Book Title: Bhagwati Sutra Part 02
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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भगवती सूत्र
श. ३३ श. १ : उ. १,२ : सू. ८-१७
-जीवों के पर्याप्त तक वक्तव्य हैं। ९. भन्ते! अपर्याप्त-सूक्ष्म-पृथ्वीकायिक-जीव कितनी कर्म-प्रकृतियों का बन्ध करते हैं? गौतम! अपर्याप्त-सूक्ष्म-पृथ्वीकायिक-जीव सप्तविध-बन्धक भी होते हैं, अष्टविध-बन्धक भी होते हैं सात कर्म-प्रकृतियों का बन्ध भी करते हैं, आठ कर्म-प्रकृतियों का बन्ध भी करते हैं। सात कर्म-प्रकृतियों का बन्ध करते हुए जीव आयुष्य-कर्म को छोड़कर शेष सात कर्मप्रकृतियों का बन्ध करते हैं, आठ कर्म-प्रकृतियों का बन्ध करते हुए जीव प्रतिपूर्ण आठों
कर्म-प्रकृतियों का बन्ध करते हैं। १०. भन्ते! पर्याप्त-सूक्ष्म-पृथ्वीकायिक-जीव कितनी कर्म-प्रकृतियों का बन्ध करते हैं? इसी प्रकार समझना चाहिए, इसी प्रकार सभी एकेन्द्रिय-जीवों के कर्म-बन्ध वक्तव्य हैं यावत्११. भन्ते! पर्याप्त-बादर-वनस्पतिकायिक-जीव कितनी कर्म-प्रकृतियों का बन्ध करते हैं?
इसी प्रकार समझना चाहिए। १२. भन्ते! अपर्याप्त-सूक्ष्म-पृथ्वीकायिक-जीव कितनी कर्म-प्रकृतियों का वेदन करते हैं। गौतम! अपर्याप्त-सूक्ष्म-पृथ्वीकायिक जीव चौदह कर्म-प्रकृतियों का वेदन करते हैं जैसे-१. ज्ञानावरणीय यावत् ८. अन्तराय ९. श्रोत्रेन्द्रियवध्य (श्रोत्रेन्द्रियावरणीय) १०. चक्षुरिन्द्रयावरणीय, ११. घ्राणेन्द्रियावरणीय, १२. जिह्वेन्द्रियावरणीय, १३. स्त्रीवेदावरणीय,
१४. पुरुषवेदावरणीय। इसी प्रकार पृथ्वीकायिक-जीवों के चार भेद जानने चाहिए। १३. भन्ते! पर्याप्त-बादर-वनस्पतिकायिक-जीव कितनी कर्म-प्रकृतियों का वेदन करते हैं?
गौतम! इसी प्रकार चौदह कर्म-प्रकृतियों का वेदन करते हैं। १४. भन्ते! वह ऐसा ही है। भन्ते! वह ऐसा ही है।
दूसरा उद्देशक १५. भन्ते! अनन्तर-उपपन्न (प्रथम समय के)-एकेन्द्रिय-जीव कितने प्रकार के प्रज्ञप्त हैं? गौतम! अनन्तर-उपपन्न (प्रथम समय के)-एकेन्द्रिय-जीव पांच प्रकार के प्रज्ञप्त हैं,
जैसे-पृथ्वीकायिक यावत् वनस्पतिकायिक तक वक्तव्य हैं। १६. भन्ते! अनन्तर-उपपन्न (प्रथम समय के)-पृथ्वीकायिक-जीव कितने प्रकार के प्रज्ञप्त हैं? गौतम! अनन्तर-उपपन्न (प्रथम समय के)-पृथ्वीकायिक-जीव दो प्रकार के प्रज्ञप्त हैं, जैसे-सूक्ष्म-पृथ्वीकायिक और बादर-पृथ्वीकायिक। इसी प्रकार यावत् अनन्तर-उपपन्न-वनस्पतिकायिक तक के दो-दो भेद जानने चाहिए। (अपकाय, तेजस्काय, वायुकाय और वनस्पतिकाय के दो-दो भेद सूक्ष्म और बादर जानने चाहिए) १७. भन्ते! अनन्तर-उपपन्न-सूक्ष्म-पृथ्वीकायिक-जीवों के कितनी कर्म-प्रकृतियां प्रज्ञप्त हैं? गौतम! अनन्तर-उपपन्न-सूक्ष्म-पृथ्वीकायिक-जीवों के आठ-आठ कर्म-प्रकृतियां प्रज्ञप्त हैं, जैसे-ज्ञानावरणीय यावत् अन्तरायिक।
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