Book Title: Bhagwati Sutra Part 02
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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इक्कतीसवां शतक
पहला उद्देशक १. राजगृह नगर में यावत् इस प्रकार बोले-भन्ते! क्षुल्लक-युग्म कितने प्रज्ञप्त हैं? गौतम! क्षुल्लक-युग्म चार प्रज्ञप्त हैं, जैसे–कृतयुग्म (चार), त्र्योज (तीन), द्वापरयुग्म (दो), कल्योज (एक)। २. भन्ते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है-क्षुल्लक-युग्म चार प्रज्ञप्त हैं, जैसे–कृतयुग्मयावत् कल्योज? गौतम! जो राशि चार (संख्या) द्वारा अपहत होने पर चार शेष रहती है उसे क्षुल्लक-कृतयुग्म कहा जाता है। (जैसे–चार, आठ, बारह, आदि संख्या वाली राशि क्षुल्लक-कृतयुग्म हैं)। जो राशि चार (संख्या) द्वारा अपहत होने पर तीन शेष रहती हैं उसे क्षुल्लक-त्र्योज कहा जाता है। (तीन, सात, ग्यारह आदि संख्या वाली राशि क्षुल्लक-त्र्योज हैं)। जो राशि चार (संख्या) द्वारा अपहृत होने पर दो शेष रहती है, उसे क्षुल्लक-द्वापरयुग्म कहा जाता है। (दो, छह, दस आदि संख्या वाली राशि क्षुल्लक-द्वापरयुग्म हैं)। जो राशि चार (संख्या) द्वारा अपहृत होने पर एक शेष रहती है उसे क्षुल्लक-कल्योज कहा जाता है। (एक, पांच, नौ आदि संख्या वाली राशि क्षुल्लक-कल्योज है) यह इस अपेक्षा से यावत् कल्योज। ३. भन्ते! क्षुल्लक-कृतयुग्म-नैरयिक-जीव कहां से आकर उपपन्न होते हैं-क्या नैरयिक-जीवों से आकर उपपन्न होते हैं? तिर्यग्योनिक जीवों से आकर उपपन्न होते हैं....पृच्छा। गौतम! क्षुल्लक-कृतयुग्म-नैरयिक-जीव नैरयिक-जीवों से आकर उपपन्न नहीं होते। इसी प्रकार नैरयिकों का उपपात जैसे पण्णवणा के छठे पद 'अवक्रान्ति' (सू. १७-८०) में बतलाया गया है वैसे वक्तव्य हैं। ४. भन्ते! एक समय में वे जीव कितने उपपन्न होते हैं? गौतम! क्षुल्लक-कृतयुग्म-नैरयिक-जीव एक समय में चार, आठ, बारह, सोलह, संख्येय अथवा असंख्येय उपपन्न होते हैं। ५. भन्ते! वे जीव कैसे उपपन्न होते हैं?
गौतम! जिस प्रकार काई प्लवक (कूदने वाला) कूदता हुआ मुझे इस प्रकार अध्यवसाय का निर्वर्तन करके कूदने की क्रिया के उपाय से, इसी प्रकार जैसे २५वे शतक में आठवें उद्देशक
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