Book Title: Bhagwati Sutra Part 02
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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भगवती सूत्र
श. २६ : उ. २-१० : सू. ३०-३४ गौतम! प्रथम, द्वितीय भंग की वक्तव्यता, इसी प्रकार सर्वत्र प्रथम, द्वितीय भंग की वक्तव्यता, इतना विशेष है-(अनन्तर-उपपन्न-नैरयिक में पाप-कर्म के विषय में) सम्यग्-मिथ्या-दृष्टि, मन-योग और वचन-योग की पृच्छा अपेक्षित नहीं हैं। इसी प्रकार यावत् स्तनितकुमारों की वक्तव्यता। द्वीन्द्रिय-, त्रीन्द्रिय- और चतुरिन्द्रिय-जीव में वचन-योग का पद विविक्षत नहीं है। पंचेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक जीव में भी सम्यग-मिथ्या-दृष्टि, अवधि-ज्ञान, विभंग-ज्ञान, मनयोग और वचन-योग-इनकी वक्तव्यता अपेक्षित नहीं है। मनुष्यों में अलेश्य, सम्यग्-मिथ्यादृष्टि, मनःपर्यव-ज्ञान, केवल-ज्ञान, विभंग-ज्ञान, नो-संज्ञोपयुक्त, अवेदक, अकषाय, मनयोग, वचन-योग और अयोगी-ये इन ग्यारह पदों की वक्तव्यता अपेक्षित नहीं है।
वानमन्तर-, ज्योतिषिक- और वैमानिक-देव में नैरयिक की भांति तीन पद (सम्यग्-मिथ्यादृष्टि, मन-योग और वचन-योग) की वक्तव्यता अपेक्षित नहीं है। सभी जीवों के जो शेष स्थान हैं, उनमें सर्वत्र प्रथम, द्वितीय भंग वक्तव्य है। एकेन्द्रिय-जीव में सर्वत्र प्रथम, द्वितीय भंग वक्तव्य है। जैसी पाप की वक्तव्यता है, वैसी ही ज्ञानावरणीय-कर्म का दण्डक भी वक्तव्य है, इसी प्रकार आयुष्य-कर्म को छोड़कर यावत् अन्तराय-कर्म का दण्डक वक्तव्य है। ३१. भन्ते! अनन्तर-उपपन्न-नैरयिक-जीव क्या आयुष्य-कर्म का बन्ध करता था....? पृच्छा। (भ. २६/२९) गौतम! अनन्तर-उपपन्न-नैरयिक-जीव ने आयुष्य-कर्म का बन्ध किया था, नहीं कर रहा है,
करेगा। ३२. भन्ते! सलेश्य-अनन्तर-उपपन्नक-नैरयिक-जीव ने क्या आयुष्य-कर्म का बन्ध किया
था? (भ. २६/२९)। इसी प्रकार तृतीय भंग वक्तव्य है। इसी प्रकार यावत् अनाकार-उपयोग-उपयुक्त-नैरयिक-जीव की वक्तव्यता। सर्वत्र तृतीय भंग वक्तव्य है। इसी प्रकार मनुष्य को छोड़कर यावत् (उपपन्न) वैमानिक-देवों की वक्तव्यता। (तृतीय भंग) मनुष्य के सर्वत्र तृतीय और चतुर्थ भंग वक्तव्यता, इतना विशेष है-कृष्णपाक्षिक मनुष्य में तृतीय भंग। सभी (अनन्तर-उत्पन्न)-जीवों में जो नानात्व है, वह पूर्ववत् वक्तव्य है। ३३. भन्ते! वह ऐसा हो है। भन्ते! वह ऐसा ही है।
तीसरा-दसवां उद्देशक
___ तीसरा उद्देशक (परम्पर-उपपन्नक का बन्धाबन्ध) ३४. भन्ते! परम्पर-उपपन्नक (प्रथम समय को छोड़कर दूसरे, तीसरे आदि समय के)-नैरयिक-जीव ने क्या पाप-कर्म का बन्ध किया था?.....पृच्छा। (भ. २६/१) गौतम! परम्पर-उपपन्नक किसी नैरयिक-जीव ने पाप कर्म का बंध किया था। प्रथम, द्वितीय भंग वक्तव्य है। इसी प्रकार जैसे प्रथम उद्देशक की वक्तव्यता थी वैसे ही परम्पर-उपपन्न-नैरयिक के विषय में भी उद्देशक वक्तव्य है। यहां नैरयिक आदि-चौबीस दण्डकों के परम्पर-उपपन्न-जीवों के विषय में परम्पर-उपपन्न-नैरयिक आदि की भांति नव दण्डकों (पाप-कर्म
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