Book Title: Bhagwati Sutra Part 02
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 563
________________ पृष्ठ | सूत्र | पंक्ति ७७९ ३५६] २ जघन्य योग) अशुद्ध होते हैं? अनुबंध तक । केवल इतना वक्तव्य है, है-संहननउपपत्र होते हैं? उपपात जैसा होते हैं? अनुबंध तक, इतना वक्तव्य हैं, है-(संहनन-) उपपन्न होते हैं? उपपात भांति, गमक नहीं हैं। (जघन्य भांति " | " गमक नहीं है। के रूप में | उपपद्यमान की उपपद्यमान (भ. २४/३५६) की |पृष्ठ | सूत्र पंक्ति अशुद्ध शुद्ध पृष्ठा सूत्रापंक्तिा अशुद्ध ७८१ ३ |५-६ |त्रीन्द्रिय-(अपर्याप्तक-जीवों का त्रीन्द्रिय (-अपर्याप्तक-जीवों) का अपचय भी अपचय (भी (जघन्य योग) | २ | वक्तव्य है। वक्तव्य है)। | ३ |६-७ | चतुरिन्द्रिय-(अपर्याप्तक-जीवों का चतुरिन्द्रिय (-अपर्याप्तक-जीवों) का | २ |हे? अथवा हे? (अथवा) जघन्य योग) (जघन्य योग) गौतम! द्रव्यतः गौतम ! (उन्हें) द्रव्यतः ७८२/ ३१४-१५ त्रीन्द्रिय-(पर्याप्तक-जीवों का जघन्य त्रीन्द्रिय (-पर्याप्तक-जीवों) का | पूर्ववत् । केवल इतना | इसी प्रकार (वक्तव्य है), इतना करता है....-पृच्छा । करता है-पृच्छा। ७८२ ३ | १५ | है) इसी है), इसी | है ? (अथवा) द्वित्रीन्द्रिय-(अपर्याप्तक-जीवों का भी त्रीन्द्रिय (-अपर्याप्तक-जीवों) का भी | वक्तव्यता । यावत् स्वविषय वक्तव्यता यावत् (स्वविषय | उत्कृष्ट (उत्कृष्ट | करता, करता,) ., | २१ |त्रीन्द्रिय-पर्याप्तक-जीवों का उत्कृष्ट त्रीन्द्रिय (-पर्याप्तक-जीवों) का भी | स्थिति में.....औदारिक-शरीर की स्थिति में औदारिक-शरीर (भ. २५, | (उत्कृष्ट | भांति (भ. २५/२५) वक्तव्यता। २५) की भांति वक्तव्यता। २१ | है) इसी है), इसी है ? हैं? विषम-योग हैं? (अथवा) विषम-योग ३१ १ | है ?....पृच्छा है? ४ ९. औदारिक-- ९. औदारिक ३१ | २ | शरीर की भांति वक्तव्यता । यावत् शरीर के रूप में (गृहीत द्रव्यों) की शरीर-शरीर भांति वक्तव्यता यावत् कौन किससे अल्प कौन किनसे अल्प ३४ २ |संख्येय (परिमण्डल-संस्थान द्रव्य की अपेक्षा गौतम! दो गौतम! (अजीव-द्रव्य) दो संख्येय गौतम! दस गौतम! (अरूपि-अजीव-द्रव्य) दस | ३५ | १ | संस्थान.....? संस्थान? | गौतम! चार गौतम! (रूपि-अजीव-द्रव्य) चार | द्रव्य की अपेक्षा द्रव्य की अपेक्षा २ गौतम ! संख्येय गौतम! (वे) संख्येय | सर्वत्र | अपेक्षा उससे अपेक्षा उनसे यह किसी अपेक्षा यह किस अपेक्षा प्रदेश की अपेक्षा प्रदेश की अपेक्षा १.