Book Title: Bhagwati Sutra Part 02
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 510
________________ श. ३५ : उ. २-११ : सू. ३३-४३ भगवती सूत्र (सातवां उद्देशक) ३३. भन्ते! प्रथम-अप्रथम समय (प्रथम समय में उत्पन्न होते हुए भी जिन एकेन्द्रिय-जीवों ने कृतयुग्म-कृतयुग्मत्व का अनुभव पूर्व भव में कर लिया हो वे) के कृतयुग्म-कृतयुग्म-एकेन्द्रिय जीव कहां से आकर उत्पन्न होते हैं....? जैसा प्रथम-समय-उद्देशक बतलाया गया है वैसा बतलाना चाहिए। ३४. भन्ते! वह ऐसा ही है। भन्ते! वह ऐसा ही है। (आठवां उद्देशक) ३५. भन्ते! प्रथम-चरम-समय (कृतयुग्म-कृतयुग्म के अनुभव के प्रथम-समय में वर्तमान तथा चरम समय अर्थात् मरण समय में वर्तमान जीव) के कृतयुग्म-कृतयुग्म-एकेन्द्रिय-जीव कहां से आकर उत्पन्न होते हैं....? जैसा चरमोद्देशक (चोथे उद्देशक) बतलाया गया है वैसा सम्पूर्ण रूप से बतलाना चाहिए। ३६. भन्ते! वह ऐसा ही है। भन्ते! वह ऐसा ही है। (नवां उद्देशक) २७. भन्ते! प्रथम-अचरम समय (कृतयुग्म-कृतयुग्मत्व के अनुभव के प्रथम समय में वर्तमान तथा अचरम अर्थात् एकेन्द्रिय में उत्पत्ति के प्रथम समय में वर्तमान जीव) के कृतयुग्म-कृतयुग्म-एकेन्द्रिय-जीव कहां से आकर उत्पन्न होते हैं...? जैसा-दूसरे उद्देशक बतलाया गया है वैसा सम्पूर्ण रूप से बतलाना चाहिए। ३८. भन्ते! वह ऐसा ही है। भन्ते! वह ऐसा ही है-इस प्रकार भगवान गौतम यावत् संयम और तप से अपने आप को भावित करते हुए विहरण कर रहे हैं। (दसवां उद्देशक) ३९. भन्ते! चरम-चरम समय (कृतयुग्म-कृतयुग्मत्व के अनुभव के चरम समय में वर्तमान तथा चरम अर्थात् मरण-समयवर्ती जीव) के कृतयुग्म-कृतयुग्म-एकेन्द्रिय-जीव कहां से आकर उत्पन्न होते हैं....? जैसा चोथा उद्देशक बतलाया गया है वैसा सम्पूर्ण बतलाना चाहिए। ४०. भन्ते! वह ऐसा ही है। भन्ते! वह ऐसा ही है। (ग्यारहवां उद्देशक) ४१. भन्ते! चरम-अचरम समय (कृतयुग्म-कृतयुग्मत्व के अनुभव के चरम समय में वर्तमान तथा अचरम समय अर्थात् एकेन्द्रिय में उत्पत्ति के प्रथम समय में वर्तमान जीव) के कृतयुग्म-कृतयुग्म-एकेन्द्रिय-जीव कहां से आकर उत्पन होते हैं.....? जैसा प्रथम-समय-उद्देशक बतलाया गया है वैसा सम्पूर्ण बतलाना चाहिए। ४२. भन्ते! वह ऐसा ही है। भन्ते! वह ऐसा ही है-इस प्रकार भगवान गौतम यावत् संयम और तप से अपने आप को भावित करते हुए विहरण कर रहे हैं। ४३. इस प्रकार ये ग्यारह उद्देशक-जिनमें पहला, तीसरा और पांचवां उद्देशक समान गमक वाले हैं तथा शेष आठ उद्देशक समान गमक वाले हैं, केवल इतना अन्तर है-चोथे, आठवें ९२८ . .

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