Book Title: Bhagwati Sutra Part 02
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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श. २९ : उ. १-११ : सू. ४-१०
भगवती सूत्र
एक साथ किया था......? पृच्छा। गौतम! कुछ नैरयिकों ने पाप-कर्म के वेदन का प्रारंभ एक साथ किया था, इसी प्रकार जैसे जीवों की वक्तव्यता, वैसे ही नैरयिकों की वक्तव्यता यावत् अनाकारोपयुक्त-जीवों की वक्तव्यता। इसी प्रकार यावत् वैमानिकों की जिसमें जो प्राप्त है वह इसी क्रम से वक्तव्य है। जिस प्रकार पाप-कर्म का दण्डक है उसी क्रम से आठों ही कर्म-प्रकृतियों के आठ दण्डक वक्तव्य हैं-जीव से लेकर वैमानिक-पर्यवसान है। नव दण्डक में संगृहीत यह प्रथम उद्देशक
वक्तव्य है। ५. भन्ते! वह ऐसा ही है। भन्ते! वह ऐसा ही है।
दूसरा उद्देशक ६. भंते! अनन्तर-उपपन्नक-नैरयिकों ने पाप-कर्म के वेदन का प्रारम्भ एक साथ किया था और
अन्त एक साथ किया था........? पृच्छा । गौतम! अनन्तर-उपपन्न कुछ नैरयिकों ने पाप-कर्म के वेदन का प्रारंभ एक साथ किया था
और उनका अन्त एक साथ किया था, कुछ नैरयिकों ने पाप-कर्म के वेदन का प्रारंभ एक साथ किया था, उसका अन्त विषम-काल में किया था। ७. भन्ते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है कुछ नैरयिकों ने पाप-कर्म के वेदन का प्रारंभ एक साथ किया था? पूर्ववत्.........? गौतम! अनन्तर-उपपन्न-नैरयिक दो प्रकार के प्रज्ञप्त हैं, जैसे कुछ नैरयिक सम-आयु और एक साथ उपपन्न हैं, कुछ नैरयिक सम-आयु और विषम-काल में उपपन्न हैं। इनमें जो सम-आयु और एक साथ उपपन्न हैं उन्होंने पाप-कर्म के वेदन का प्रारम्भ एक साथ किया और उसका अन्त एक साथ किया था। जो सम-आयु और विषम-काल में उपपन्न हैं उन्होंने पापकर्म के वेदन का प्रारम्भ एक साथ किया था और अन्त विषम-काल में किया था। यह इस
अपेक्षा से यह कहा जा रहा है-पूर्ववत् वक्तव्य है। ८. भन्ते! लेश्या-युक्त-अनन्तर-उपपन्नक-नैरयिकों ने पाप-कर्म के वेदन का प्रारम्भ एक साथ किया था और उसका अन्त एक साथ किया था....?
इसी प्रकार पूर्ववत् वक्तव्यता, यावत् अनाकरोपयुक्त-जीवों की वक्तव्य हैं। इसी प्रकार असुरकुमारों की भी वक्तव्यता है। इसी प्रकार यावत् वैमानिकों की वक्तव्यता। इतना अन्तर है जिसके जो प्राप्त हैं, उसके वह वक्तव्य है। इसी प्रकार ज्ञानावरणीय-कर्म के साथ भी। इसी प्रकार निरवशेष वक्तव्यता यावत् अंतराय-कर्म के साथ। ९. भन्ते! वह ऐसा ही है। भन्ते! वह ऐसा ही है। इस प्रकार भगवान् गौतम यावत् संयम और तप से अपने आप को भावित करते हुवे विहरण कर रहे हैं।
तीसरा-ग्यारहवां उद्देशक १०. इसी प्रकार इस गमक के द्वारा बन्धि-शतक में जो उद्देशकों की परिपाटी बताई गई है वही यहां भी वक्तव्य है यावत् अचरम-उद्देशक। अनन्तर-उद्देशकों के चार की वक्तव्यता एक है, शेष सात उद्देशकों की वक्तव्यता एक है।
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