Book Title: Bhagwati Sutra Part 02
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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१११ सर्वत्र संख्येय-गुण
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१२०
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६९८ ६९८ १२०
५.
७
१.
२
अशुद्ध
वनस्पतिकायिक की द्वीन्द्रिय
नैरयिक की
शुद्ध
वनस्पतिकायिकों की द्वीन्द्रियों
नैरयिकों की
संख्येय-गुणा
अनेक द्वादश-नोद्वादश समर्जित हैं? अनेक द्वादशक और एक
नोद्वादशक समर्जित हैं ? अनेक द्वादश-नोद्वादश समर्जित भी अनेक द्वादशक और एक नोद्वादशकसमर्जित भी हैं। है।
कहा जा रहा है यावत अनेकद्वादश-नोद्वादश- समर्जित भी
(ऐसा कहा जा रहा है) यावत् (अनेकद्वादशक और एक नोद्वादशक - ) समर्जित भी
द्वादशक
वे पृथ्वीकायिक द्वादशक समर्जित हैं।
-द्वादशक
एकदशक
ग्यारह वे अनेक द्वादश-नोद्वादश समर्जित वे पृथ्वीकायिक अनेक द्वादशक और है।
कहा जा रहा है- यावत् अनेक द्वादश -नोद्वादश समर्जित भी हैं।
एक नोद्वादशक समर्जित हैं। (कहा जा रहा है) यावत् (अनेकद्वादशक और एक नोद्वादशक ) समर्जित भी हैं।
वनस्पतिकायिक
२
२
द्वादश
वे द्वादश समर्जित हैं।
४, ६ व
- द्वादश
वनस्पतिकायिक की सिद्धों की
नैरयिक की
सबके अल्प-बहुत्व की भांति
चतुरशीतिक नोचतुरशीतिक अनेक चतुरशीतिकहा जा रहा है यावत् अनेक
चौरासी
तीन उत्कृष्टतः तिरासी
चौरासी
यावत् चतुरशीति-नोचतुरशीति
समर्जित हैं
सबके
भांति
की षट्कचतुरशीति
सिद्ध
नैरयिकों की सबका अल्पबहुत्व भांति (पूर्ति भ. २०/१०९ ) चतुरशीतिक और एकनोचतुरशीतिक
अनेक चतुरशीतिक और एककहा जा रहा है यावत् (अनेकसमर्जित चतुरशीतिक
तीन, उत्कर्षतः त्र्यशीतिक
वे सिद्ध चतुरशीतिक
यावत् (अनेक चतुरशीतिक और एक नो चतुरशीतिक) समर्जित नहीं
है । सबका
भांति (पूर्ति भ. २०/१०९)
षट्कचतुरशीतिक
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२
३
५.
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१
४
२
३, ४
अशुद्ध शतक २१
नगर यावत् गौतम ने इस प्रकार
कहा
होते हैं? क्या तिर्यग्योनिकों
पण्णवणा......
६
(४२६) अवक्राति पद किए जाने वाले) अपहार की की भी
इन्द्रियों की मूल जीव ब्रीहि, मूल जीव
इस प्रकार...
आहार की
वक्तव्यता ।
पृथक्त्व वर्ष
उद्वर्तना की
आ कर
ज्ञातव्य है ।
चार हैं।
- अंगुल ।
की पूर्ण
निष्पाव (सेम) कुलथी,
इस प्रकार.........
१७ ६
इस प्रकार....... सर्वत्र उसी प्रकार । १८ ३, ४, ५ होते हैं, भन्ते! वे जीव कहां से
६
"
(आकर) उत्पन्न होते हैं?
मूलकबीज
होते हैं, भन्ते! वे जीव कहां से (आकर) उत्पन्न होते हैं ?
इस प्रकार.........
(भ. २१/१७) में)
७
चार हैं। शेष उसी प्रकार । (तीरवुर)
४
६, ७,८ होते हैं, भन्ते । वे जीव कहां से
(आकर) उत्पन्न होते हैं?
इस प्रकार........ ७०३ २० ४, ५, ६ होते हैं, भन्ते वे जीव कहां से (आकर) उत्पन्न होते हैं? इस प्रकार.......
