Book Title: Bhagwati Sutra Part 02
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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श. २५ : उ. ७ : सू. ५४२-५४९
भगवती सूत्र प्रकार छेदोपस्थापनिक-संयत की भी वक्तव्यता। परिहारविशुद्धिक-संयत की पुलाक की भांति वक्तव्यता (भ. २५/४३५)। सूक्ष्मसम्पराय-संयत की निर्ग्रन्थ की भांति वक्तव्यता (भ. २५/४३८)। यथाख्यात-संयत की स्नातक की भांति वक्तव्यता (भ. २५/४३९)। क्षेत्र-पद ५४३. भन्ते! सामायिक-संयत क्या लोक के संख्यातवें भाग में होता है, असंख्यातवें भाग में होता है?......पृच्छा। (भ. २५/४४०) गौतम! संख्यातवें भाग में नहीं होता पुलाक की भांति वक्तव्यता (भ. २५/४४०)। इसी प्रकार यावत् सूक्ष्मसम्पराय-संयत की वक्तव्यता। यथाख्यात-संयत की स्नातक की भांति
वक्तव्यता (भ. २५/४४१)। स्पर्शना-पद ५४४. भन्ते! कया सामायिक-संयत लोक के संख्यातवें भाग का स्पर्श करता है?
पांचों प्रकार के संयतों की जैसे होने की वक्तव्यता (भ.२५/५४३) वैसे स्पर्श की वक्तव्यता। भाव-पद ५४५. भन्ते! सामायिक-संयत कौन से भाव में होता है?
गौतम! क्षायोपशमिक-भाव में होता है। इसी प्रकार यावत् सूक्ष्मसंपराय-संयत की वक्तव्यता। ५४६. यथाख्यात-संयत .........? पृच्छा (भ. २५/५४५)।
गौतम! औपशमिक-भाव में होता है अथवा क्षायिक-भाव में होता है। परिमाण-पद ५४७. भन्ते! सामायिक-संयत एक समय में कितने होते हैं? गौतम! प्रतिपाद्यमान की अपेक्षा कषाय-कुशील की भांति निरवशेष वक्तव्यता (भ. २५/
४४८)। ५४८. छेदोपस्थापनिक-संयत ..........? पृच्छा (भ. २५/५४७)। गौतम! प्रतिपद्यमान की अपेक्षा स्यात् होते हैं, स्यात् नहीं होते। यदि होते हैं तो जघन्यतः एक अथवा दो अथवा तीन, उत्कृष्टतः पृथक्त्व-सौ (दो सौ से नौ सौ तक) होते हैं। छेदोपस्थापनिक-संयत पूर्व प्रतिपद्यमान की अपेक्षा स्यात् होते हैं, स्यात् नहीं होते। यदि होते हैं तो जघन्यतः पृथक्त्व-सौ-कोटि (दो सौ से नौ सौ कोटि) होते हैं, उत्कृष्टतः भी पृथक्त्व-सौ-कोटि। परिहारविशुद्धिक-संयत पुलाक (भ. २५/४४६) की भांति वक्तव्यता।
सूक्ष्मसम्पराय-संयत निग्रंथ की भांति वक्तव्यता (भ. २५/४४९)।। ५४९. यथाख्यात-संयत ............? पृच्छा (भ. २५/५४७)। गौतम! प्रतिपद्यमान पर्याय की अपेक्षा स्यात् होते हैं, स्यात् नहीं होते। यदि होते हैं तो जघन्यतः एक अथवा दो अथवा तीन, उत्कृष्टतः एक-सौ-बासठ-एक-सौ-आठ यथाख्यात-संयत क्षपक-श्रेणी वाले होते हैं और चौपन यथाख्यात-संयत उपशम-श्रेणी वाले होते हैं।
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