Book Title: Bhagwati Sutra Part 02
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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चौतीसवां शतक पहला एकेन्द्रिय- शतक
पहला उद्देश
एकेन्द्रिय-जीवों के विग्रह-गति का पद
१. भन्ते ! एकेन्द्रिय-जीव कितने प्रकार के प्रज्ञप्त हैं ?
गौतम! एकेन्द्रिय-जीव पांच प्रकार के प्रज्ञप्त हैं, जैसे- पृथ्वीकायिक यावत् वनस्पतिकायिक। इसी प्रकार पृथ्वीकायिक के ये चार भेद वक्तव्य हैं यावत् वनस्पतिकायिक ।
२. भन्ते ! अपर्याप्त-सूक्ष्म - पृथ्वीकायिक- जीव इस रत्नप्रभा - पृथ्वी में पूर्व (दिशा) के चरमान्त में ( मारणान्तिक) - समुद्घात से समवहत होता है, समवहत होकर जो भव्य (अपर्याप्त- सूक्ष्म- पृथ्वीकायिक- जीव के रूप में उपपन्न होने की योग्यता प्राप्त ) इस रत्नप्रभा - पृथ्वी में पश्चिम दिशा के चरमान्त में अपर्याप्त सूक्ष्म - पृथ्वीकायिक- जीव के रूप में उपपन्न होने योग्य है, भन्ते ! वह कितने समय वाली विग्रह - गति ( अन्तराल - गति) के द्वारा उपपन्न होता है ?
गौतम ! वह जीव एक समय वाली अथवा दो समय वाली अथवा तीन समय वाली विग्रह-गति (अन्तराल-गति) के द्वारा उपपन्न होता है ।
३. भन्ते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है वह जीव एक समय वाली अथवा दो समय वाली अथवा यावत् उपपन्न होता है तक ?
गौतम ! मैंने इस प्रकार सात श्रेणियां प्रज्ञप्त की हैं, जैसे- १. ऋजुआयता - जो सीधी और लम्बी हो । २. एकतोवक्रा - जो एक दिशा में वक्र हो । ३. द्वितोवक्रा - जो दोनों ओर वक्र हो । ४. एकतः खहा- जो एक दिशा में अंकुश की तरह मुड़ी हुई हो; जिसके एक ओर त्रसनाडी का आकाश हो । ५. द्वितः खहा- जो दोनों ओर अंकुश की तरह मुडी हुई हो, जिसके दोनों ओर त्रसनाड़ी का आकाश हो । ६. चक्रवाला - जो वलय की आकृति वाली
। ७. अर्द्ध-चक्रवाला - जो अर्द्धवलय की आकृति वाली हो । ऋजुआयता-श्रेणी के द्वारा उपपन्न होता हुआ वह जीव एक समय वाली विग्रह - गति ( अन्तराल गति) के द्वारा उपपन्न होता है। एकतोवक्रा श्रेणी के द्वारा उपपन्न होता हुआ वह जीव दो समय वाली विग्रह-गति (अन्तराल-गति) द्वारा उपपन्न होता है । द्वितोवक्रा - श्रेणी के द्वारा उपपन्न होता हुआ वह जीव तीन समय वाली विग्रह - गति ( अन्तराल - गति) के द्वारा उपपन्न होता है । गौतम ! यह इस अपेक्षा से कहा जा रहा है । यावत् उपपन्न होता है ।
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