Book Title: Bhagwati Sutra Part 02
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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श. ३० : उ. १ : सू. ६-१२
भगवती सूत्र वक्तव्यता। सवेदक- यावत् नपुंसक-वेदक-जीव की लेश्या-युक्त जीवों की भांति वक्तव्यता। अवेदक की लेश्या-रहित-जीवों की भांति वक्तव्यता। कषाय-सहित-जीव यावत् लोभकषाय-युक्त की लेश्या-सहित-जीवों की भांति वक्तव्यता। कषाय-रहित-जीवों की। लेश्यारहित-जीवों की भांति वक्तव्यता। सयोग यावत् काय-योगी-जीवों की लेश्या-युक्त-जीवों की भांति वक्तव्यता। अयोगी-जीवों की लेश्या-रहित-जीवों की भांति वक्तव्यता। साकारोपयुक्त-अनाकारोपयुक्त-जीवों की लेश्या-युक्त जीवों की भांति वक्तव्यता। ७. भन्ते! नैरयिक-जीव क्या क्रियावादी हैं......? पृच्छा। गौतम! नैरयिक जीव क्रियावादी भी हैं यावत् वैनयिकवादी भी हैं। ८. भन्ते! लेश्या-युक्त-नैरयिक जीव क्या क्रियावादी हैं? पूर्ववत् वक्तव्यता। इसी प्रकार यावत् कापोत-लेश्या वाले नैरयिक-जीवों की वक्तव्यता। कृष्णपाक्षिक-नैरयिक-जीव क्रियावादी को छोड़ कर शेष सब हैं। इसी प्रकार इस क्रम से जीवों की जो वक्तव्यता, वही नैरयिकों की वक्तव्यता है यावत् अनाकारोपयुक्त-नैरयिक, इतना विशेष है जो है, वह वक्तव्य है, शेष वक्तव्य नहीं है। जिस प्रकार नैरयिकों की वक्तव्यता उसी प्रकार यावत् स्तनितकुमारों की वक्तव्यता। ९. भन्ते! पृथ्वीकायिक-जीव क्या क्रियावादी हैं.....? पृच्छा। गौतम! पृथ्वीकायिक-जीव क्रियावादी नहीं हैं, अक्रियावादी भी हैं, अज्ञानिकवादी भी हैं, वैनयिकवादी नहीं हैं। इसी प्रकार पृथ्वीकायिक-जीवों में जो प्राप्ति है, उन सबमें सर्वत्र ये दो मध्यम समवसरण वक्तव्य हैं यावत् अनाकारोपयुक्त। इसी प्रकार यावत् चतुरिन्द्रिय-जीवों की वक्तव्यता। सब स्थानों में ये दो मध्यम समवसरण वक्तव्य हैं। सम्यक्त्व और ज्ञान के विषय में भी ये ही दो मध्यम समवसरण वक्तव्य हैं। तिर्यग्योनिक-पञ्चेन्द्रिय की (भ. ३०/ २) जीवों की भांति वक्तव्यता, इतना विशेष है-जो जिसमें है वह उसमें वक्तव्य है। मनुष्यों की जीवों की भांति निरवशेष वक्तव्य। वानमन्तर-देवों, ज्योतिषिक-देवों तथा वैमानिक-देवों में असुरकुमारों की भांति वक्तव्यता। १०. भन्ते! क्रियावादी जीव क्या नैरयिक-आयु का बन्ध करते हैं? तिर्यग्योनिक-आयु का
बन्ध करते हैं? मनुष्य-आयु का बन्ध करते हैं? देव-आयु का बन्ध करते हैं? गौतम! क्रियावादी जीव नैरयिक-आयु का बन्ध नहीं करते, तिर्यग्योनिक-आयु का बन्ध नहीं
करते हैं, मनुष्य-आयु का बन्ध भी करते हैं, देव-आयु का बन्ध भी करते हैं। ११. यदि वे देव-आयु का बन्ध करते हैं तो क्या भवनवासी-देव-आयु का बन्ध करते हैं यावत् वैमानिक-देव-आयु का बन्ध करते हैं? गौतम! वे भवनवासी-देव-आयु का बन्ध नहीं करते, वानमन्तर-देव-आयु का बन्ध नहीं
करते, ज्योतिष्क-देव-आयु का बन्ध नहीं करते, वैमानिक-देव-आयु का बन्ध करते हैं। १२. भन्ते! अक्रियावादी जीव क्या नैरयिक-आयु का बन्ध करते हैं, तिर्यग्योनिक-आयु का बन्ध करते हैं........? पृच्छा। गौतम! अक्रियावादी जीव नैरयिक-आयु का बन्ध भी करते हैं, यावत् देव-आयु का भी बन्ध
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