Book Title: Bhagwati Sutra Part 02
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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सूत्र पंक्ति पृष्ठ
७२५
९९
२
७२५ ९९ ७ १०० २-४
"
७२६ १०३ |
७२७ १०७
७२७ १०८ | ७२७ १०८
७२६ १०६ ४. पूर्ववत् यावत् ७२६ १०६ १० नैरयिक स्थिति और कायसंवेध ज्ञातव्य है।
औधिक की भांति वक्तव्य है। (भ. २४/१०५) कायसंवेध है। केवल अनुबन्ध की
सदृश
२
५.
३.
१०८ | ५
७३१ १२२
७३१ | १२३ |
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७२७ १०८ | ५.
७२७ १०८|| ६ ७२७ १०८ १० ७२८ १०८ १८ ७२८ ११० ७२८ ११० | ४ ७२८ | १११ | २ ७२८ | ११२ | ७२८ ११२ | ३ ७२९ ११३ १२ ७२८ ११४ ६ ७२८ ११४ ७
२
७२८ ११४ १३
७३०
७३१ | १२३ |
७३१ | १२३|
७३२ १२४
११८ | २ ११९ शीर्षक ७३१ | १२१ | १ ७३१ १२१ | ९. ७३१ १२१ १० ७३१ १२१ १३
३
अशुद्ध
शुद्ध
है। वही वक्तव्यता (भ. २४/९५) है, वही वक्तव्यता (भ. २४/९५
३
१
९६),
हे यावत्
है (भ. २४ / ९५-९६) यावत् वक्तव्यता । (भ. २४/९९) केवल वक्तव्यता (भ. २४/९९), इतना इतना विशेष है
काल की अपेक्षा........ गमक की भांति वक्तव्यता,
विशेष है-काल की अपेक्षा........ गमक (भ. २४ / १०२) की भांति
४
७
१.
नैरयिक स्थिति
वक्तव्य है।
अष्टम........ होता है। (भ. २४ /७९) पूर्ववत् यावत् का) काल
(भ. २४ / ११० ) इतना (भ. २४ / ११० ) इतना ज्ञातव्य है । षष्ठगमक नैरयिक स्थिति ज्ञातव्य है। -सागरोपम।
(भ. २४/८-५३) इतना विशेष पंचेन्द्रिय- (यौगलिकों)
उपपन्न होते हैं..... पृच्छा भी दो
वक्तव्यता
पूर्ववत् (भ. २४/९६) यावत् नैरयिक स्थिति और काल की अपेक्षा कायसंवेध ज्ञातव्य हैं। औधिक (भ. २४/१०५, १०६) की भांति (वक्तव्य है)। कायसंवेध
अनुबन्ध भी
सदृश (भ. २४/१०५, १०६), नैरयिक- स्थिति
ज्ञातव्य हैं।
-दो
अपेक्षा से दो भव ग्रहण, काल की अपेक्षा से ७३१ १२२ २,३ होता है, वही वक्तव्या, (भ. २४/ होता है वही वक्तव्यता (भ. २४/ १२१) ज्ञातव्य है ।
- तिर्यग्योनिक ( यौगलिक)
उपपन्न होता है। यही वक्तव्यता,
करता है। शेष पूर्ववत् ।
जघन्य काल स्थिति
यह पैरा पिछले पैरे के साथ है।
होता है (भ. २४ /७९) । पूर्ववत् (भ. २४/१०६) यावत् का)। काल
(भ. २४ / ११०), इतना (भ. २४ /११०), इतना ज्ञातव्य हैं।
षष्ठ गमक नैरयिक- स्थिति
ज्ञातव्य हैं। -सागरोपम।)
(भ. २४/८-५३), इतना विशेष पंचेन्द्रिय (यौगलिकों) उपपन्न होते हैं-पृच्छा। दोनों
-दोनों
अपेक्षा दो भव-ग्रहण, काल की अपेक्षा
१२१), ज्ञातव्य है। तिर्यग्योनिक (यौगलिक ) ) उपपन्न होता है वही वक्तव्यता, करता है, शेष पूर्ववत् । जघन्य काल की स्थिति
पृष्ठ सूत्र पंक्ति
७३२ १२६ २-३ ७३२ १२६ | ३ ७३२ १२७ || १ १२७ ।
३
१२७ ४
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11
