Book Title: Bhagwati Sutra Part 02
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 572
________________ पृष्ठ | सूत्र पंक्ति ८३७ | ४३१] २ पृष्ठ पृष्ठ | सूत्र पंक्ति अशुद्ध अशुद्ध गौतम! अन्तर - .......? पृच्छा | १ पृष्ठ | सूत्र पंक्ति - अशुद्ध ८४० सं. गा. ४ संयत है। | ६ संयत है। ८ न्यून है। | संयत है। २ | गौतम! सवेदक २ | गौतम ! सराग २ गौतम ! स्थित-कल्प -पृच्छा वक्तव्यता यावत् संयत देव-रूप भन्ते! शद्ध । |संयत है ।।२।। संयत है ॥३॥ न्यून है ।।४।। संयत है ।।५।। गौतम! (सामायिक-संयत) सवेदक गौतम ! (सामायिक-संयत) सराग गौतम! (सामायिक-संयत) स्थित वक्तव्यता। यावत् संयत-देव रूप ......? पृच्छा गौतम! अविराधना कषायकुशील की वक्तव्यता - ३ गौतम! जघन्यतः ५ काल। ४ ३ कल्प गौतम ! (स्नातक अप्रतिपाती होता है | इसलिए) अन्तर (अनेक जीवों की अपेक्षा से काल का अन्तर) भंते! गौतम ! ((अनेक) पुलाक के पुलाक होने में) जघन्यतः काल (का अंतर होता है)। गौतम! (बकुश-निर्ग्रन्थों के) गौतम ! ((अनेक) निर्ग्रन्थों के काल का अन्तर) जघन्यतः छह मास (होता है)। गौतम! (पुलाक के) तीन गौतम ! (बकुश के) पांच गौतम ! (कषाय-कुशील के) छह गौतम ! (निर्ग्रन्थ के) एक गौतम ! बकुश-निर्ग्रन्थों के गौतम! जघन्यतः ३ गौतम! जघन्यतः - १ |....? पृच्छा | गौतम! स्थित-कल्प | गौतम! जिन | गौतम ! पुलाक २ गौतम! पुलाक -पृच्छा गौतम! (छेदोपस्थापनीक-संयत) गौतम! (सामायिक-संयत) जिन गौतम ! (सामायिक-संयत) पुलाक गौतम! (परिहारविशुद्धिक-संयत) सागरोपम। गौतम! जघन्यतः गौतम!(सामायिक-संयत) अविराधना इस प्रकार कषायकुशील की भांति (वक्तव्य है) गौतम! (देवलोकों में उपपद्यमान सामायिक-संयत की स्थिति) जघन्यत सागरोपम (प्रज्ञप्त है)। गौतम! (देवलोकों में उपपद्यमान परिहारविशुद्धिक की स्थिति) जघन्यतः सागरोपम (प्रज्ञप्त है)। (सामायिक-संयत के) (सूक्ष्मसम्पराय-संयत के) पुलाक - - - - छह मास। गौतम! तीन २ गौतम! पांच गौतम! छह २ गौतम! एक |....? पृच्छा २ गौतम! एक ३ गौतम! लोक २ गौतम! लोक २ अवगाहन की सागरोपम। सामायिक-संयत के सूक्ष्मसम्पराय-संयत के ....? पृच्छा गौतम! अजघन्य - २ गौतम ! (स्नातक के) एक गौतम! (पुलाक) लोक गौतम ! (स्नातक) लोक अवगाहन (भ. २५/४४०,४४१) २ | ३ गौतम! अनन्त गौतम! स्यात् - गौतम! (यथाख्यात-संयत) अजघन्यगौतम ! (सामायिक-संयत के) अनन्त गौतम! ((एक) सामायिक-संयत सजातीय संयम-स्थानों के संयोजन की अपेक्षा दूसरे सामायिक-संयत के चरित्र-पर्यवों से) स्यात् " |४९२, ३ ८४५ ४९२ | ४ ......