Book Title: Bhagwati Sutra Part 02
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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भगवती सूत्र
३३. भन्ते ! वह ऐसा ही ह । भन्ते ! वह ऐसा ही है ।
(ग्यारहवां-चौदहवां शतक)
श. ४० का अंतर्शतक १०-१४, अंतर्शतक १५ उ. १,२ : सू. ३३-३८
३४. इसी प्रकार जैसे कृतयुग्म - कृतयुग्म-संज्ञी - पंचेन्द्रिय-जीव-विषयक सात औधिक- शतक बतलाये गए, वैसे ही भवसिद्धिक- कृतयुग्म कृतयुग्म-संज्ञी-पंचेन्द्रिय-जीव-विषयक सात शतक बतलाने चाहिए, केवल इतना अन्तर है - सातों ही शतकों में सभी प्राण यावत् (पूर्व उत्पन्न हुवे हैं ? ) 'यह अर्थ संगत नहीं है' तक बतलाना चाहिए, शेष उसी प्रकार बतलाना चाहिए।
३५. भन्ते ! वह ऐसा ही है । भन्ते ! वह ऐसा ही है ।
पन्द्रहवां-इक्कीसवां संज्ञी - महायुग्म - शतक
पन्द्रहवां शतक
पहला उद्देश
३६. भन्ते! अभवसिद्धिक- कृतयुग्म कृतयुग्म-संज्ञी - पंचेन्द्रिय-जीव कहां से आकर उत्पन्न होते हैं....? इन जीवों का उपपात वैसे बतलाना चाहिए (भ. ४०।२७) केवल अनुत्तर-विमान को छोड़कर। इन जीवों का परिमाण, अपहार, उच्चत्व, बन्ध, वेद, वेदना, उदय और उदीरणा जैसे कृष्णलेश्य - कृतयुग्म कृतयुग्म-संज्ञी - पंचेन्द्रिय-जीव - विषयक-शतक में बतलाया गया, वैसे बतलाना चहिए। ये जीव कृष्णलेश्य भी होते हैं यावत् शुक्ललेश्य भी होते हैं। ये जीव सम्यग् - दृष्टि नहीं होते, मिथ्या-दृष्टि ही होते हैं, सम्यग् - मिथ्या-दृष्टि नहीं होते हैं। ये जीव ज्ञानी नहीं होते, अज्ञानी ही होते हैं । इसी प्रकार जैसे कृष्णलेश्य - कृतयुग्मकृतयुग्म -संज्ञी - पंचेन्द्रिय-जीव - विषयक - शतक (भ. ४०।१०) में बतलाये गये वैसे बतलाने चाहिए, केवल इतना अन्तर है-ये जीव विरत नहीं होते, अविरत होते हैं, विरताविरत नहीं होते। इन जीवों का संस्थान - काल और स्थिति जैसी औधिक उद्देशक (भ. ४०।३) में बतलाई गई है वैसी बतलानी चाहिए। इन जीवों में पहले पांच समुद्घात (आहारक- और केवलि-समुद्घात छोड़कर) होते हैं। इन जीवों की उद्वर्तना उसी प्रकार बतलानी चाहिए केवल अनुत्तर -विमान के छोड़कर (भन्ते !) क्या सभी प्राण (जीव, भूत और सत्त्व इनमें पूर्व उत्पन्न हुए हैं)? (गौतम! ) यह अर्थ संगत नहीं है, शेष जैसे कृष्णलेश्य - कृतयुग्म-संज्ञी - पंचेन्द्रिय-जीव-विषयक - शतक (भ. ४०।४) में बतलाया गया है वैसा बतलाना चाहिए यावत् ‘अनन्त बार' तक । इसी प्रकर सोलह ही युग्मों के विषय में बतलाना चाहिए । ३७. भन्ते ! वह ऐसा ही है । भन्ते ! वह ऐसा ही है।
दूसरा उद्देश
३८. भन्ते ! प्रथम समय के अभवसिद्धिक- कृतयुग्म कृतयुग्म-संज्ञी पंचेन्द्रिय-जीव कहां से अकर उत्पन्न होते हैं...?
जैसे कृतयुग्म - कृतयुग्म- संज्ञी के प्रथम-समय- उद्देशक (भ. ४०।६) में बतलाया गया है वैसा ही बतलाना चाहिए, केवल इतना अन्तर है-इन जीवों के सर्वत्र सम्यक्त्व, सम्यग् - मिथ्यात्व
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