Book Title: Bhagwati Sutra Part 02
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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अशुद्ध ६५३ | १८६/२-८ गौतम! जो भव्य तिर्यग्योनिक, मनुष्य अथवा देव पृथ्वीकायिक-निकायों में उपपन्न होंगे। इस गौतम! जो भव्य (पृथ्वीकायिकों में उपपन्न होने की योग्यता प्राप्त) तिर्यग्योनिक, मनुष्य अथवा देव है, (मृत्यु के पश्चात्) वह पृथ्वीकायिकों में उपपन्न
अपेक्षा से कहा जाता है। अप्कायिक, वनस्पतिकायिक की पूर्ववत् वक्तव्यता। तेजस, वायु, | होनेवाला है। इस (भविष्य में उसके पृथ्वीकायिकों में उपपत्र होने की) अपेक्षा से उसे (भव्य-द्रव्य-पृथ्वीकायिक भव्य-द्रव्य-पृथ्वीकायिक) कहा जाता है। द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रियों के जो भव्य तिर्यग्योनिक, मनुष्य, तैजस, वायु, द्वीन्द्रिय, श्रीन्द्रिय (भव्य-द्रव्य-) अप्कायिकों और (भव्य-द्रव्य-) वनस्पतिकायिकों की इसी प्रकार (वक्तव्यता)। जो भव्य (तेजस्कायिकों, वायुकायिकों, द्वीन्द्रियों, त्रीन्द्रियों अथवा चतुरिन्द्रियों में उपपन्न होंगे। पंचेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक के जो भव्य नैरयिक, तिर्यक्, योनिक, और चतुरिन्द्रियों में उपपन्न होने की योग्यता प्राप्त) तिर्यगयोनिक अथवा मनुष्य है, (मृत्यु के पश्चात्) वह तेजस्कायिकों, वायुकायिकों, द्वीन्द्रियों, त्रीन्द्रियों मनुष्य, देव, पञ्चेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक अथवा पञ्चेन्द्रिय-तिर्यगयोनिकों में उपपन्न होंगे। इस प्रकार | अथवा चतुरिन्द्रियों में उपपन्न होने वाला है। (भविष्य में उसके तेजस्कायिकों, वायुकायिकों, द्वीन्द्रियों, त्रीन्द्रियों अथवा चतुरिन्द्रियों में उपपन्न होने की) अपेक्षा मनुष्यों की वक्तव्यता। वाणमंतर, ज्योतिष्क, वैमानिक की नैरयिक की भांति वक्तव्यता।
से उसे (क्रमशः) (भव्य-द्रव्य-तेजस्कायिक, भव्य-द्रव्य-वायुकायिक, भव्य-द्रव्य-द्वीन्द्रिय, भव्य-द्रव्य-त्रीन्द्रिय, भव्य-द्रव्य-चतुरिन्द्रिय) कहा जाता है। जो भव्य (पञ्चेन्द्रिय-तिर्यग्योनिकों में उपपन्न होने की योग्यता-प्राप्त) नैरयिक, तिर्यग्योनिक, मनुष्य, देव अथवा पञ्चेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक है, (मृत्यु के पश्चात्) वह पञ्चेन्द्रिय-तिर्यग्योनिकों में उपपत्र होने वाला है। (भविष्य में उसके पञ्चेन्द्रिय-तिर्यग्योनिकों में उपपन्न होने की अपेक्षा से उसे भव्य-द्रव्य-पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिक कहा जाता है।) इस प्रकार (भव्य-द्रव्य-) मनुष्य भी (वक्तव्य है)। (भव्य-द्रव्य-) वानमंतर, (भव्य-द्रव्य-) ज्योतिष्क और (भव्य
