Book Title: Bhagwati Sutra Part 02
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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श. ३५ : उ. १ : सू. २
भगवती सूत्र अपेक्षा से भी चार-चार रहते हैं, वह राशि द्रव्य से भी कृतयुग्म और समय से भी कृतयुग्म है, अतः कृतयुग्म-कृतयुग्म कहलाती है; यह जघन्यतः सोलह है)।।१।। जिस राशि के सामयिक-चतुष्क के द्वारा अपहार करने पर तीन पर्यवसित रहते हैं तथा अपहार-समय-चतुष्क के द्वारा अपहार किये जाने पर चार ही पर्यवसित रहते हैं; वह राशि कृतयुग्म-त्र्योज है; (यह जघन्यतः उन्नीस है)।।२।। जिस राशि को सामयिक-चतुष्क के द्वारा अपहार करने पर दो पर्यवसित रहते हैं तथा अपहार-समय-चतुष्क के द्वारा अपहार किये जाने पर चार ही पर्यवसित रहते हैं वह राशि कृतयुग्म-द्वापरयुग्म है; (यह जघन्यतः अठारह है)।।३।। जिस राशि को सामयिक-चतुष्क के द्वारा अपहार करने पर एक पर्यवसित रहता है तथा अपहार-समय-चतुष्क के द्वारा अपहार किये जाने पर चार ही पर्यवसित रहते हैं, वह राशि कृतयुग्म-कल्योज है; यह जघन्यतः सत्रह है।।४।। जिस राशि को सामयिक-चतुष्क के द्वारा अपहार करने पर चार पर्यवसित रहते हैं तथा अपहार-समय-चतुष्क के द्वारा अपहार किये जाने पर तीन ही पर्यवसित रहते हैं, वह राशि योज-कृतयुग्म है; (यह जघन्यतः बारह है)।।५।। जिस राशि को सामयिक-चतुष्क के द्वारा अपहार करने पर तीन पर्यवसित रहते हैं तथा अपहार-समय-चतुष्क के द्वारा अपहार किये जाने पर तीन ही पर्यवसित रहते हैं, वह राशि योज-त्र्योज है; (यह जघन्यतः पन्द्रह है)।।६।। जिस राशि को सामयिक-चतुष्क के द्वारा अपहार करने पर दो पर्यवसित रहते हैं तथा अपहार-समय-चतुष्क के द्वारा अपहार किये जने पर तीन ही पर्यवसित रहते हैं, वह राशि योज-द्वापरयुग्म है; (यह जघन्यतः चौदह है)।।७।। जिस राशि को सामयिक-चतुष्क के द्वारा अपहार करने पर एक पर्यवसित रहता है तथा अपहार-समय-चतुष्क के द्वारा अपहार किये जाने पर तीन ही पर्यवसित रहते हैं, वह राशि योज-कल्योज है (यह जघन्यतः तेरह है)।।८।। जिस राशि को सामयिक-चतुष्क के द्वारा अपहार करने पर चार पर्यवसित रहते हैं तथा अपहार-समय-चतुष्क के द्वारा अपहार किये जाने पर दो ही पर्यवसित रहते हैं, वह राशि द्वापरयुग्म-कृतयुग्म है; (यह जघन्यतः आठ है)।।९।। जिस राशि को सामयिक-चतुष्क के द्वारा अपहार करने पर तीन पर्यवसित रहते हैं तथा
अपहार-समय-चतुष्क के द्वारा अपहार किये जाने पर दो ही पर्यवसित रहते हैं, वह राशि द्वापरयुग्म-त्र्योज है; (यह जघन्यतः ग्यारह है)।।१०।। जिस राशि को सामयिक-चतुष्क के द्वारा अपहार करने पर दो पर्यवसित रहते हैं तथा
अपहार-समय-चतुष्क के द्वारा अपहार किये जाने पर दो ही पर्यवसित रहते हैं, वह राशि द्वापरयुग्म-द्वापरयुग्म है; (यह जघन्यतः दस है)।।११।। जिस राशि को सामयिक-चतुष्क के द्वारा अपहार करने पर एक पर्यवसित रहता है तथा अपहार-समय-चतुष्क के द्वारा अपहार किये जाने पर दो ही पर्यवसित रहते हैं, वह राशि
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