Book Title: Bhagwati Sutra Part 02
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 549
________________ पृष्ठ सूत्र पंक्ति अशुद्ध | ३ | वक्तव्यता, वही * -- १ तेजोलेश्या वालों २ | किससे २ विशेषाधिक है? ३ एकेन्द्रिय सबसे | अनन्त-गुण (जो) वक्तव्यता बतलाई गई है, कही | तेजो-लेश्या वाले एकेन्द्रिय-जीवों किनसे विशेषाधिक हैं? एकेन्द्रिय-जीव सबसे अनन्त-गुणा ऋद्धि०? वाले हैं? द्वीपकुमार (भ. १६/१२५-१२८) वाले हैं? पृष्ठ | सूत्र पंक्ति अशुद्ध शीर्षक (ज्ञान-द्वार) १ ज्ञानी के एकत्व-बहुत्व की ज्ञानी एकत्व-बहुत्व में २ | मनःपर्यवज्ञानी की मनःपर्यव-ज्ञानी .. | पूर्ववत् उसी प्रकार, ३ | जीव, मनुष्य सिद्ध जीव (-पद), मनुष्य (-पद) और सिद्ध जीव (-पद) ३ प्रथम है, अप्रथम नहीं है। प्रथम हैं, अप्रथम नहीं हैं। | श्रुत-अज्ञानी, विभंग-ज्ञानी की श्रुत-अज्ञानी और विभंग-ज्ञानी | आहारक की भांति आहारक (भ. १८/५) की भांति (योग-द्वार) | काय-योगी के एकत्व-बहुत्व की काय-योगी एकत्व-बहुत्व में अयोगी-जीव सिद्ध, मनुष्य | अयोगी-जीव, मनुष्य और सिद्ध एकत्व-बहुत्व में प्रथम है, एकत्व-बहुत्व में प्रथम हैं, अप्रथम नहीं है। अप्रथम नहीं हैं। (उपयोग-द्वार) | के एकत्व-बहुत्व की अनाहारक एकत्व-बहुत्व में अनाहारक (भ. १८१ १ २ ९.९६ १ ९३.९५ वाले हैं? दीपकुमार (भ. १६/१२५-१२९) वाले हैं? सिद्ध ६२७ | सं.गा. २ शतक १८ भव्य १०. सोमिल उद्देशक हैं। (वेद-द्वार) |एकत्व-बहुत्व में आहारक (भ. १८ १ | के एकत्व-बहुत्व की आहारक | राजगृह नगर यावत् गौतम ने इस प्रकार जीव सिद्ध १ जीव २ वैमानिक की २ प्रथम नहीं हैं। १ | सिद्धों की र्षिक x भव्य तथा १०. सोमिल उद्देशक हैं ॥१॥ (समुच्चय-जीव-द्वार) राजगृह (भ. १/४-१०) यावत् (गौतम ने) इस प्रकार क्या जीव (एकवचन) सिद्ध (एकवचन) क्या जीव (बहुवचन) वैमानिकों की प्रथम नहीं हैं, सिद्ध (बहुवचन) (आहारक-द्वार) -जीव (एकवचन) इसी प्रकार -जीव (बहुवचन) अनाहारक-जीव (बहुवचन) अनाहारक-भाव (भवसिद्धिक-द्वार) -जीव (एकवचन) |-सिद्ध (एकवचन) -पृच्छा। (पूर्ववत् गौतम ! प्रथम है, अप्रथम नहीं है।) दोनों पदों (जीव-पद और सिद्ध-पद) पृष्ठ सूत्र पंक्ति अशुद्ध १० ५ नहीं है नहीं हैं। | १ सलेश्य की-पृच्छा। सलेश्य (एकवचन)-पृच्छा। | ४ |अलेश्य-जीव मनुष्य सिद्ध अलेश्य-जीव, मनुष्य और सिद्ध नोसंज्ञी-नोअसंज्ञी की भांति नोसंज्ञि-नोअसंज्ञी की भांति (वक्तव्य |वक्तव्यता। शीर्षक x | (दृष्टि-द्वार) | सम्यग्-दृष्टि-जीव सम्यग्-दृष्टि-जीव (एकवचन) सम्यग-दृष्टि भाव सम्यग्-दृष्टि-भाव गौतम! यहां नया पैरा है। वैमानिक वैमानिक (एकवचन) | अप्रथम नहीं हैं। अप्रथम नहीं है। सिद्ध (एकवचन) सम्यग्-दृष्टि जीव सम्यग्-दृष्टि-जीव सिद्ध (बहुवचन) एकत्व-बहुत्व की एकत्व-बहुत्व में आहारक की