Book Title: Bhagwati Sutra Part 02
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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भगवती सूत्र
श. ३४ : उ. १ : सू. ८-१२ वायुकायिक- और वनस्पतिकायिक-जीवों का उपपात वैसा करवाना चाहिए जैसे पृथ्वीकायिक-जीवों के चार भेद बतलाये गये थे, यावत्
९. भन्ते! पर्याप्त - बादर - वनस्पतिकायिक- जीव इस रत्नप्रभा - पृथ्वी में पूर्व (दिशा) के चरमान्त में मारणान्तिक-समुद्घात से समवहत होता है, समवहत होकर जो भव्य (पर्याप्त-बादर-वनस्पतिकायिक-जीव के रूप में उत्पन्न होने की योग्यता प्राप्त ) इस रत्नप्रभा - पृथ्वी में पश्चिम दिशा के चरमान्त में पर्याप्त - बादर - वनस्पतिकायिक जीव के रूप में उपपन्न होने योग्य है, भन्ते! वह कितने समय वाली विग्रह - गति ( अन्तराल - गति) के द्वारा उपपन्न होता है....? शेष उसी प्रकार वक्तव्य है यावत् 'यह इस अपेक्षा से कहा जा रहा है' तक । १०. भन्ते ! अपर्याप्त सूक्ष्म- पृथ्वीकायिक- जीव इस रत्नप्रभा - पृथ्वी में पश्चिम दिशा के चरमान्त में मारणान्तिक- समुद्घात से समवहत होता है। समवहत होकर जो भव्य (अपर्याप्त सूक्ष्म- पृथ्वीकायिक जीव के रूप में होने की योग्यता प्राप्त ) इस रत्नप्रभा - पृथ्वी में पूर्व दिशा के चरमान्त में अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीव के रूप में उपपन्न होने योग्य है, भन्ते ! वह कितने समय वाली विग्रह - गति (अन्तराल - गति) के द्वारा ( उपपन्न होता है ) ? शेष उसी प्रकार सम्पूर्ण रूप से वक्तव्य है । इसी प्रकार पूर्व दिशा के चरमान्त में सभी पदों में भी मारणान्तिक-समुद्घात की भांति पश्चिम दिशा के चरमान्त में तथा समय-क्षेत्र में उपपात करवाना चाहिए और समय-क्षेत्र में जो मारणान्तिक- समुद्घात से समवहत हुए उनका पश्चिम दिशा के चरमान्त में और समय-क्षेत्र में उपपात करवाना चाहिए, इसी प्रकार इसी क्रम से पश्चिम के चरमान्त में तथा समय-क्षेत्र में मारणान्तिक-समुद्घात से समवहत होकर पूर्व दिशा के चरमान्त में और समय-क्षेत्र में उसी गमक के द्वारा उपपात करवाना चाहिए । इसी प्रकार इसी गमक के द्वारा दक्षिण दिशा के चरमान्त में मारणान्तिक - समुद्घात से समवहत होकर उत्तर दिशा के चरमान्त में और समय-क्षेत्र में उपपात बतलाना चाहिए। इसी प्रकार उत्तरदिशा के चरमान्त में और समय-क्षेत्र में मारणान्तिक - समुद्घात से समवहत होकर दक्षिण दिशा के चरमान्त में और समय-क्षेत्र में उसी गमक के द्वारा उपपात करवाना चाहिए । ११. भन्ते ! अपर्याप्त सूक्ष्म- पृथ्वीकायिक-जीव शर्कराप्रभा - पृथ्वी में पूर्व दिशा के चरमान्त में मारणान्तिक- समुद्घात से समवहत होता है, समवहत होकर जो भव्य (अपर्याप्त सूक्ष्मपृथ्वीकायिक- जीव के रूप में उत्पन्न होने की योग्यता प्राप्त ) इस शर्कराप्रभा - पृथ्वी में पश्चिम दिशा के चरमान्त में अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीव के रूप में उत्पन्न होने योग्य है....इसी प्रकार वक्तव्य है जैसा रत्नप्रभा - पृथ्वी में बताया गया है यावत् 'यह इस अपेक्षा से कहा जा रहा है' तक। इसी प्रकार इसी क्रम से यावत् 'पर्याप्त सूक्ष्म - तेजस्कायिक-जीवों के रूप में उत्पन्न होने' तक वक्तव्य है ।
१२. भन्ते ! अपर्याप्त सूक्ष्म- पृथ्वीकायिक-जीव शर्कराप्रभा - पृथ्वी में पूर्व दिशा के चरमान्त में मारणान्तिक- समुद्घात से समवहत होता है, समवहत होकर जो भव्य (अपर्याप्त - बादर- तेजस्कायिक- जीव के रूप में उत्पन्न होने की योग्यता प्राप्त) समय क्षेत्र में अपर्याप्त बादर-तेजस्कायिक- जीव के रूप में उत्पन्न होने योग्य है, भन्ते ! वह कितने समय वाली (विग्रह- गति से उत्पन्न होता है ) -पृच्छा ।
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