) -देव, इतना -देवों की (वक्तव्यता), इतना मनुष्यों मनुष्य अचरम (अचरम विषय में विषय में) कर्म की वक्तव्यता है, (भ. २६ / कर्म का बन्ध (भ. २६/५०-५३) ५०-५३) (उक्त है), वक्तव्य यावत् वैमानिक वक्तव्यता। (वक्तव्य है) यावत् वैमानिक (वक्तव्यता) । वनस्पतिकायिक जीवों वनस्पतिकायिक जीव वायुकायिक- जीव में वायुकायिक-जीवों में अचरम द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और अचरम द्वीन्द्रियों, त्रीन्द्रियों और चतुरिन्द्रिय में चतुरिन्द्रियों में १० वक्तव्यता। इतना १२ पञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिक के १३, १४ वक्तव्यता । शुद्ध -उद्देशक है (भ. २६/३४) उक्त है, वैसा ही -उद्देशक है (भ. २६ / ३४) उक्त है, वैसा ही अचरम मनुष्य कषाय रहित (इन तीन पदों में अयोगी ( इन तीन पदों की -देव में अचरम-नैरयिक आदि सभी सभी जीवों में वक्तव्यता । था- पृच्छा ( अचरम नैरयिक जीव) ने.....इसी उद्देशक (भ. २६/१-२८) में भंग बतलाए गए थे, उनकी सर्वत्र तिर्यग्योनिकों तक। (अचरम-मनुष्य) (वक्तव्यता), इतना पञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिकों के (वक्तव्य हैं)। अचरम मनुष्यों कषाय रहित (-इन तीन पदों में अयोगी ( इन तीन पदों की -देवों में अचरम-नैरयिकों आदि सभी जीवों में (वक्तव्यता) । पृष्ठ सूत्र पंक्ति ८७६ ८७६ ८७७ " ८७७ १ ८७७ २ " ८७८ ८७८ ८७८ ८७८ " " " 12 " " ८७९ " १ ४ जाव दोनों बार ८८० " ८८० २ २ २ ३ " ३ २ ५. ។ ५ " ५ " ५. " " " ८७९ ३ " " ४ ५ दोनों बार २ ४. 中 सर्वत्र जीवों २ २ ३ ४ ६ ३ ५. ६ ७ ९ " १ ३ जीव *-**-.. १. ६, ७ जीवों २ जो वक्तव्यता निरवशेष वक्तव्यता जो वक्तव्यता है, वही निरवशेष उसी वक्तव्य है। उसी किया था ? पूर्ववत् वक्तव्यता । -जीवों कृष्णपाक्षिको, शुक्लपाक्षिको नैरयिकों ने तिर्यक् योनिकों में इसी प्रकार आठ अशुद्ध शतक २७ अनन्तर उपपन्न - नैरयिकों आठ भंग शतक २८ वक्तव्यता। नव संगृहीत यह उद्देशक वक्तव्य है। क्रम से जैसे बन्ध-शतक अचरम उद्देशक ये वक्तव्य हैं १ जीवों जीव कृष्णपाक्षिक, शुक्लपाक्षिक (नैरयिकों) ने तिर्यग्योनिकों में इसी प्रकार (भ. २८/१) आठ -जीवों तक -जीवों जीव से लेकर वैमानिक पर्यवसान ये जीव (समुच्चय) से प्रारम्भ कर वैमानिक पर्यन्त ये (अनन्तर उपपन्न-नैरयिकों) ने आठ भंग (भ. २८/१) | नैरयिकों के जिसमें पर्यवसान नैरयिकों के विषय में जिसमें पर्यन्त | यावत् वैमानिक इतना यावत् वैमानिकों के, इतना बन्धि शतक (भ. २६वां शतक) बन्धि शतक (भ. २६ वें शतक) की की ३५ उपपन्न हैं। १२ २ ३ कथनीय है जा रहा है यावत् पूर्ववत् । शतक २९ ३ नैरयिकों पूर्ववत् वक्तव्यता (जीव) २ एक साथ किया था....? पृच्छा (जीव) शुद्ध (जीवों) किया था ? इसी प्रकार (भ. २८/१) (वक्तव्यता) । वक्तव्यता)। यह भी नव संग्रहित उद्देशक (भ. २६ / ३४ ) वक्तव्य है। क्रम से जैसे बन्धि-शतक अचरम उद्देशक । (वक्तव्य हैं) (जीवों) (जीवों) उपपन्न हैं, जा रहा है पूर्ववत् । पूर्ववत् (भ. २९/१) (वक्तव्यता), कथनीय हैं। एक साथ किया था-पृच्छा (भ. २९/१) (नैरयिकों)

Loading...

Page Navigation
1 ... 574 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590