-द्रव्य-) वैमानिक (भव्य-द्रव्य-) नैरयिकों की भांति (वक्तव्य हैं)। ६५३|१८९३-६] इसी प्रकार अप्कायिक की वक्तव्यता। तेजस, वायुकायिक की नैरयिक की भांति वक्तव्यता। इसी प्रकार (भव्य-द्रव्य-) अप्कायिक की भी (वक्तव्यता)। (भव्य-द्रव्य-) तैजस (कायिक), (भव्य-द्रव्य-) वायुकायिक की (भव्य-द्रव्य-) नैरयिक की
दीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय की नैरयिक की भांति वक्तव्यता। पञ्चेन्द्रिय-तिर्यगयोनिक की भांति (वक्तव्यता)। (भव्य-द्रव्य-) वनस्पति-कायिक की (भव्य-द्रव्य-) पृथ्वीकायिक की भांति (वक्तव्यता)। (भव्य-द्रव्य-) द्वीन्द्रिय, (भव्य-द्रव्य-) जघन्यतः अंतर्मुहर्त, उत्कृष्टतः तैंतीस सागरोपम । इसी प्रकार मनुष्य की वक्तव्यता। वाणमंतर, त्रीन्द्रिय और (भव्य-द्रव्य-) चतुरिन्द्रिय की (भव्य-द्रव्य-) नैरयिक की भांति (वक्तव्यता)। (भव्य-द्रव्य-) पंचेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक की जघन्यतः अन्तर्मुहर्त, ज्योतिष्क, वैमानिक की असुरकुमार की भांति वक्तव्यता।
उत्कर्षतः तैंतीस सागरोपम । इस प्रकार (भव्य-द्रव्य-) मनुष्य की भी (वक्तव्यता)। (भव्य-द्रव्य-) वानमंतर, (भव्य-द्रव्य-) ज्योतिष्क, (भव्य-द्रव्य-)
वैमानिक की (भव्य-द्रव्य-) असुरकुमार की भांति (वक्तव्यता)। ६५८२२० ५
भी हूं। इस अपेक्षा से यह (कहा जा रहा है) यावत् मैं भूत, वर्तमान और भावी अनेक पर्यायों से युक्त भी हूं।
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अशुद्ध ४७|३-१६ | उपपन्न होता है?
उपपन्न होता है? इसी प्रकार । इस प्रकार यावत् अधःसप्तमी में उपपात करवाना चाहिए-उपपात वक्तव्य है। इस प्रकार सनत्कुमार-, माहेन्द्र-, ब्रह्मलोकपूर्ववत् । इसी प्रकार यावत् अधःसप्तमी में उपपात होता है।
कल्प के बीच समवहत हुआ, समवहत होकर पुनः यावत् अधःसप्तमी में उपपात करवाना चाहिए। इस प्रकार बह्मलोक- और लांतक-कल्प के बीच समवहत इसी प्रकार सनत्कुमार-, माहेन्द्र-, ब्रह्मलोक-कल्प के बीच समवहत हुआ, समवहत होकर पुनः | हुआ, पुनः यावत् अधःसप्तमी में (उपपात करवाना चाहिए)। इस प्रकार लांतक- और महाशुक्र-कल्प के बीच समवहत हुआ, पुनः यावत् अधःसप्तमी में यावत् अधःसप्तमी में उपपात होता है। इसी प्रकार ब्रह्मलोक-, लांतक-कल्प के बीच समवहत (उपपात करवाना चाहिए)। इस प्रकार महाशुक्र- और सहसार-कल्प के बीच समवहत हुआ, पुनः यावत् अधःसप्तमी में (उपपात करवाना चाहिए)। इस प्रकार हुआ, पुनः यावत् अधःसप्तमी में उपपात होता है। इसी प्रकार लांतक-महाशुक्र--कल्प के बीच में सहसार- और आनत-, प्राणत-कल्पों के बीच समवहत हुआ, पुनः यावत् अधःसप्तमी में (उपपात करवाना चाहिए)। इस प्रकार आनत-, प्राणत- और समवहत हुआ, पुनः यावत् अधःसप्तमी में उपपात होता है। इसी प्रकार महाशुक्र-, सहसार-कल्प आरण-, अच्युत-कल्पों के बीच समवहत हुआ, पुनः यावत् अधःसप्तमी में (उपपात करवाना चाहिए)। इस प्रकार आरण, अच्युत और ग्रैवेयक-विमानों के के बीच में समवहत हुआ, पुनः यावत् अधःसप्तमी में उपपात होता