Book Title: Bhagwati Sutra Part 02
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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श. ३५ : उ. १-११: श. ३-६ : सू. ५३-६१
तीसरा- बारहवां शतक पहला- ग्यारहवां उद्देशक
भगवती सूत्र
(तीसरा शतक )
५३. भन्ते! इसी प्रकार नीललेश्य - ( कृतयुग्म - कृतयुग्म - एकेन्द्रिय-जीवों के विषय में) भी शतक बतलाना चाहिए, जैसा कृष्णलेश्य - ( कृतयुग्म कृतयुग्म एकेन्द्रिय-जीवों के विषय में) शतक बतलाया गया है, उसके ग्यारह उद्देशक उसी प्रकार बतलाने चाहिए ।
५४. भन्ते ! वह ऐसा ही है । भन्ते ! वह ऐसा ही है ।
(चौथा शतक)
पहला- ग्यारहवां उद्देशक
५५. इसी प्रकार कापोतलेश्य- (कृतयुग्म- कृतयुग्म- एकेन्द्रिय-जीवों के विषय में) भी शतक बतलाना चाहिए, जैसा कृष्णलेश्य - ( कृतयुग्म - कृतयुग्म एकेन्द्रिय-जीवों के विषय में) शतक बतलाया गया है।
५६. भन्ते ! वह ऐसा ही है । भन्ते ! वह ऐसा ही है।
(पांचवां शतक)
पहला- ग्यारहवां उद्देशक
५७. भन्ते! भवसिद्धिक- कृतयुग्म - कृतयुग्म- एकेन्द्रिय-जीव कहां से आकर उत्पन्न होते हैं...? जैसा औधिक - शतक (भ. ३५।२२-४३) में बतलाया गया है वैसा ही बतलाना चाहिए, केवल इतना अन्तर है— ग्यारह ही उद्देशकों के विषय में जो प्रष्टव्य है उस विषय में बतलाना चाहिए ।
५८. भन्ते ! क्या सभी प्राण यावत् सभी सत्त्व (प्राण, भूत, जीव और सत्त्व) भवसिद्धिक-कृतयुग्म-कृतयुग्म-एकेन्द्रिय-जीव के रूप में पहले उत्पन्न हुए थे ?
गौतम ! यह अर्थ - संगत नहीं है, शेष उसी प्रकार वक्तव्य है ।
५९. भन्ते ! वह ऐसा ही है । भन्ते ! वह ऐसा ही है ।
(छट्टा शतक)
पहला- ग्यारहवां उद्देशक
६०.
भन्ते ! कृष्णलेश्य-भवसिद्धिक- कृतयुग्म- कृतयुग्म - एकेन्द्रिय-जीव कहां से आकर उत्पन्न होते हैं...? इसी प्रकार कृष्णलेश्य-भवसिद्धिक- कृतयुग्म - कृतयुग्म एकेन्द्रिय-जीवों के विषय में भी (छट्ठा) शतक बतलाना चाहिए, जैसा कृष्णलेश्य - ( कृतयुग्म - कृतयुग्म - एकेन्द्रिय-जीवों के विषय में) दूसरा शतक (भ. ३५ ।४४ -५१) बतलाया गया था ।
६१. भन्ते ! वह ऐसा हो है । भन्ते ! वह ऐसा ही है ।
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