Book Title: Bhagwati Sutra Part 02
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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बत्तीसवां शतक
पहला उद्देशक क्षुल्लक-युग्म-नैरयिक-आदि का उद्वर्तन-पद १. भन्ते! क्षुल्लक-कृतयुग्म-नैरयिक-जीव वहां से उवृत्त होने के (वहां से निकलने के)
अनन्तर कहां जाते हैं, कहां उपपन्न होते हैं? क्या नैरयिक-जीवों के रूप में उपपन्न होते हैं? तिर्यग्योनिक-जीवों के रूप में उपपन्न होते हैं.... जैसे पण्णवणा के छठे पद (सू. ९९- १००) में उद्वर्तना बतलाई गई है वैसे यहां वक्तव्य है। २. भन्ते! एक समय में वे कितने जीव उद्वर्तन करते हैं (वहां से निकलते हैं)?
गौतम! एक समय में वे चार, आठ, बारह, सोलह, संख्येय अथवा असंख्येय जीव वहां से उद्वर्तन करते हैं। ३. भन्ते! वे जीव वहां से कैसे उद्वर्तन करते हैं? गौतम! जिस प्रकार कोई प्लवक....(भ. २५।६२०) उसी प्रकार वक्तव्य है। इसी प्रकार वही गमक यावत् 'आत्म-प्रयोग से उद्वर्तन करते हैं, पर-प्रयोग से उद्वर्तन नहीं करते' तक (भ. २५१६२०-६२६) वक्तव्य है। ४. रत्नप्रभा-पृथ्वी के क्षुल्लक-कृतयुग्म-नैरयिक-जीव? इसी प्रकार रत्नप्रभा के विषय में भी सारे प्रश्नोत्तर समझने चाहिए। इसी प्रकार यावत् 'अधःसप्तमी-पृथ्वी' तक समझना चाहिए। इसी प्रकार क्षुल्लक-त्र्योज-, क्षुल्लक-द्वापरयुग्म-, क्षुल्लक-कल्योज-नैरयिक-जीवों के विषय में वक्तव्य है, केवल इतना अन्तर है-परिमाण (संख्या) ज्ञातव्य है, शेष उसी प्रकार
समझना चाहिए। ५. भन्ते! वह ऐसा ही है। भन्ते! वह ऐसा ही है।
दूसरा-अट्ठाईसवां उद्देशक ६. कृष्णलेश्य-कृतयुग्म-नैरयिक-जीव....? इसी प्रकार इस क्रम से जैसे उपपात-शतक में
अट्ठाईस उद्देशक बताये गये थे वैसे ही उद्वर्तन-शतक में भी अट्ठाईस उद्देशक सम्पूर्णतया वक्तव्य हैं, केवल इतना अन्तर है-('उपपन्न होते हैं' के स्थान में) 'उद्वर्तन करते हैं ऐसा अभिलाप वक्तव्य है, शेष उसी प्रकार वक्तव्य हैं। ७. भन्ते! वह ऐसा ही है। भन्ते! वह ऐसा ही है। इस प्रकार भगवान गौतम यावत् संयम और तप से अपने आप को भावित करते हुए विहरण कर रहे हैं।
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