पृच्छा गौतम! स्यात् २ गौतम! क्षायोपशमिक २ गौतम! औपशमिक गौतम! क्षायिक गौतम! प्रतिपद्यमान ४ पुलाक गौतम! प्रतिपद्यमान अपेक्षा जघन्यतः १ |.... पृच्छा २ गौतम! प्रतिपद्यमान ४ अपेक्षा जघन्यतः निग्रन्थ अपेक्षा से स्यात् स्नातक अपेक्षा जघन्यतः गौतम! दो ....? पृच्छा गौतम! दो गौतम! दो २ गौतम! दो ४५८ २ गौतम! दो अनुत्तर चातुर्याम सं. गा. २ सामायिक-संयत है। ४ | षट्स्थान पतित | ......) पृच्छा गौतम! हीन २ | गौतम ! पुलाक गौतम ! (यथाख्यात-संयत) पुलाक ३ | गौतम! प्रतिसेवक गौतम! (सामायिक-संयत) प्रतिसेक्का |३,४ | तो क्या मूलगुण-प्रतिषेवक होता है तो क्या मूलगुण-प्रतिषेवक होता है? । १ |....? पृच्छा -पृच्छा | २ | गौतम ! प्रतिसेवक गौतम! (परिहारविशुद्धिक) प्रतिषेवक २ गौतम! दो गौतम ! (सामायिक-संयत) दो। |४.५ | हैं (भ. ८/१०५)। हैं जैसा ज्ञानोद्देशक (भ. ८/१०५) में (उक्त है)। | २ |सामायिक-संयत (सामायिक-संयत) | २ | गौतम! जघन्यतः गौतम! (परिहारविशुद्धिक-संयत) जघन्यतः २ गौतम ! जघन्यतः गौतम ! (यथाख्यात-संयत) जपन्यतः | २ सामायिक-संयत (सामायिक-संयत) | २ | होता है ? पुलाक होता है ? (सामायिक-संयत) पुलाक ३ | गौतम! द्रव्यलिंग गौतम! (परिहारविशुद्धिक-संयत) द्रव्यलिंग २ |सामायिक-संयत (सामायिक-संयत) | गौतम! जन्म गौतम! (सामायिक-संयत) जन्म नो-अवसर्पिणि-नो-उत्सर्पिणि नोअवसर्पिणि-नोउत्सर्पिणि ३ गौतम! अवसर्पिणि गौतम! (सामायिक-संयत) अवसर्पिणि .......? पृच्छा २ गौतम! अवसर्पिणि गौतम! (परिहारविशुद्धिक-संयत) अक्सर्पिणि २,३ नो-अवसर्पिणि-नो-उत्सर्पिणि नोअवसर्पिणि-नोउत्सर्पिणि यदि अवसर्पिणि | यदि (वह) अवसर्पिणि २ गौतम ! देव गौतम ! (सामायिक-संयत) देवसामायिक-संयत (सामायिक-संयत) ४ | जैसे कषाय कुशील की वक्तव्यता | कषायकुशील की (भांति) (वक्तव्य गौतम ! (पुलाक) क्षायोपशमिक गौतम ! (निर्ग्रन्थ) औपशमिक गौतम ! (स्नातक) क्षायिक गौतम ! (पुलाक) प्रतिपद्यमान (पुलाक) गौतम ! (बकुश) प्रतिपद्यमान अपेक्षा (बकुश) जघन्यतः -पृच्छा गौतम! (कषाय-कुशील) प्रतिपद्यमान अपेक्षा (कषाय-कुशील) जघन्यतः (निर्ग्रन्थ) अपेक्षा (निर्ग्रन्थ) स्यात् (स्नातक) अपेक्षा (स्नातक) जघन्यतः गौतम ! (सामायिक-संयत) दो -पृच्छा गौतम! (छेदोपस्थापनीय-संयत) दो गौतम ! (परिहारविशुद्धिक-संयत) दो गौतम ! (सूक्ष्मसंपराय-संयत) दो गौतम ! (यथाख्यात-संयत) दो अनुत्तर चतुर्याम सामायिक-संयत है ।।१।। गौतम! (सामायिक-संयत विजातीय संयम-स्थानों के संयोजन की अपेक्षा छेदोपस्थापनिक-संयत के चरित्र पर्यव से) स्यात् षट्स्थानपतित -पृच्छा गौतम! (सामायिक-संयत विजातीय संयम-स्थानों के संयोजन की अपेक्षा सूक्ष्मसम्पराय संयत के चरित्र-पर्यवों से) हीन २ ३ ......) पृच्छा गौतम! हीन गौतम !(सूक्ष्मसम्पराय-संयत विजातीय संयम-स्थानों के संयोजन की अपेक्षा सामायिक-संयत के चरित्र-पर्यवों से) हीन वाले (से) स्यात् यदि (वह) हीन यदि (वह) अभ्यधिक गुणा अभ्यधिक है। | ५ वाले, स्यात् | ५ | यदि हीन | यदि अभ्यधिक गुणा अभ्यधिक। |८४६

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