Book Title: Bhagwati Sutra Part 02
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
View full book text
________________
श. ३३ : श. ६-११ : सू. ५४-६०
भगवती सूत्र ५४. भन्ते! अनन्तर-उपपन्न(प्रथम समय के)-कृष्ण-लेश्या वाले भवसिद्धिक-एकेन्द्रिय-जीव कितने प्रकार के प्रज्ञप्त हैं। गौतम! अनन्तर-उपपन्न-कृष्ण-लेश्या वाले भवसिद्धिक-एकेन्द्रिय-जीव पांच प्रकार के प्रज्ञप्त हैं यावत् वनस्पतिकायिक। ५५. भन्ते! अनन्तर-उपपन्न-कृष्ण-लेश्या वाले भवसिद्धिक-पृथ्वीकायिक-जीव कितने प्रकार
के प्रज्ञप्त हैं? गौतम! अनन्तर-उपपन्न-कृष्ण-लेश्या वाले भवसिद्धिक-पृथ्वीकायिक-जीव दो प्रकार के प्रज्ञप्त हैं, जैसे-सूक्ष्म-पृथ्वीकायिक और बादर-पृथ्वीकायिक, इसी प्रकार दो भेद समझने
चाहिए। ५६. भन्ते! अनन्तर-उपपन्न-कृष्ण-लेश्या वाले भवसिद्धिक-सूक्ष्म-पृथ्वीकायिक-जीवों के कितनी कर्म-प्रकृतियां प्रज्ञप्त हैं? इसी प्रकार इस अभिलाप के द्वारा जैसा औधिक (समुच्चय)-अनन्तर-उपपन्न-उद्देशक बतलाया गया वैसा ही यावत् 'वेदन करते हैं' तक समझना चाहिए। इसी प्रकार इस अभिलाप के द्वारा ग्यारह उद्देशक वैसे ही वक्तव्य हैं। जैसे औधिक-शतक में बतलाये गये हैं यावत् 'अचरम' तक समझना चाहिए।
सातवां, आठवां शतक (सातवां शतक) ५७. जैसे कृष्ण-लेश्या वाले भवसिद्धिक-(एकेन्द्रिय)-जीवों के विषय में शतक बताया गया
वैसे ही नील-लेश्या वाले भवसिद्धिक-(एकेन्द्रिय)-जीवों के विषय में भी शतक वक्तव्य
(आठवां शतक) ५८. इसी प्रकार कापोत-लेश्या वाले भवसिद्धिक-(एकेन्द्रिय)-जीवों के विषय में भी शतक वक्तव्य है।
नवां-बारहवां शतक (नवां शतक) अभवसिद्धिक-एकेन्द्रिय-जीवों के कर्म-प्रकृति-पद ५९. भन्ते! अभवसिद्धिक-एकेन्द्रिय-जीव कितने प्रकार के प्रज्ञप्त हैं? गौतम! अभवसिद्धिक-एकेन्द्रिय जीव पांच प्रकार के प्रज्ञप्त हैं, जैसे- पृथ्वीकायिक यावत् वनस्पतिकायिक। इसी प्रकार जैसा भवसिद्धिक-शतक बतलाया गया है वैसा ही वक्तव्य है, केवल इतना अन्तर है-चरम और अचरम इन दो उद्देशकों को छोड़ कर शेष नव उद्देशक वैसे ही जानने चाहिए। (दसवां शतक) ६०. इस प्रकार कृष्ण-लेश्या वाले अभवसिद्धिक-एकेन्द्रिय-जीवों के विषय में भी शतक वक्तव्य है।
९०२