Book Title: Bhagwati Sutra Part 02
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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भगवती सूत्र
श. २६ : उ. १ : सू. १९-२६ शेष तीन भंग वक्तव्य हैं। अयोगी जीव में चरम भंग की वक्तव्यता। शेष सब जीवों में प्रथम, द्वितीय भंग की वक्तव्यता। २०. भन्ते! क्या नैरयिक-जीव वेदनीय-कर्म का बन्ध करता था, कर रहा है, करेगा? (भ. २६/१८) इसी प्रकार नैरयिक यावत् वैमानिकों की वक्तव्यता। जिसमें जो बोल प्राप्त होता है उसमें सर्वत्र ही प्रथम, द्वितीय भंग वक्तव्य है, केवल इतना विशेष है-मनुष्य में जीव की भांति वक्तव्यता। २१. भन्ते! क्या जीव मोहनीय-कर्म का बन्ध करता था, कर रहा है, करेगा? (भ. २६/१८) जैसे पाप-कर्म के बन्ध की वक्तव्यता (भ. २६/१८) वैसे ही मोहनीय कर्म की भी अविकल रूप से यावत् वक्तव्यता वैमानिक तक। २२. भन्ते! क्या जीव आयुष्य-कर्म का बन्ध करता था, कर रहा है.....? पृच्छा। (भ. २६/
१८)
गौतम! कोई जीव आयुष्य-कर्म का बन्ध करता था, (कर रहा है और करेगा) चार भंग वक्तव्य है (भ. २६/१)। सलेश्य जीव यावत् शुक्ल-लेश्य जीव में चार भंग की वक्तव्यता।
अलेश्य में चरम भंग की वक्तव्यता।। २३. कृष्णपाक्षिक जीव .............? पृच्छा। (भ. २६/२२) गौतम! कोई कृष्णपाक्षिक जीव आयुष्य-कर्म का बंध करता था, कर रहा है करेगा, कोई कृष्ण-पाक्षिक जीव आयुष्य-कर्म का बन्ध करता था, नहीं कर रहा है, करेगा। शुक्लपाक्षिक, सम्यग्-दृष्टि और मिथ्या-दृष्टि में चार भंग की वक्तव्यता। २४. सम्यग्-मिथ्यादृष्टि ..............? पृच्छा। (भ. २६/२२) गौतम! कोई सम्यग्-मिथ्या-दृष्टि जीव आयुष्य-कर्म का बन्ध करता था, नहीं कर रहा है, करेगा, कोई सम्यग्-मिथ्या-दृष्टि जीव आयुष्य-कर्म का बन्ध करता था, नहीं कर रहा है, नहीं करेगा। ज्ञानी जीव यावत् अवधि-ज्ञानी जीव में चार भंग की वक्तव्यता। २५. मनःपर्यव-ज्ञानी ...............? पृच्छा। (भ. २६/२२) गौतम! कोई मनःपर्यव-ज्ञानी जीव आयुष्य-कर्म का बन्ध करता था, कर रहा है, करेगा। कोई मनःपर्यव-ज्ञानी जीव आयुष्य-कर्म का बन्ध करता था, नहीं कर रहा है, करेगा। कोई मनःपर्यव-ज्ञानी जीव आयुष्य-कर्म का बन्ध करता था, नहीं कर रहा है, नहीं करेगा। केवल-ज्ञान (केवल-ज्ञानी) में चरम भंग की वक्तव्यता। इसी प्रकार इस क्रम से नो-संज्ञोपयुक्त जीव में मनःपर्यव-ज्ञानी की भांति द्वितीय भंग छोड़कर शेष तीन भंग वक्तव्य है। अवेदक और कषाय-रहित जीव में सम्यग्-मिथ्यादृष्टि की भांति तृतीय, चतुर्थ भंग की वक्तव्यता। अयोगी जीव में चरम भंग की वक्तव्यता, शेष पदों में चारों भंग यावत् अनाकार-उपयोग-युक्त में। २६. भन्ते! क्या नैरयिक-जीव आयुष्य-कर्म का बन्ध करता था....? पृच्छा। (भ. २६/२२) गौतम! कोई नैरयिक जीव में चारों भंग वक्तव्य है। इसी प्रकार सर्वत्र नैरयिक-जीवों में चारों भंग वक्तव्य है। केवल इतना विशेष है-कृष्ण-लेश्य और कृष्णपाक्षिक में प्रथम, तृतीय भंग,
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