Book Title: Bhagwati Sutra Part 02
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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भगवती सूत्र
श. ३४ : उ. १: सू. १२-१५
गौतम ! वह जीव दो समय वाली अथवा तीन समय वाली विग्रह - गति ( अन्तराल - गति) के द्वारा उत्पन्न होता है ।
१३. यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है ?
गौतम ! मैंने इस प्रकार सात श्रेणियां प्रज्ञप्त की हैं, जैसे- १. ऋजुआयता यावत् अर्धचक्रवाला । एकतो- वक्रा श्रेणी के द्वारा उत्पन्न होता हुआ वह जीव दो समय वाली विग्रह - गति (अन्तराल - गति) के द्वारा उत्पन्न होता है। द्वितोवक्रा श्रेणी के द्वारा उत्पन्न होता हुआ वह जीव तीन समय वाली विग्रह - गति ( अन्तराल - गति) के द्वारा उत्पन्न होता है । वह इस अपेक्षा से कहा जा रहा है। इसी प्रकार पर्याप्त - बादर - तेजस्कायिक-जीव के रूप में ( उत्पन्न होने पर वक्तव्य है)। शेष जैसा रत्नप्रभा सन्दर्भ में पृथ्वीकायिक- जीव के विषय में बतलाया गया था (भ. ३४।१०) वैसा यहां वक्तव्य है । जो भी अपर्याप्त- और पर्याप्त-बादर-तेजस्कायिक-जीव समय क्षेत्र में मारणातिक - समुद्घात से समवहत होकर दूसरी पृथ्वी (शर्कराप्रभा) के पश्चिम दिशा के चरमान्त में चार प्रकार के पृथ्वीकायिक (भ. ३३।२-३)-, चार प्रकार के अप्कायिक (भ. ३३ । २-३)-, दो प्रकार के तेजस्कायिक (भ. ३४।५) -, चार प्रकार के वायुकायिक (भ. ३३ । २-३) -, चार प्रकार के वनस्पतिकायिक (भ. ३३ ।२-३ ) - जीवों के रूप में उत्पन्न होते हैं, वे भी इसी प्रकार दो समय वाली अथवा तीन समय वाली विग्रह - गति (अन्तराल - गति) के द्वारा उत्पन्न करवाना चाहिए। अपर्याप्त और पर्याप्त - बादर - तेजस्कायिक- जीव जब उन्हीं में (अर्थात् अपर्याप्तऔर पर्याप्त - बादर - तेजस्कायिक- जीवों के रूप में) उत्पन्न होते हैं, तब जिस प्रकार रत्नप्रभा के सन्दर्भ में बतलाया गया था उसी प्रकार एक समय वाली, दो समय वाली, तीन समय वाली विग्रह-गति (अन्तराल - गति) के द्वारा उत्पन्न होने वाले वक्तव्य हैं, शेष जैसा रत्नप्रभा
सन्दर्भ में बतलाया गया है वैसा ही सम्पूर्ण रूप में जानना चाहिए। जैसी शर्कराप्रभा की वक्तव्यता बतलाई गई है उसी प्रकार यावत् 'अधःसप्तमी तक' बतलानी चाहिए । १४. भन्ते ! अपर्याप्त-सूक्ष्म- पृथ्वीकायिक-जीव अधो- लोक - क्षेत्र की ( त्रस ) - नाल के बाहर के क्षेत्र में मारणान्तिक-समुद्घात से समवहत होता है, समवहत होकर जो भव्य (अपर्याप्त- सूक्ष्म-पृथ्वीकायिक-जीव के रूप में उत्पन्न होने की योग्यता प्राप्त ) ऊर्ध्व - लोक - क्षेत्र की (त्रस)-नाल के बाहर के क्षेत्र में अपर्याप्त सूक्ष्म- पृथ्वीकायिक- जीव के रूप में उपपन्न होने योग्य है, भन्ते ! वह कितने समय वाली विग्रह - गति ( अन्तराल - गति) से उत्पन्न होता है ? गौतम ! वह जीव तीन समय वाली अथवा चार समय वाली विग्रह-गति ( अन्तराल - गति) के द्वारा उत्पन्न होता है ।
१५. भन्ते ! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है-तीन समय वाली अथवा चार समय वाली विग्रह-गति (अन्तराल - गति) के द्वारा उत्पन्न होता है ?
गौतम! अपर्याप्त सूक्ष्म-पृथ्वीकायिक- जीव अधो-लोक - क्षेत्र की ( त्रस ) - नाल के बाहर के क्षेत्र में मारणान्तिक-समुद्घात से समवहत होता है, समवहत होकर जो भव्य ऊर्ध्व-लोक- क्षेत्र की (स) - नाल के बाहर के क्षेत्र में अपर्याप्त सूक्ष्म- पृथ्वीकायिक- जीव के रूप में एक प्रतर में अनुश्रेणी के द्वारा उत्पन्न होने की योग्यता प्राप्त है वह तीन समय वाली विग्रह-गति
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