Book Title: Bhagwati Sutra Part 02
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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भगवती सूत्र
श. २८ : उ. १-११: सू. ४-८
४. भन्ते ! वह ऐसा ही है । भन्ते ! वह ऐसा ही है । इस प्रकार भगवान् गौतम यावत् संयम और तप से अपने आप को भावित करते हुए विहरण कर रहे हैं।
दूसरा उद्देशक
५. भन्ते ! अनन्तर - उपपत्र ( प्रथम समय के ) - नैरयिकों ने पाप कर्म का समर्जन कहां किया था ? समाचरण कहां किया था ?
गौतम! सभी अनन्तर - उपपन्न - नैरयिकों - तिर्यग्योनिकों में पाप कर्म का समर्जन किया था, समाचरण किया था, इसी प्रकार यहां भी आठ भंग वक्तव्य हैं। इसी प्रकार अनन्तर - उपपन्न- नैरयिकों के जिसमें जो है, लेश्या से लेकर अनाकार - उपयोग उपयुक्त पर्यवसान सभी इस भजना के द्वारा वक्तव्य हैं यावत् वैमानिक, इतना विशेष है - अनन्तर - उपपन्नक-जीवों में जो परिहरणीय है, उनका बन्धि-शतक (भ. २६वां शतक) की भांति यहां परिहार करणीय है । इसी प्रकार ज्ञानावरणीय कर्म के साथ भी दण्डक वक्तव्य हैं। इसी प्रकार यावत् अन्तराय- कर्म के साथ निरवशेष वक्तव्यता । नव दण्डकों में संगृहीत यह उद्देशक वक्तव्य है। ६. भन्ते ! वह ऐसा ही है । भन्ते ! वह ऐसा ही है ।
तीसरा- ग्यारहवां उद्देशक
७. इसी प्रकार इस क्रम से जैसे बन्धि-शतक (भ. २६ वें शतक) में उद्देशकों की परिपाटी है वैसे ही यहां भी आठ भंग ज्ञातव्य हैं, इतना विशेष है - यह ज्ञातव्य है जो जिसमें प्राप्त है वह वक्तव्य है यावत् अचरम - उद्देशक ये सभी ग्यारह उद्देशक वक्तव्य हैं।
८. भन्ते ! वह ऐसा ही है । भन्ते ! वह ऐसा ही है । इस प्रकार भगवान् गौतम यावत् विहरण कर रहे हैं।
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