Book Title: Bhagwati Sutra Part 02
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 526
________________ श. ४० का अंतर्शतक १५ : उ. २-११, अंतर्शतक १६-२१ : सू. ३८-४८ भगवती सूत्र और ज्ञान नहीं होते, शेष उसी प्रकार बतलाना चाहिए। ३९. भन्ते! वे ऐसा ही है। भन्ते! वह ऐसा ही है। तीसरा-ग्यारहवां उद्देशक ४०. इसी प्रकार यहां भी ग्यारह उद्देशक करने चाहिए, पहला, तीसरा और पांचवां उद्देशक समान गमक वाले हैं, शेष आठों ही उद्देशक समान गमक वाले हैं। ४१. भन्ते! वह ऐसा ही है। भन्ते! वह ऐसा ही है। (सोलहवां शतक) ४२. भन्ते! कृष्णलेश्य-अभवसिद्धिक-कृतयुग्म-कृतयुग्म-संज्ञी-पंचेन्द्रिय-जीव कहां से आकर उत्पन्न होते हैं....? जैसा इन जीवों का (अभवसिद्धिक-कृतयुग्म-कृतयुग्म-संज्ञी-पंचेन्द्रिय)-जीवों का औधिक-शतक (भ. ४०।३६) में बतलाया गया है वैसा कृष्णलेश्य-अभवसिद्धिक-कृतयुग्म-कृतयुग्म-संज्ञी-पंचेन्द्रिय-जीव-विषयक-शतक भी बतलाना चाहिए, केवल इतना अन्तर है४३. भन्ते! वे जीव क्या कष्णलेश्य हैं? हां, गौतम! वे जीव कृष्णलेश्य हैं। इन जीवों की स्थिति और संस्थान-काल जैसे कृष्णलेश्य-कृतयुग्म-कृतयुग्म संज्ञीपंचेन्द्रिय-जीव-विषयक-शतक में बतलाया गया है वैसे ही बतलाना चाहिए, शेष उसी प्रकार वक्तव्य है। ४४. भन्ते! वह ऐसा ही है। भन्ते! वह ऐसा ही है। (सत्रहवां-इक्कीसवां शतक) १. इसी प्रकार छहों ही लेश्यावाले अभवसिद्धिक-कृतयुग्म-कृतयुग्म-संज्ञी-पंचेन्द्रिय-जीव-विषयक छह शतक करने चाहिए, जैसा कृष्णलेश्य-अभवसिद्धिक-कृतयुग्म-कृतयुग्म-संज्ञीपंचेन्द्रिय-जीव-विषयक-शतक (भ. ४०।४२-४३) में बतलाया गया, केवल इतना अन्तर है-इन जीवों का संस्थान-काल और स्थिति जैसी (अभवसिद्धिक-कृतयुग्म-कृतयुग्म-संज्ञी-पंचेन्द्रिय-जीव-विषयक) औधिक शतक (भ. ४०।३६) में बतलायी गयी वैसी ही बतलानी चाहिए, केवल इतना अन्तर है-शुक्ललेश्य-अभवसिद्धिक-कृतयुग्म-कृतयुग्म-संज्ञी-पंचेन्द्रिय-जीवों का संस्थान-काल उत्कर्षतः इकतीस सागरोपम से अन्तर्मुहर्त अधिक होता है। इन जीवों की स्थिति इसी प्रकार बतलानी चाहिए, केवल इतना अन्तर है-जघन्य स्थिति में अन्तर्मुहूर्त नहीं बतलाना चाहिए, उसी प्रकार सर्वत्र सम्यक्त्व और ज्ञान नहीं होता। इन जीवों में विरत, विरताविरत और अनुत्तर-विमान में उत्पत्ति ये तीन नहीं होते। (भन्ते!) क्या सभी प्राण (भूत, जीव और सत्त्व इनमें पूर्व में उत्पन्न हुए थे)? (गौतम!) यह अर्थ संगत नहीं है। ४६. भन्ते! वे ऐसा ही है। भन्ते! वह ऐसा ही है। ४७. इसी प्रकार ये अभवसिद्धिक-महायुग्म-जीव-विषयक सात शतक होते हैं। ४८. भन्ते! वह ऐसा ही है। भन्ते! वह ऐसा ही है। ९४४

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