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१
11
२,३ ७३२ | १३० | १ ७३२ | १३० | १. ७३३ | १३० | ७३३
२
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|७३३ | १३१
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७३४ १३६
७३४
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१२७ |
१२८
७३५
१२९
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७३४ १३६
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"
तिर्यग्योनिकों ज्ञातव्य हैं,
तीन गव्यूत, शेष पूर्ववत् । तिर्यग्योनिकों -मनुष्यों (यौगलिकों)
-मनुष्य (योगलिक)
|
वक्तव्य है (भ. २४/१२४-१२७) वक्तव्य हैं (भ. २४/१२४-१२७), काल स्थिति काल की स्थिति वक्तव्य हैं, (भ. २४/१२८-१३०) वक्तव्य हैं (भ. २४ / १२८- १३० ) है। है
होते हैं (भ. २४/९६- १०४), वैसे
ही
होते हैं, (भ. २४/९६ - १०४ ) उसी प्रकार वक्तव्य है, तिर्यञ्चयोनिक होते हैं..... ?
२, ३ यावत् असंज्ञी तक (भ. २४/ ११६-११८) | ७३५ १४५ २-३ आयु वाले संज्ञी
७३५
H
७३६
३
यही वक्तव्यता, (भ. २४ / १२९) वही वक्तव्यता (भ. २४/१२९), १३१ शीर्षक आयुष्य वाले आयु वाले
१
आयु वाले
३
१३२ ५. १३३ |
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१३७
५.
१३८ ।
३
१४४ |
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७३५ १४१ ३ ७३५
१४३ *
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८
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२
४
२
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१३९ ४. १४१ २
१
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१४५ ३ १४५ ६ ७३६. १४७
१४८ १४८
१
अशुद्ध
वक्तव्यता केवल विशेष विशेष ज्ञातव्य है ।
- तिर्यग्योनिक ( यौगलिक) भी कुछ अधिक
होता हैं,
सातिरेक-कोटि-पूर्व तिर्यग्योनिक ( यौगलिक))
की वक्तव्यता, (भ. २४ / १२१) तिर्यग्योनिक ( यौगलिक ) वक्तव्यता, (भ. २४ / १२८) जीव) (यौगलिक)
में होता
पल्योपम उत्कृष्टतः
२
शुद्ध
वक्तव्यता, इतना विशेष ज्ञातव्य हैं।
- तिर्यग्योनिक (यौगलिक)) भी कुछ अधिक
होता है,
सातिरेक दो कोटि-पूर्व तिर्यग्योनिक (यौगलिक))
वक्तव्य है (भ. २४/१२०, १२१), तिर्यग्योनिक (यौगलिक)) वक्तव्यता (भ. २४ / १२८), जीव (यौगलिक))
में उपपन्न होता पल्योपम, उत्कर्षतः
आयु वाला
यावत्- (भ. २४/४-५) स्थिति वाले जीव असुरकुमारों ज्ञातव्य है
(भ. २४/४-५) यावत्स्थिति वाले असुरकुमारों ज्ञातव्य है
गमक (चौथा, पांचवां और छट्टा) गमकों (चौथे, पाचवें और छट्टे) में तिर्यग्योनिक
ज्ञातव्य है ।
तीन गव्यूत। शेष पूर्ववत् । तिर्यग्योनिक
से उपपन्न हैं। (म. २४/१३५) यावत् भवादेश
(यौगलिक)
१४७)),
२२
वक्तव्य हैं, तिर्यग्योनिक होते हैं० ?