(नगर) (भ. १/४-१०) यावत् (गौतम ने) इस प्रकार कहाहोते हैं? तिर्यग्योनिकों
यह पैरा पिछले पैरे के साथ है।
अवक्रांति पद (पण्णवणा ४६६)
किया जाने वाला अपहार
भी
इन्द्रियां
मूल-जीव
व्रीहि,
मूल-जीव
यह पैरा पिछले पैरे के साथ है।
आहार
वक्तव्य है,
पृथक्त्व वर्ष
उद्वर्तना
शुद्ध
आकर
ज्ञातव्य हैं।
चार हैं,
अगुल,
पूर्णतः निष्पाव (सेम), कुलथी, यह पैरा पिछले पैरे के साथ है। मूलक, बीज
होते हैं ? इस प्रकार......
सर्वत्र ही पूर्ववत् ।
होते हैं ? इस प्रकार.......
(भ. २१/१७ में)
चार हैं, शेष पूर्ववत् । (तीखुर)
होते हैं ? इस प्रकार......
होते हैं० ? इस प्रकार......
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२१ ३, ४, ५
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४ ७०५ ५. ४
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२
२
२
३
७०५ ५.
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५
*
-कूड़ा,
५.
होते हैं ?
६
संदर्भ में मूल
७.
चाहिए। यावत्
४ शीर्षक बैंगन आदि गुच्छों में उपपात
आदि-पद
ज्ञातव्य है, यावत्
पाढल,
२- ३ उत्पन्न होते हैं, भंते! वे जीव कहा
से (आकर) उपपन्न होते हैं ?
এ ধ
५, ६
शीर्षक ताल आदि जीवों में
१.
नगर यावत् गौतम ने
उत्पन्न होते हैं ?
७०५ ६
अशुद्ध
होते हैं, भन्ते! वे जीव कहां से (आकर) उत्पन्न होते हैं ?
इस प्रकार........
५.
सेहुंड कायफल,
५, ६ होते हैं, भन्ते! वे जीव कहां से
(आकर) उपपन्न होते हैं ? वक्तव्य हैं
शीर्षक हडसंधारी आदि बहुबीजकवृक्षों में उपपात आदि-पद
१,२
४
दोनों बार)
१३
सालि
शालि
शीर्षक नीम आदि एकास्थिक वृक्षों में (नीम आदि एकास्थिक वृक्षों में उपपात आदि पद उपपात आदि की पृच्छा )
सेहुंड, कायफल,
होते हैं ० ?
२
शतक २२
२
୪
५
"
६ शीर्षक x
१-२
होते हैं० ? इस प्रकार......
ताल आदि जीवों में
(नगर) ( भ. १/४-१०) यावत् (गौतम ने)
उपपन्न होते हैं ० ?
३
संदर्भ में मूल
संदर्भ में भी मूल
४
सदृश जानने चाहिए।
सदृश निरवशेष (जानने चाहिए)।
शीर्षक श्वेतपुष्प कटसरैया आदि गुल्मों (श्वेतपुष्प कटसरैया आदि
(आकर) उपपन्न होते हैं?
संदर्भ में मूल
जानने चाहिए।
(वक्तव्य हैं)
(हडसंधारी आदि बहुबीजकवृक्षों में उपपात आदि की पृच्छा )
५, ६ ३-४ उत्पन्न होते हैं, भंते! वे जीव कहां से उपपन्न होते हैं ० ?
-कूडा,
होते हैं० ?
संदर्भ में भी मूल चाहिए यावत्
(बैंगन-आदि-गुच्छों में उपपातआदि की पृच्छा )
ज्ञातव्य है यावत्
पाटल,
उपपन्न होते हैं ० ?
गुल्मों
में उपपात आदि पद में उपपात आदि की पृच्छा ) पण्णवणा (१/३८) की गाथानुसार पण्णवणा (गुल्म-वर्ग, १/३८) की गाथानुसार (पदच्छेद करणीय हैं) याव ज्ञातव्य है, यावत्
संदर्भ में भी मूल (जानने चाहिए।)
(पुष्यफली आदि वल्लि वर्ग उपपात आदि की पृच्छा )
पण्णवणा (पद १, वल्लि वर्ग के पण्णवणा (वल्लि वर्ग, १/४० ) की गाथानुसार ताल वर्ग की भांति अनुसार