Book Title: Bhagwati Sutra Part 02
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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श. ३३ : उ. २-५ : सू. १८-२६
भगवती सूत्र १८. भन्ते! अनन्तर-उपपन्न-बादर-पृथ्वीकायिक-जीवों के कितनी कर्म-प्रकृतियां प्रज्ञप्त हैं? गौतम! अनन्तर-उपपन्न-बादर-पृथ्वीकायिक-जीवों के आठ कर्म-प्रकृतियां प्रज्ञप्त हैं, जैसे-ज्ञानावरणीय यावत् अन्तरायिक। इसी प्रकार यावत् अनन्तर-उपपन्न-बादर-वनस्पतिकायिक। अनन्तर-उपपन्न- सूक्ष्म-वादर-अप्कायिक, अनन्तर-उपपन्न-सूक्ष्म-बादर-तेजस्कायिक, अनन्तर-उपपन्न-सूक्ष्म-बादरवायुकायिक, अनन्तर-उपपन्न-सूक्ष्म-बादर-वनस्पतिकायिक जानने चाहिए। १९. भन्ते! अनन्तर-उपपन्न-सूक्ष्म-पृथ्वीकायिक-जीव कितनी कर्म-प्रकृतियों का बन्ध करते
गौतम! अनन्तर-उपपन्न-सूक्ष्म-पृथ्वीकायिक-जीव आयुष्य-कर्म को छोड़कर शेष सात कर्म-प्रकृतियों का बन्ध करते हैं। इसी प्रकार यावत् अनन्तर-उपपन्न-बादर-वनस्पतिकायिक
जीव। २०. भन्ते! अनन्तर-उपपन्न-सूक्ष्म-पृथ्वीकायिक-जीव कितनी कर्म-प्रकृतियों का वेदन करते
गौतम! अनन्तर-उपपन्न-सूक्ष्म-पृथ्वीकायिक-जीव चौदह कर्म-प्रकृतियों का वेदन करते हैं, जैसे-ज्ञानावरणीय, उसी प्रकार यावत् पुरुष-वेदवध्य तक। (भ. ३३।१२) इसी प्रकार यावत् अनन्तर-उपपन्न-बादर-वनस्पतिकायिक जीव । २१. भन्ते! वह ऐसा ही है। भन्ते! वह ऐसा ही है।
तीसरा उद्देशक २२. भन्ते! परम्पर-उपपन्न (प्रथम समय को छोड़कर, दूसरे, तीसरे आदि समय के)-एकेन्द्रिय-जीव कितने प्रकार के प्रज्ञप्त हैं? गौतम! परम्पर-उपपन्न-एकेन्द्रिय-जीव पांच प्रकार के प्रज्ञप्त हैं, जैसे–पृथ्वीकायिक (आदि) इसी प्रकार चार भेद औधिक-उद्देशक की भांति वक्तव्य हैं। २३. भन्ते! परम्पर-उपपन्न-अपर्याप्त-सूक्ष्म-पृथ्वीकायिक-जीवों के कर्म-प्रकृतियां कितनी प्रज्ञप्त हैं? इसी प्रकार इस अभिलाप के द्वारा जैसे औघिक-उद्देशक में बताया गया है वैसे ही सम्पूर्णतया जानना चाहिए यावत् चौदह (कर्म-प्रकृतियों का) वेदन करते हैं। २४. भन्ते! वह ऐसा ही है। भन्ते! वह ऐसा ही है।
___ चौथा-ग्यारहवां उद्देशक (चौथा उद्दशक) २५. अनन्तर-अवगाढ-एकेन्द्रिय-जीवों के कर्म-प्रकृति के विषय में अनन्तर-उपपन्न-एकेन्द्रिय
-जीवों की भांति वक्तव्य है। (पांचवां उद्देशक) २६. परम्पर-अवगाढ-एकेन्द्रिय-जीवों के कर्म-प्रकृति के विषय में परम्पर-उपपन्न-एकेन्द्रिय-जीवों की भांति वक्तव्य है।
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