Book Title: Bhagwati Sutra Part 02
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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श. २५ : उ. ७ : सू. ५२३-५३२
भगवती सूत्र
आहार-पद ५२३. भन्ते! सामायिक-संयत क्या आहारक होता है? अनाहारक होता है? पुलाक की भांति वक्तव्यता (भ. २५/४११)। इसी प्रकार यावत् सूक्ष्मसम्पराय-संयत की वक्तव्यता। यथाख्यात-संयत की स्नातक की भांति वक्तव्यता (भ. २५/४१२)। भव-पद ५२४. भन्ते! सामायिक-संयत कितने जन्मों में होता है? गौतम! जघन्यतः एक, उत्कृष्टतः आठ जन्मों में होता। इसी प्रकार छेदोपस्थानिक-संयत की
वक्तव्यता। ५२५. परिहारविशुद्धिक-संयत.........? पृच्छा (भ. २५/५२४)। गौतम! जघन्यतः एक, उत्कृष्टतः तीन जन्मों में होता है। इसी प्रकार यावत् यथाख्यात-संयत
की वक्तव्यता। आकर्ष-पद ५२६. भन्ते! सामायिक-संयत के एक भव में कितने आकर्ष-स्पर्श-सामायिक-संयतत्व के स्पर्श प्रज्ञप्त हैं? गौतम! जघन्यतः एक, बकुश की भांति वक्तव्यता (भ. २५/४१७)। ५२७. छेदोपस्थापनिक-संयत.......? पृच्छा (भ. २५/५२६)।
गौतम! जघन्यतः एक, उत्कृष्टतः पृथक्त्व-बीस (एक सौ बीस) आकर्ष। ५२८. परिहारविशुद्धिक-संयत ..............? पृच्छा (भ. २५/५२६)।
गौतम! जघन्यतः एक, उत्कृष्टतः तीन आकर्ष। ५२९. सूक्ष्मसम्पराय-संयत.......? पृच्छा (भ. २५/५२६)।
गौतम! जघन्यतः एक, उत्कृष्टतः चार आकर्ष। ५३०. यथाख्यात-संयत ..........? पृच्छा (भ. २५/५२६)।
गौतम! जघन्यतः एक, उत्कृष्टतः दो आकर्ष। ५३१. भन्ते! सामायिक-संयत के अनेक जन्मों में कितने आकर्ष–सामायिक-संयतत्व के स्पर्श प्रज्ञप्त हैं? गौतम! बकुश की भांति वक्तव्यता (भ. २५/४२१)। ५३२. छेदोपस्थापनिक-संयत .............? पृच्छा (भ. २५/५३१)। गौतम! जघन्यतः दो, उत्कृष्टतः नौ सौ से अधिक और हजार से कम (नौ सौ साठ) आकर्ष। परिहारविशुद्धिक-संयत के जघन्यतः दो, उत्कृष्टतः सात आकर्ष। सूक्ष्मसम्पराय-संयत के जघन्यतः दो, उत्कृष्टतः नव आकर्ष। यथाख्यात-संयत के जघन्यतः दो, उत्कृष्टतः पांच आकर्ष होते हैं।
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