भांति वक्तव्यता आहारकों की भांति (वक्तव्य है)। ५,६ सम्यग्-मिथ्या-दृष्टि की एकत्व सम्यग्-मिथ्या-दृष्टि एकत्व-बहुत्व |-बहुत्व की सम्यग् दृष्टि में सम्यग्-दृष्टि |६,७ वक्तव्यता। सम्यग्-मिथ्या-दृष्टि वक्तव्य है, इतना की एकत्व-बहुत्व की सम्यग्-दृष्टि की भांति वक्तव्यता, इतना ६२८ १३ शीर्षक (संयत-द्वार) | १ |संयत जीव मनुष्य के एकत्व-बहुत्व संयत जीव (-पद) और मनुष्य (-पद) की | १ वक्तव्यता असंयत की (वक्तव्य है)। असंयत (-पद) की । २ वक्तव्यता संयतासंयत-जीव (वक्तव्य है)। संयतासंयत-जीव (-1 पंचेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक मनुष्य के पद) की, पंचेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक एवं मनुष्य (-पद) | १३ | ३ | बहुत्व की |-बहुल में १३/३,४ | नोसंयत-नोअसंयत-नोसंयतासंयत- नोसंयत-नोअसंयत-नोसंयतासंयत|जीव, सिद्ध |जीव (-पद) और सिद्ध (-पद) नहीं है। नहीं हैं। (कषाय-द्वार) |-इनके एकत्व-बहुत्व की ये एकत्व-बहुत्व में सकषायो, | सकषायी अकषायी जीव (-पद) (एकवचन) | मनुष्य की भी। मनुष्य (-पद) (एकवचन) भी | सिद्ध प्रथम है, | सिद्ध (-पद) (एकवचन) प्रथम है, , मनुष्य जीव जीव (-पद) और मनुष्य (-पद) भी ३,४ | बहुवचन में मनुष्य जीव प्रथम भी है, बहुवचन में जीव और मनुष्य भी प्रथम अप्रथम भी है। | भी हैं, अप्रथम भी हैं। | सिद्ध प्रथम सिद्ध (-पद) (बहुवचन) प्रथम १ -जीव इस प्रकार र्षक " ~ २ की तीनों पदों में अकषायी की के तीनों पद (जीव-पद, मनुष्य-पद और सिद्ध-पद) अकषायी (भ. १८ १४) की (शरीर-द्वार) १ की आहारक (एकत्व-पृथक्त्व में) आहारक शरीर है। शरीर है, शरीरी की -शरीरी। | ३ | अशरीरी जीव सिद्ध अशरीरी-जीव (-पद) और सिद्धन पद) पिंक (पर्याप्ति-द्वार) | के एकत्व-बहुत्व की एकत्व-बहुत्व में लक्षण गाथा है लक्षण-गाथा (है)अप्राप्त पूर्व अप्राप्त-पूर्व | होता है। होता है।॥१॥ शीर्षक (समुच्चय-जीव-द्वार) क्या जीव भाव से क्या जीव (एकवचन) जीव-भाव से नैरयिक नैरपिक (एकवचन) |२,३ | वैमानिक की वक्तव्यता। सिद्ध की | वैमानिक (एकवचन) (वक्तव्य है)। जीव की भांति | सिद्ध (एकवचन) जीव (एकवचन) (भ. १८/२१) की भांति |६२९/ २३, १ | जीवों की पृच्छा। | जीव (बहुवचन)-पृच्छा। .. | २ । | नैरयिक चरम नैरयिक (बहुवचन) चरम -जीव र्षक __ * * | सकषायी ६ | दोनों की शीर्षक १ १ (संज्ञि-द्वार) संज्ञी जीव संज्ञी-भाव संज्ञी जीव (एकवचन) संज्ञि-भाव प्रथम हैं प्रथम है वक्तव्यता, इतना विशेष है-यावत् (वक्तव्यता), इतना विशेष है यावत् नोसंज्ञी-नोअसंज्ञी-जीव मनुष्य, नोसंज्ञि-नोअसंज्ञी जीव, मनुष्य,

Loading...

Page Navigation
1 ... 547 548 549 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560 561 562 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590