५ है संख्येय है-(वे) संख्येय | ११ | अपेक्षा असंख्येय अपेक्षा (आयत-संस्थानों से) गौतम! संख्येय गौतम ! (जीव-द्रव्य) संख्येय असंख्येय | हैं, यावत् हैं यावत् ३६ / १२ द्रव्य और प्रदेश की अपेक्षा द्रव्य और प्रदेश की अपेक्षा ५ यह कहा जा रहा है यावत् जीव- यह (कहा जा रहा है-) यावत् (जीवन |७८७ | अपेक्षा असंख्येय अपेक्षा (आयत-संस्थानों से) द्रव्य) असंख्येय ३ जीव-द्रव्यों अजीव-द्रव्यों जीव-द्रव्य अजीव द्रव्यों अनित्थंस्थ-संस्थान अनित्थंस्थ-संस्थानों |से कहा जा रहा है? से (कहा जा रहा है? असंख्येय-गुणा हैं। असंख्येय-गुणा हैं, २०६ यावत् वैमानिक तक । केवल इतना यावत् वैमानिकों की (वक्तव्यता), | असंख्येय-गुणा (आयत-संस्थानों से) असंख्येयइतना गुणा भंते ! लोक भंते ! (लोक |संख्येय (परिमण्डल-संस्थान) संख्येय अनन्त है? अनन्त हैं) क्या इस संख्येय (रत्नप्रभा-पृथ्वी में परिमण्डल२ | प्रदेशात्मक सान्त प्रदेशात्मक (सान्त) संस्थान) संख्येय अपेक्षा-तीन अपेक्षा तीन अपेक्षा-जघन्यतः अपेक्षा जघन्यतः अधिक-तेतीस अधिक-तेतीस उपपन उत्पन्न वक्तव्यता, वक्तव्यता (भ. २४/३५८), २ अवगाहना-पृथक्त्व अवगाहना पृथक्त्व | स्थिति-पृथक्त्व स्थिति पृथक्त्व ४ गमक नहीं है गमक नहीं हैं। | उपपन्न उत्पन्न वक्तव्यता, वक्तव्यता (भ. २४/३५८), अवगाहना-पृथक्त्व अवगाहना पृथक्त्व | स्थिति-पृथक्त्व स्थिति पृथक्त्व उत्पन्न होता है। उपपन्न होता है, अवगाहना-जघन्यतः अवगाहना जघन्यतः स्थिति-जघन्यतः स्थिति जघन्यतः | कोटि-पूर्व यावत् भवादेश तक। कोटि-पूर्व शेष पूर्ववत् यावत् भवादेश शेष पूर्ववत् तक। शतक २५ ७८१ | सं.गा.| १ | पच्चीसवें शतक के बारह उद्देशक- १. लेश्या २. १. लेश्या २. (७८१ | सं.गा.|२,३ | १२. मिथ्या-ये १२ उद्देशक हैं। |१२. मिथ्या -(ये बारह) उद्देशक २ । १ १.२ | राजगृह में गणधर गौतम ने श्रमण राजगृह में (भ. १/४-१०) यावत् भगवान महावीर से यावत् (भ. इस १/४-१०) इस । १ |४,५ यावत् (पण्णवणा १७/७१-८३)/(पण्णवणा १७/७१-८३) यावत् चार चार । २ | २ | गौतम! संसार-समापत्रक जीव चौदह गौतम! (संसार-समापनक-जीव) चौदह २२ प्रज्ञप्त हैं जैसे प्रज्ञप्त हैं, जैसे ३२,३ कौन किससे अल्प कौन किनसे अल्प | गौतम ! लोक अनन्त हैं। फिर भी इस ४ |सान्त लोक५ भक्तव्य-सान्त २ | गौतम! व्याघात १ गौतम ! (लोक अनन्त हैं। (फिर भी) इस असंख्येय-प्रदेशात्मक (सान्त) (लोकन भक्तव्य है-सान्त गौतम! (लोक के एक आकाश-प्रदेश में) व्याघात से (पुद्गलों होता है)। इसी प्रकार। संस्थान। संस्थान....? अधःसप्तमी संस्थान....? पूर्ववत् । यावत् | अच्युत-कल्प। विमान में भी। संस्थान (वक्तव्य हैं)। संस्थान? अधःसप्तमी (की वक्तव्यता) संस्थान? पूर्ववत् । इस प्रकार यावत् अच्युत-कल्प (की वक्तव्यता)। विमान की भी (वक्तव्यता)। ३ | से पुद्गलों होता है। २ | पूर्ववत् । ७८७ २ २७

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