है। इसी प्रकार सहसार-, बीच समवहत हुआ, पुनः यावत् अघःसप्तमी में (उपपात करवाना चाहिए)। इस प्रकार अवेयक-विमानों और अनुत्तर- विमानों के बीच समवहत हुआ, पुनः आनत-, प्राणत-कल्पों के बीच समवहत हुआ, पुनः यावत् अधःसप्तमी में उपपात होता है। इसी यावत् अधःसप्तमी में (उपपात करवाना चाहिए)। इस प्रकार अनुत्तर-विमानों और ईषत्-प्राग्भारा के बीच समवहत हुआ, पुनः यावत् अधःसप्तमी में उपपात प्रकार आनत-, प्राणत-, आरण-, अच्युत-कल्पों के बीच में समवहत हुआ, पुनः यावत् करवाना चाहिए। अधःसप्तमी में उपपात होता है। इसी प्रकार आरण, अच्युत, ग्रैवेयक-विमानों के बीच समवहत हुआ, पुनः यावत् अधःसप्तमी में उपपात होता है। इसी प्रकार प्रैवेयक-विमानों और अनुत्तरविमानों के बीच समवहत हुआ, पुनः यावत् अधःसप्तमी में उपपात होता है। इसी प्रकार अनुत्तर
विमानों, ईषत्-प्राग्भारा के बीच समवहत हुआ, पुनः यावत् अधःसप्तमी में उपपात होता है। ६९७/११३/१-९ | यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है यावत् अनेक-द्वादश-नोद्वादश-समर्जित भी हैं?
यह किस अपेक्षा से ऐसा कहा जा रहा है यावत् (अनेक-द्वादश- और एक-नोद्वादश-) समर्जित भी हैं? गौतम! जो नेरयिक द्वादश-प्रवेशनक से प्रवेश करते हैं, वे द्वादश-समर्जित हैं। जो नैरयिक
गौतम! जो नैरयिक द्वादशक-प्रवेशनक से प्रवेश करते हैं, वे नैरयिक द्वादश-समर्जित हैं। जो नैरयिक जघन्यतः एक-, दो-, जघन्यतः एक-, दो-, तीन- उत्कृष्टतः म्यारह-प्रवेशनक से प्रवेश करते हैं, वे नोद्वादश-समर्जित -तीन-, उत्कर्षतः ग्यारह-प्रवेशनक से प्रवेश करते हैं, वे नैरयिक नोद्वादश-समर्जित हैं। जो नैरयिक द्वादशक-प्रवेशनक से प्रवेश करते हैं तथा अन्य जघन्यतः हैं। जो नैरयिक द्वादश-प्रवेशनक से प्रवेश करते हैं तथा अन्य जघन्यतः एक-, दो-, तीन- एक-, दो-, तीन-, उत्कर्षतः एकादशक-प्रवेशनक से प्रवेश करते हैं, वे नैरयिक द्वादश-नोद्वादश-समर्जित हैं। जो नैरयिक अनेक-द्वादशक-प्रवेशनक से प्रवेश उत्कृष्टतः ग्यारह-प्रवेशनक से प्रवेश करते हैं, वे द्वादश-नोद्वादश-समर्जित हैं। जो नैरयिक अनेक- करते हैं, वे नैरयिक अनेक-द्वादश-समर्जित हैं। जो नैरयिक अनेक-द्वादश- तथा जघन्यतः एक-, दो-, तीन-, उत्कर्षतः एकादशक-प्रवेशनक से प्रवेश करते द्वादश-प्रवेशनक से प्रवेश करते हैं, वे अनेक-द्वादश-समर्जित हैं। जो नैरयिक अनेक- द्वादश- तथा हैं, वे नैरयिक अनेक-द्वादश- और एक-नोद्वादश-समर्जित हैं। इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है यावत् (अनेक-द्वादश और एक-नोद्वादश-) समर्जित भी हैं। जघन्यतः एक-, दो-, तीन- उत्कृष्टतः ग्यारह-प्रवेशनक से प्रवेश करते हैं, वे अनेक-द्वादश- इस प्रकार यावत् स्तनितकुमार (वक्तव्य है)। नोद्वादश-समर्जित हैं। इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है यावत् अनेक-द्वादश-नोद्वादश-समर्जित