Book Title: Bhagwati Sutra Part 02
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
View full book text
________________
भगवती सूत्र
३३. भन्ते ! लेश्या -युक्त - अक्रियावादी - जीव क्या भवसिद्धिक हैं.... पृच्छा ।
गौतम ! लेश्या - युक्त- अक्रियावादी - जीव भवसिद्धिक भी हैं, अभवसिद्धिक भी हैं। इसी प्रकार अज्ञानिकवादी भी, वैनयिकवादी भी लेश्या - सहित - जीवों की भांति वक्तव्य हैं। इसी प्रकार यावत् शुक्ल-लेश्या वाले जीवों तक समझना चाहिए।
३४. भन्ते! लेश्या-रहित - क्रियावादी - जीव क्या भवसिद्धिक हैं.... पृच्छा।
-
गौतम! लेश्या-रहित- क्रियावादी - जीव भवसिद्धिक हैं, अभवसिद्धिक नहीं है। इसी प्रकार इस अभिलाप (पाठ-पद्धति) द्वारा कृष्णपाक्षिक-जीव तीनों ही समवसरण (अक्रियावादी, अज्ञानिकवादी और वैनयिकवादी) वाले कृष्णपाक्षिक-जीवों में भवसिद्धिक और अभवसिद्धिक दोनों की भजना (विकल्प) है । चारों ही समवसरण वाले शुक्लपाक्षिक-जीव भवसिद्धिक होते हैं, अभवसिद्धिक नहीं होते । सम्यग्-दृष्टि वाले जीव लेश्यारहित - जीवों की भांति वक्तव्य हैं। मिथ्या-दृष्टि-जीव कृष्णपाक्षिक की भांति वक्तव्य हैं। दोनों ही समवसरण वाले (अज्ञानिकवादी और वैनयिकवादी) सम्यग् - मिथ्यादृष्टि वाले जीव लेश्या - रहित - जीवों की भांति वक्तव्य हैं। ज्ञानी (समुच्चय) यावत् केवल - ज्ञानी जीव भवसिद्धिक होते हैं, अभवसिद्धिक नहीं होते । अज्ञानी (समुच्चय) यावत् विभंग - ज्ञानी - जीवों तक कृष्णपाक्षिक की भांति वक्तव्य हैं। चारों संज्ञा वाले जीव लेश्या सहित जीवों की भांति वक्तव्य हैं। नो-संज्ञोपयुक्त-जीव सम्यग् -दृष्टि- जीवों की भांति वक्तव्य हैं । सवेदक-जीव (समुच्चय) यावत् नपुंसक - वेद वाले जीवों तक लेश्या सहित जीवों की भांति वक्तव्य हैं। अवेदक (समुच्चय) - -जीव सम्यग्-दृष्टि-जीवों की भांति वक्तव्य हैं । सकषायी (समुच्चय)- यावत् लोभ-कषायी-जीवों तक लेश्या - सहित - जीवों की भांति वक्तव्य हैं। अकषायी (समुच्चय) - जीव सम्यग्-दृष्टि-जीवों की भंति वक्तव्य हैं । सयोगी (समुच्चय) - यावत् काय-योगी-जीवों तक लेश्या - सहित - जीवों की भांति वक्तव्य हैं। अयोगी (समुच्चय) - जीव सम्यग् -दृष्टि- जीवों की भांति वक्तव्य हैं। साकारोपयुक्त और अनाकारोपयुक्त जीव लेश्या सहित जीवों की भांति वक्तव्य हैं। इसी प्रकार नैरयिक- जीवों की वक्तव्यता है, केवल इतना अन्तर है - जिसमें जो प्राप्त होता है वह ज्ञातव्य है । इसी प्रकार असुरकुमार देवों के विषय में भी यावत् स्तनितकुमार - दोनों तक वक्तव्य हैं। दो मध्यम समवसरण वाले (अक्रियावादी और अज्ञानिकवादी) पृथ्वीकायिक-जीव सभी स्थानों में भवसिद्धिक भी होते हैं और अभवसिद्धिक भी होते हैं। इसी प्रकार यावत् वनस्पतिकायिक-जीवों तक वक्तव्य हैं। द्वीन्द्रिय-, त्रीन्द्रिय- और चतुरिन्द्रिय-जीवों के विषय में भी उसी प्रकार वक्तव्य हैं, केवल इतना अन्तर है - दो मध्यम समवसरण वाले इन जीवों में सम्यक्त्व, समुच्चय ज्ञान, आभिनिबोधक-ज्ञान और श्रुत ज्ञान में भवसिद्धिक होते हैं अभवसिद्धिक नहीं होते । शेष उसी प्रकार वक्तव्य हैं । पञ्चेन्द्रिय - तिर्यग्योनिक - जीव नैरयिक- जीवों की भांति वक्तव्य हैं, केवल इतना अन्तर है - जिसमें जो प्राप्त होता है वह जानना चाहिए। मनुष्य औघिक जीवों की भांति वक्तव्य हैं। वानमन्तर-देवों, ज्योतिष्क- देवों तथा वैमानिक- देवों के जीवों में असुरकुमारदेवों के जीवों की भांति वक्तव्य हैं।
३५. भन्ते ! वह ऐसा ही है । भन्ते ! वह ऐसा ही है ।
८८७
श. ३० : उ. १: सू. ३३-३५