Book Title: Bhagwati Sutra Part 02
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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भगवती सूत्र
श. १५ : सू. १८६
तक (पण्णवणा, १/५०) हैं, उनमें अनेक शतसहस्र बार मर कर पुनः उन्हीं जीवों के रूप में बार-बार जन्म लेगा ।
इन सभी स्थानों में भी शस्त्रवध्य होता हुआ दाह की उत्पत्ति से कालमास में काल को प्राप्त कर ये जो द्वीन्द्रिय जीवों के भेदों का विधान किया गया है, जैसे—–पुलाकृमिक यावत् समुद्रलिक्षा तक (पण्णवणा, १/४९) हैं, उनमें अनेक शत सहस्र बार मर कर पुनः उन्हीं जीवों के रूप में बार-बार जन्म लेगा ।
इन सभी स्थानों में भी शस्त्रवध्य होता हुआ दाह की उत्पत्ति से कालमास में काल को प्राप्त कर ये जो वनस्पति-जीवों के भेदों का विधान किया गया है, जैसे- वृक्ष, गुच्छ यावत् कुहण (भुंफोड आदि) तक (पण्णवणा, १/३३) हैं, उनमें अनेक शत - सहस्र बार मर कर पुनः उन्हीं जीवों के रूप में बार-बार जन्म लेगा - बहुल रूप में कटुकवृक्ष, कटुकवल्ली में बार-बार जन्म लेगा ।
इन सभी स्थानों में भी शस्त्रवध्य होता हुआ दाह की उत्पत्ति से कालमास में काला कर ये जो वायुकायिक- जीवों के भेदों का विधान किया गया है, जैसे- पूर्ववात यावत् शुद्धवात तक (पण्णवणा, १/२९) हैं, उनमें अनेक शत- सहस्र बार मर कर पुनः उन्हीं जीवों के रूप में बार-बार जन्म लेगा ।
इन सभी स्थानों में भी शस्त्रवध्य होता हुआ दाह की उत्पत्ति से कालमास में काल को प्राप्त कर ये जो तेजस्कायिक जीवों के भेदों का विधान किया गया है, जैसे- अंगार यावत् सूर्यकान्तमणि निश्रित अग्नि तक (पण्णवणा, १/२६) हैं, उनमें अनेक शत - सहस्र बार मर कर पुनः उन्हीं जीवों के रूप में बार-बार जन्म लेगा ।
इन सभी स्थानों में भी शस्त्रवध्य होता हुआ दाह की उत्पत्ति से कालमास में काल को प्राप्त कर ये जो अप्कायिक जीवों के भेदों का विधान किया गया है, जैसे-ओस, यावत् खातोदग (खाई का पानी) तक (पण्णवणा, १/२३) हैं, उनमें अनेक शत- सहस्र बार मर कर पुनः उन्हीं जीवों के रूप में बार-बार जन्म लेगा - बहुलरूप में खाराजल और खातोदग में बारबार जन्म लेगा ।
इन सभी स्थानों में भी शस्त्रवध्य होता हुआ दाह की उत्पत्ति से कालमास में काल को प्राप्त कर ये जो पृथ्वीकायिक जीवों के भेदों का विधान किया गया है, जैसे- शर्करा यावत् सूर्यकान्त तक (पण्णवणा, १/२०) हैं, उनमें अनेक शत - सहस्र बार मर कर पुनः उन्हीं जीवों के रूप में बार-बार जन्म लेगा - बहुल रूप में खर बादर पृथ्वीकायिक जीवों में कठोर पृथ्वी में बार-बार जन्म लेगा ।
इन सभी स्थानों में भी शस्त्रवध्य होता हुआ दाह की उत्पत्ति से कालमास में काल को प्राप्त कर राजगृह नगर में बाहर की ओर रहने वाली वेश्या के रूप में उत्पन्न होगा ।
वहां पर भी शस्त्रवध्य होता हुआ दाह की उत्पत्ति से कालमास में काल को प्राप्त कर दूसरी बार भी राजगृह नगर में अन्दर की ओर रहने वाली वेश्या के रूप में उत्पन्न होगा ।
वहां पर भी शस्त्रवध्य होता हुआ दाह
उत्पत्ति से कालमास में काल को प्राप्त कर इसी
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