Book Title: Bhagwati Sutra Part 02
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
View full book text
________________
भगवती सूत्र
श. १९ : उ. ३ : सू. २६-३४ गौतम! वायुकाय सर्वथा सूक्ष्म है, वायुकाय सबमें अतिशय सूक्ष्म है। २७. भंते! इन पृथ्वीकायिक, अप्कायिक और तैजसकायिक में कौनसा काय सर्व सूक्ष्म है?
कौनसा काय सूक्ष्मतर है? गौतम! तैजसकाय सर्वथा सूक्ष्म है, तैजसकाय सबमें अतिशय सूक्ष्म है। २८. भंते! इन पृथ्वीकायिक और अप्कायिक में कौनसा काय सर्वथा सूक्ष्म है? कौनसा
काय सबमें अतिशय सूक्ष्म है? गौतम! अप्काय सर्वथा सूक्ष्म है, अप्काय सबमें अतिशय सूक्ष्म है। २९. भंते! इन पृथ्वीकायिक, अप्कायिक, तैजसकायिक, वायुकायिक और वनस्पतिकायिक में कौनसा काय सर्वथा बादर है? कौनसा काय सबमें अतिशय बादर है? गौतम! वनस्पतिकाय सर्वथा बादर है, वनस्पतिकाय सबमें अतिशय बादर है। ३०. भंते! इन पृथ्वीकायिक, अप्कायिक, तैजसकायिक और वायुकायिक में कौनसा काय सर्वथा बादर है? कौनसा काय सबमें अतिशय बादर है? गौतम! पृथ्वीकाय सर्वथा बादर है। पृथ्वीकाय सबमें अतिशय बादर है। ३१. भंते! इन अप्कायिक, तैजसकायिक और वायुकायिक में कौनसा काय सर्वथा बादर है? कौनसा काय सबमें अतिशय बादर है? गौतम। अप्काय सर्वथा बादर है। अप्काय सबमें अतिशय बादर है। ३२. भंते! इन तैजसकायिक और वायुकायिक में कौनसा काय सर्वथा बादर है? कौनसा काय सबमें अतिशय बादर है। गौतम! तैजसकाय सर्वथा बादर है। तैजसकाय सबमें अतिशय बादर है। पृथ्वी-शरीर की विशालता का पद ३३. भंते! पृथ्वीकाय का शरीर कितना बड़ा प्रज्ञप्त है?
गौतम! अनंत सूक्ष्म-वनस्पतिकायिक जीवों के जितने शरीर हैं, उतना बड़ा एक सूक्ष्म-वायुकाय का शरीर है। असंख्येय सूक्ष्म-वायुकायिक-जीवों के जितने शरीर हैं, उतना बड़ा एक सूक्ष्म-तैजसकाय का शरीर है। असंख्येय सूक्ष्म-तैजसकायिक-जीवों के जितने शरीर हैं, उतना बड़ा एक सूक्ष्म-अप्काय का शरीर है। असंख्येय सूक्ष्म-अप्कायिक-जीवों के जितने शरीर हैं, उतना बड़ा एक सूक्ष्म-पृथ्वीकाय का शरीर है। असंख्येय सूक्ष्म-पृथ्वीकायिक-जीवों के जितने शरीर हैं, उतना बड़ा एक बादर-वायुकाय का शरीर है। असंख्येय बादर-वायुकायिक-जीवों के जितने शरीर हैं, उतना बड़ा एक बादर-तैजसकाय का शरीर है। असंख्येय बादर-तैजसकायिक-जीवों के जितने शरीर हैं, उतना बड़ा एक बादर-अप्काय का शरीर है। असंख्येय बादर-अप्कायिक-जीवों के जितने शरीर हैं, उतना बड़ा एक बादर-पृथ्वीकाय का शरीर है। गौतम! पृथ्वीकाय का शरीर इतना बड़ा प्रज्ञप्त है। पृथ्वीकायिक का शरीर-अवगाहना-पद ३४. भंते ! पृथ्वीकायिक जीव के शरीर की अवगाहना कितनी बड़ी प्रज्ञप्त है?
६६३