Book Title: Bhagwati Sutra Part 02
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 570
________________ पृष्ठ | सूत्र पंक्ति अशुद्ध चारित्र-पर्यवों की दृष्टि से गौतम! हीन ८२८/३५१ | ३ पृष्ठ | सूत्र पंक्ति अशुद्ध ८२३ ३१४, १ |.....? पृच्छा -पृच्छा ३१६ ३१८] | | २ |स्नातक एक केवल-ज्ञान में होता है | (स्नातक) एक केवल-ज्ञान से सम्पन्न होता है। | २ गौतम ! जघन्यतः गौतम ! (बकुश) जघन्यतः | २ गौतम! जघन्यतः गौतम! (कषाय कुशील) जघन्यतः गौतम! स्नातक गौतम ! (स्नातक) | २ गौतम! तीर्थ गौतम! (पुलाक) तीर्थ १ ......? पृच्छा -पृच्छा (८२६ | ४ |की वक्तव्यता ३५२ १ | अपेक्षा पुलाक | ३५२| ३ | गौतम! हीन | २ पृष्ठ | सूत्र | पंक्ति अशुद्ध ८२६ | ३३३| ३ | गौतम! जन्म गौतम ! (बकुश) जन्म ३३४| १ | यदि (बकुश) यदि ८२६ ३३४ ३ | गौतम! जन्म गौतम ! (बकुश) जन्म ८२६ ३३४/३-४ | पुलाक की भांति वक्तव्यता (भ. पुलाक (भ. २५/३३०) की भांति २५/३३०) की (वक्तव्य है)। ३३४ ५ पुलाक की पुलाक (भ. २५/३३०) ८२६ ३२४६ होता (भ. २५/३३०)। होता १ यदि नो-अवसर्पिणी-नो-उत्सर्पिणी (बकुश) यदि नोअवसर्पिणी नोउत्सर्पिणी २ | गौतम! जन्म गौतम ! (बकुश) जन्म ३ -निर्ग्रन्थ की -निर्ग्रन्थ (भ. २५/३३१) ३३५/३-४ है (भ. २५/३३१)। नो-अवसर्पिणी-नो-उत्सर्पिणी नोअवसर्पिणी-नोउत्सर्पिणी ३३५/६ वक्तव्यता । केवल (वक्तव्य हैं), गौतम! देव गौतम ! (पुलाक) देव | देव-गति (पुलाक) देव-गति होता है तो होता हुआ तो ४ | गौतम! भवनपति गौतम! (पुलाक) भवनपति | गौतम! सिद्धि गौतम! (स्नातक) सिद्धि | होता है तो क्या वह इन्द्र होता हुआ क्या इन्द्र | तावत्रिंशक-देव तावत्रिंशक-देव | गौतम! अविराधना गौतम! (पुलाक) अविराधना १ |.....? पृच्छा पृच्छा ३४१, ३४३ | १ | बकुश के | २ | चारित्र-पर्यवों से पृच्छा क्या गौतम! स्यात् चरित्र-पर्यवों से गौतम! (एक पुलाक विजातीय स्थान वाले अन्य बकुश के सत्रिकर्ष अर्थात संयोजन से चरित्र-पर्यवों से) हीन की भी (वक्तव्यता) अपेक्षा दूसरे पुलाक गौतम ! (एक बकुश भिक्षु विजातीय संयम-स्थानों के संयोजन की अपेक्षा दूसरे पुलाक भिक्षु के चरित्र-पर्यवों से हीन बकुश भिक्षु के चरित्र-पर्यवों से पृच्छा (क्या गौतम ! (एक बकुश भिक्षु सजातीय संयम-स्थानों के संयोजन की अपेक्षा दूसरे बकुश भिक्षु के चरित्र-पर्यवों से) स्यात् है (भ. २५/३५०)। चरित्र-पर्यवों से क्या हीन है? गौतम! (एक बकुश भिक्षु विजातीय संयम-स्थानों के संयोजन की अपेक्षा प्रतिषेवणा कुशील के चरित्र-पर्यवों से | षट्स्थान स्थानों के संयोजन है (भ. २५/३५०)। चारित्र-पर्यवों से क्या हीन है? गौतम! षट्स्थान |८२९| ३५४ ३ 200 ३५५/ १ स्थानों संयोजना | २ चारित्र चरित्र : : ३४५ में उत्पन्न अभ्यधिक है? ३ | गौतम! हीन ३२० २ गौतम ! तीर्थ गौतम ! (कषाय कुशील) तीर्थ ३२१/ १ (कषाय कुशील) यदि | गौतम ! द्रव्यलिंग गौतम ! (पुलाक) द्रव्यलिंग गौतम! औदारिक गौतम ! (पुलाक) औदारिक |......? पृच्छा गौतम! तीन गौतम ! (बकुश) तीन | यदि तीन यदि (वह) तीन ३ सम्पन्न होते हैं। संपन्न होता है। ४ तेजस् तेजस गौतम! तीन गौतम ! (कषाय-कुशील) तीन शीर्षक | क्षेत्र-पद ६] २ गौतम! जन्म गौतम ! (पुलाक) जन्म २ गौतम! जन्म गौतम ! (बकुश) जन्म ४ में भी उत्पन्न २,४ अवसर्पिणी-नो-उत्सर्पिप्णी अवसर्पिणी-नोउत्सर्पिणी ३ गौतम! अवसर्पिणी गौतम! (पुलाक) अवसर्पिणी १ | यदि | (पुलाक) यदि २ दुःषम-सुषमा दुष्यम-सुषमा ४ | गौतम ! जन्म | गौतम ! (पुलाक) जन्म (पुलाक) यदि ४ गौतम! यदि गौतम ! (पुलाक) यदि यदि नो-अवसर्पिणी-नो-उत्सर्पिणी | (पुलाक) यदि नोअवसर्पिणी नोउत्सर्पिणी ४ गौतम! जन्म गौतम ! (पुलाक) जन्म १ .....? पृच्छा -पृच्छा २ गौतम! अवसर्पिणी गौतम ! (बकुश) अवसर्पिणी २,३ नो--अवसर्पिणी-नो-उत्सर्पिणी नोअवसर्पिणी-नोउत्सर्पिणी (बकुश) यदि १ है ?.....पृच्छा है-पृच्छा । ३३५ गौतम ! अविराधना २ | गौतम! अविराधना नहीं होता यावत् ३ नहीं होता (भ. २५/३३९)। गौतम! जघन्यतः पृच्छा (क्या हीन है ? तुल्य है? अभ्यधिक है?) गौतम! (एक बकुश भिक्षु विजातीय संयम-स्थानों के संयोजन की अपेक्षा निर्ग्रन्थ के चरित्र-पर्यवों से) हीन में वही | ७ में यही ८ में है वही बतलानी चाहिए, में बतलाई गई थी (भ. २५/३५१३५२) चरित्र-पर्यवों से २ चारित्र-पर्यवों से.....? गौतम! (कषाय-कुशील) अविराधना गौतम! (निर्ग्रन्थ) अविराधना नहीं होता (भ. २५/३३९) यावत् नहीं होता। गौतम ! (देवलोक में उपपद्यमान पुलाका की स्थिति) जघन्यतः सागरोपम होती है। गौतम ! (बकुश) जघन्यतः गौतम! (कषाय-कुशील) जघन्यतः गौतम! (निर्ग्रन्थ) अजघन्य गौतम ! (पुलाक के) असंख्येय गौतम ! (निर्ग्रन्थ के) अजघन्य गौतम ! (पुलाक के) अनन्त के सत्रिकर्ष अर्थात् संयोजन गौतम ! (एक पुलाक भिक्षु सजातीय संयम-स्थानों के सन्निकर्ष अर्थात् संयोजन की अपेक्षा दूसरे पुलाक भिक्षु के चरित्र-पर्यवों से) स्यात् ८२९ | ३५६ ३ |सागरोपम की। २ गौतम ! जघन्यतः २ गोतम! जघन्यतः गौतम ! अजघन्य गौतम! असंख्येय २ गौतम ! अजघन्य २ गौतम ! अनन्त | के संयोजन ३ | गौतम ! स्यात् गौतम! हीन ८२९| ३५७/ ३ गौतम! हीन गौतम! (एक निर्ग्रन्थ विजातीय संयम स्थानों के संयोजन की अपेक्षा पुलाकभिक्षु के चरित्र-पर्यवों से) हीन । गौतम ! (एक निर्ग्रन्थ सजातीय संयम| स्थानों के संयोजन की अपेक्षा पुलाका भिक्षु के चरित्र-पर्यवों से) हीन गौतम ! (एक निर्ग्रन्थ विजातीय संयम स्थानों के संयोजन की अपेक्षा स्नातक के सन्निकर्ष से) हीन ३५० ८२९| ३५८ ३ गौतम! हीन ३३३

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