Book Title: Bhagwati Sutra Part 02
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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भगवती सूत्र
श. ३५ : उ. १-११ : श. ७-१२ : सू. ६२-६७
(सातवां शतक)
पहला-ग्यारहवां उद्देशक ६२. इसी प्रकार नीललेश्य-भवसिद्धिक-(कृतयुग्म-कृतयुग्म)-एकेन्द्रिय-जीवों के विषय में भी (सातवां) शतक बतलाना चाहिए, (जैसा कृष्णलेश्य-भवसिद्धिक-कृतयुग्म-कृतयुग्म-एकेन्द्रिय-जीवों के विषय में बतलाया गया था)। ६३. भन्ते! वह ऐसा ही है। भन्ते! वह ऐसा ही है। . (आठवां शतक)
पहला-ग्यारहवां उद्देशक ६४. इसी प्रकार कापोतलेश्य-भवसिद्धिक-(कृतयुग्म-कृतयुग्म)-एकेन्द्रिय-जीवों के विषय में
भी उसी तरह ग्यारह उद्देशक संयुक्त (आठवां) शतक बतलाना चाहिए, (जैसा कृष्णलेश्य-भवसिद्धिक-कृतयुग्म-कृतयुग्म-एकेन्द्रिय-जीवों के विषय में बतलाया गया था)। इसी प्रकार ये चार शतक (पांच से आठ तक) भवसिद्धिक-(कृतयुग्म-कृतयुग्म-एकेन्द्रिय-जीवों के विषय में बतलाये हैं)। (भन्ते! क्या) चारों ही शतकों के विषय में सभी प्राण यावत् 'पहले उत्पन्न हुए थे' तक (पृच्छा)? (गौतम) यह अर्थ संगत नहीं हैं। ६५. भन्ते! वह ऐसा ही है। भन्ते! वह ऐसा ही है। नवां-बारहवां शतक
प्रत्येक के पहला-ग्यारहवां उद्देशक ६६. जैसे भवसिद्धिक-(कृतयुग्म-कृतयुग्म-एकेन्द्रिय-जीवों के) विषय में चार शतक (लेश्या-संयुक्त) बतलाये गये थे, वैसे ही अभवसिद्धिक-(कृतयुग्म-कृतयुग्म-एकेन्द्रिय-जीवों) के विषय में भी चार शतक लेश्या-संयुक्त बतलाने चाहिए। (भ. ३५।५६-६४) सभी प्राण....(यावत् उत्पन्न-पूर्व तक) उसी प्रकार (पृच्छा) बतलानी चाहिए (जैसा वहां बतलाया गया है) (भ. ३५।६४) (गौतम!) यह अर्थ संगत नहीं है। इस प्रकार में बारह एकेन्द्रिय-महायुग्म-शतक होते हैं। ६७. भन्ते! वह ऐसा ही है। भन्ते! वह ऐसा ही है।
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