Book Title: Bhagwati Sutra Part 02
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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श. ४१ : उ. २९-६० : सू. ५४-६३
भगवती सूत्र उनतीसवां-छप्पनवां उद्देशक (उणतीसवां-बत्तीसवां उद्देशक) ५४. भन्ते! भवसिद्धिक-राशियुग्म-कृतयुग्म-नैरयिक-जीव कहां से आकर उपपन्न होते हैं? जैसे पहले चार औधिक-उद्देशक बतलाये गये (भ. ४१।२६-३५) वैसे ही सम्पूर्ण रूप से बतलाने चाहिए। ये चार उद्देशक होते हैं। ५५. भन्ते! वह ऐसा ही है। भन्ते! वह ऐसा ही है। (तेतीसवां-छत्तीसवां उद्देशक) ५६. भन्ते! कृष्णलेश्य-भवसिद्धिक-राशियुग्म-कृतयुग्म-नैरयिक-जीव कहां से आकर उपपन्न होते हैं? जैसे कृष्णलेश्य-राशियुग्म-कृतयुग्म-नैरयिक-जीवों के विषय में चार उद्देशक होते हैं वैसे इन कृष्णलेश्य-भवसिद्धिक-राशियुग्म- कृतयुग्म-नैरयिक-जीवों के विषय में भी चार उद्देशक करने चाहिए। (सैंतीसवां-चवालीसवां उद्देशक) ५७. इसी प्रकार नीललेश्य-भवसिद्धिक-राशियुग्म-कृतयुग्म-नैरयिक-जीवों के विषय में भी
चार उद्देशक करने चाहिए। ५८. इसी प्रकार कापोतलेश्य-भवसिद्धिक-राशियुग्म-कृतयुग्म-नैरयिक-जीवों के विषय में भी
चार उद्देशक करने चाहिए। (पैंतालीसवां-बाबनवां उद्देशक) ५९. तेजोलेश्य-भवसिद्धिक-राशियुग्म-कृतयुग्म-नैरयिक-जीवों के विषय में भी चार उद्देशक
औधिक-उद्देशकों के समान बतलाने चाहिए। ६०. पद्मलेश्य-भवसिद्धिक-राशियुग्म-कृतयुग्म-नैरयिक-जीवों के भी चार उद्देशक करने
चाहिए। (तिरेपनवां-छप्पनवां उद्देशक) ६१. शुक्ललेश्य-भवसिद्धिक-राशियुग्म-कृतयुग्म-नैरयिक-जीवों के विषय में भी चार उद्देशक
औधिक-उद्देशकों के समान बतलाने चाहिए। इसी प्रकार ये भवसिद्धिक-राशियुग्म-कृतयुग्मनैरयिक-जीवों के विषय में अट्ठाईस उद्देशक (भ. ४१/५४-६१) होते हैं। ६२. भन्ते! वह ऐसा ही है। भन्ते! वह ऐसा ही है।
___सत्तावनवां-चौरासीवां उद्देशक (सत्तावनवां-साठवां उद्देशक) ६३. भन्ते! अभवसिद्धिक-राशियुग्म-कृतयुग्म-नैरयिक-जीव कहां से आकर उपपन्न होते हैं.....? जैसा प्रथम उद्देशक (भ. ४१।३) में बतलाया गया है वैसा बतलाना चाहिए, केवल इतना अन्तर है-अभवसिद्धिक-राशियुग्म-कृतयुग्म-मनुष्यों और -नैरयिक-जीवों के विषय में समान रूप से बतलाना चाहिए, शेष उसी प्रकार वक्तव्य है।
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