(भ. २४ / ११६-११८) यावत् असंज्ञी तक।
आयु वाले (भ. २४ / १३५) यावत् (संज्ञि
से) उपपन्न
है।
यावत् भवादेश (योगलिक))
१४७),
| पृष्ठ
सूत्र पंक्ति
७३६
१४८
७३६ १४८
७३६
७३६
१५० | ७३६ १५०
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Co
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२
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३
१५२ शीर्षक
२
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७३७ १५३ ७ ७३७ १५३ | ७ ७३७ १५३ ७
७३७ १५३ ७.८ ७३७ | १५३ ९ ७३७ १५४ * ७३७ १५५ ४
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१५७
७३८ १५७
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७३७ १५५ ५. ७३७ १५५ ५-६
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७३८
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२
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२
१६६ १
१६७ १
३
७३९ १६७ ११ २ १६८ ७४० १६९ ३ १७० ३ ७४० १७१ २
अशुद्ध
१५८ शीर्षक उपपात आदि
सख्याति
है।
पर्याप्त संज्ञी
पर्याप्त संज्ञी पञचेन्द्रिय
प्रकार असुरकुमारों
स्थिति
पल्योपम ।
- तिर्यग्योनिक ( यौगलिक))
पूर्ववत् यावत् तिर्यग्योनिक की
है (भ. २४/१३७)।
हैं।
(सातवां, आठवां और नववां) गमक (सातवें, आठवें और नवें) गमकों
वक्तव्यता, ही नौ गमकों
(भ. २४/१४०-१४१ ), इतना
है ।
(भ. २४ / १३४-१३५) जैसे असंख्यात
गए, यहा
हैं (भ. २४ / १४६ - १४९), भांति निरवशेष वक्तव्य हैं। (भ. २४ / १३७) -मनुष्य) (यौगलिक) और नवमां)
वक्तव्य है (भ. २४/१३८),
आयु वाला
भांति वही प्राप्ति नौ गमकों में निरवशेष वक्तव्य है (भ. २४/ १३९-१४१), केवल इतना (पण्णवणा, ६/८३) उपपात
होने योग्य है भन्ते !
उत्पन्न होते हैं...... पृच्छा ।
लेश्याएं चार,
होते हैं, मन योगी
शुद्ध
(स्थिति
पल्योपम।)
- तिर्यग्योनिक ( यौगलिक))
पूर्ववत् (भ. २४ / १२३) यावत् तिर्यग्योनिक (भ. २४/१३७) की
अनुबन्ध की स्थिति रहता है
हैं,
पर्याप्त संज्ञी
पर्याप्त संज्ञि पञ्चेन्द्रिय
प्रकार जैसी ही असुरकुमारों
वक्तव्यता (भ. २४ / १३१ - १३२) ही यहां भी नौ ही गमकों
इतना
-मनुष्य (योगलिक)) और नवां)
(भ. २४/१३८) (वक्तव्य हैं), उपपात आदि
संख्यात
आयु वाले
भांति वही प्राप्ति (भ. २४/१३९१४१) नौ गमकों में निरवशेष (वक्तव्य है ), इतना
(पण्णवणा, ६/८३) में निर्दिष्ट
उपपात
होने योग्य है, भन्ते ! उपपन्न होते हैं पृच्छा । लेश्याएं चार ।
होते हैं। मन- योगी अनुबन्ध स्थिति रहता है ?
इस प्रकार यह
इस प्रकार यही
शेष पूर्ववत् । यावत् अनुबन्ध तक शेष पूर्ववत् यावत् अनुबन्ध तक,
उपपत्र
उत्पन्न
है।
(भ. २४/१३५)
जैसे (भ. २४ / १४७ - १४९ )
असख्यात
गए, वैसे ही यहां
भांति (भ. २४/१३७) निरवशेष
(वक्तव्य) हैं।