Book Title: Bhagwati Sutra Part 02
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
View full book text
________________
श. २५ : उ. ४ : सू. १४१-१५१
भगवती सूत्र गौतम! जीव सैज भी हैं, निरेज भी हैं। १४२. भन्ते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है-जीव सैज भी हैं, निरेज भी हैं? गौतम! जीव दो प्रकार के प्रज्ञप्त हैं, जैसे-संसार-समापन्नक और असंसार-समापनक। जो असंसार-समापन्नक हैं वे सिद्ध हैं। सिद्ध दो प्रकार के प्रज्ञप्त हैं, जैसे-अनन्तर-सिद्ध और परम्पर-सिद्ध । जो परम्पर-सिद्ध हैं वे निरेज हैं। जो अनन्तर सिद्ध हैं वे सैज हैं। १४३. भन्ते! वे क्या देशतः सैज हैं? या सर्वतः सैज हैं? गौतम! वे देशतः सैज नहीं हैं, सर्वतः सैज हैं। जो संसार-समापनक हैं, वे दो प्रकार के प्रज्ञप्त हैं, जैसे-शैलेशी-प्रतिपन्न और अशैलेशी-प्रतिपन्न। जो शैलेशी-प्रतिपन्न हैं वे निरेज हैं। जो
अशैलेशी-प्रतिपन्न हैं वे सैज हैं। १४४. भन्ते! वे क्या देशतः सैज (कम्पन वाले) हैं? या सर्वतः सैज हैं? गौतम! वे देशतः भी सैज हैं, सर्वतः भी सैज हैं। गौतम! इस अपेक्षा से ऐसा कहा जा रहा है-जीव सैज भी हैं, निरेज भी हैं। १४५. भन्ते! नैरयिक क्या देशतः सैज होते हैं? सर्वतः भी सैज होते हैं?
गौतम! नैरयिक देशतः भी सैज होते हैं, सर्वतः भी सैज होते हैं। १४६. (भन्ते!) यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है यावत् सर्वतः सैज होते हैं?' गौतम! नैरयिक दो प्रकार के प्रज्ञप्त हैं, जैसे-विग्रहगति-समापन्नक और अविग्रहगति-समापनक। जो विग्रहगति-समापन्नक हैं वे सर्वतः सैज हैं, जो अवग्रिहगति-समापन्नक हैं वे देशतः सैज हैं। इस अपेक्षा से ऐसा कहा जा रहा है यावत् सर्वतः भी सैज होते हैं। इसी प्रकार यावत् वैमानिकों की वक्तव्यता। पद्गल-पद १४७. भन्ते! क्या परमाणु-पुद्गल संख्येय हैं? असंख्येय हैं? अनन्त हैं? गौतम! परमाणु-पुद्गल संख्येय नहीं हैं, असंख्येय नहीं हैं, अनन्त हैं। इसी प्रकार यावत्
अनन्त-प्रदेशी स्कन्ध की वक्तव्यता। १४८. भन्ते! क्या एक आकाश-प्रदेशावगाढ पुद्गल संख्येय हैं? असंख्येय हैं? अनन्त हैं?
पूर्ववत्। इसी प्रकार यावत् असंख्येय-प्रदेशावगाढ पुद्गलों की वक्तव्यता। १४९. भन्ते! क्या एक-समय की स्थिति वाले पुद्गल संख्येय हैं....?
पूर्ववत्। इसी प्रकार यावत् असंख्येय-समय की स्थिति वाले पुद्गलों की वक्तव्यता। १५०. भन्ते! क्या एक-गुण-कृष्ण पुद्गल संख्येय हैं?
पूर्ववत्। इसी प्रकार यावत् अनन्त-गुण-कृष्ण पुद्गलों की वक्तव्यता। इसी प्रकार अवशेष वर्ण, गंध, रस और स्पर्श वाले पुद्गल ज्ञातव्य हैं। यावत् अनन्त-गुण-रूक्ष पुद्गल। १५१. भन्ते! इन परमाणु-पुद्गलों और द्वि-प्रदेशी स्कन्धों में द्रव्य की अपेक्षा से कौन किनसे बहुत हैं...........?
८०२