Book Title: Bhagwati Sutra Part 02
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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श. २५ : उ. ७ : सू. ४९४-४९८
भगवती सूत्र गौतम! हीन नहीं है, तुल्य नहीं है, अभ्यधिक है-अनन्त-गुणा अभ्यधिक है। इसी प्रकार छेदोपस्थापनिक-संयत और परिहारविशुद्धिक-संयत की तुल्य वक्तव्यता। अपने सजातीय स्थान वाले स्यात् हीन है, तुल्य नहीं होता, स्यात् अभ्यधिक है। यदि हीन है तो अनन्त-गुणा हीन है, यदि अभ्यधिक है तो अनन्त-गुणा अभ्यधिक। ४९५. सूक्ष्मसम्पराय-संयत विजातीय संयम-स्थानों के संयोजन की अपेक्षा यथाख्यात-संयत ...........? पृच्छा। (भ. २५/४९४) गौतम! हीन है, तुल्य नहीं है, अभ्यधिक नहीं है, अनन्त-गुणा-हीन है। यथाख्यात-संयत विजातीय संयम-स्थानों की अपेक्षा अधोवर्ती चारों संयतों (सामायिक-संयत, छेदोपस्थापनिक-संयत, परिहारविशुद्धिक-संयत और सूक्ष्मसम्पराय-संयत) के चारित्र-पर्यवों से हीन नहीं है, तुल्य नहीं है, अभ्यधिक है-अनन्त-गुणा-अभ्यधिक है। यथाख्यात-संयत सजातीय संयम-स्थानों के संयोजन की अपेक्षा चारित्र-पर्यवों से हीन नहीं है, तुल्य है, अभ्यधिक नहीं है। ४९६. भन्ते! इन सामायिक-, छेदोपस्थापनिक-, परिहारविशुद्धिक-, सूक्ष्मसम्पराय- और यथाख्यात-संयतों के जघन्य और उत्कृष्ट चारित्र-पर्यवों में कौन-किनसे अल्प? बहुत ? तुल्य? या विशेषाधिक है? गौतम! (१,२) सामायिक-संयत और छेदोपस्थापनिक-संयत-इन दोनों के जघन्य चारित्र-पर्यव परस्पर तुल्य और सबसे अल्प होते हैं। (३) परिहारविशुद्धिक-संयत के जघन्य चारित्र-पर्यव इनसे अनन्त-गुणा होते हैं। (४) उसके (परिहारविशुद्धिक-संयत के) ही उत्कृष्ट चारित्र-पर्यव इनसे अनन्त-गुणा होते हैं। (५,६) सामायिक-संयत और छेदोपस्थापनिक-संयत इन दोनों के उत्कृष्ट चारित्र-पर्यव परस्पर तुल्य और इनसे अनन्त-गुणा होते हैं। (७) सूक्ष्मसम्पराय-संयत के जघन्य चारित्र-पर्यव इनसे अनन्त-गुणा होते हैं। (८) उसके (सूक्ष्मसम्पराय-संयत के) ही उत्कृष्ट चारित्र-पर्यव इनसे अनन्त-गुणा होते हैं। (९) यथाव्यात-संयत के अजघन्य-अनुत्कृष्ट केवल एक चारित्र-पर्यव इनसे अनन्त-गुणा होता है। योग-पद ४९७. भन्ते! क्या सामायिक-संयत सयोगी होता है? अयोगी होता है? गौतम! सयोगी होता है, पुलाक की भांति वक्तव्यता (भ. २५/३६३,३६४)। इसी प्रकार यावत् सूक्ष्मसम्पराय-संयत की वक्तव्यता। यथाख्यात-संयत की स्नातक की भांति वक्तव्यता (भ. २५/३६५)। उपयोग-पद ४९८. भन्ते! क्या सामायिक-संयत साकार-उपयोग वाला होता है? अनाकार-उपयोग वाला होता है? गौतम! साकार-उपयोग वाला होता है, पुलाक की भांति वक्तव्यता (भ. २५/३६६)। इसी प्रकार यावत् यथाख्यात-संयत की वक्तव्यता, केवल इतना विशेष है-सूक्ष्मसम्पराय-संयत साकार-उपयोग वाला होता है, अनाकार-उपयोग वाला नहीं होता।
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