Book Title: Bhagwati Sutra Part 02
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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श. २५ : उ. ६ : सू. ३०३-३१०
भगवती सूत्र
३०३. निर्ग्रन्थ..........? पृच्छा (भ. २५/३००)। गौतम! जिन-कल्प नहीं होता, स्थविर-कल्प नहीं होता, कल्पातीत होता है। इसी प्रकार स्नातक की भी वक्तव्यता। चारित्र-पद ३०४. भन्ते! क्या पुलाक-निर्ग्रन्थ के सामायिक-संयम होता है? छेदोपस्थापनीय-संयम होता है? परिहारविशुद्धिक-संयम होता है? सूक्ष्मसंपराय-संयम होता है? यथाख्यात-संयम होता
गौतम! सामायिक-संयम होता है अथवा छेदोपस्थापनीय-संयम होता है, परिहारविशुद्धिक-संयम नहीं होता, सूक्ष्मसंपराय-संयम नहीं होता, यथाख्यात-संयम नहीं होता। इसी प्रकार बकुश की भी वक्तव्यता। इस प्रकार प्रतिषेवणा-कुशील की भी वक्तव्यता। ३०५. कषाय-कुशील ..............? पृच्छा (भ. २५/३०४)। गौतम! सामायिक-संयम होता है यावत् सूक्ष्मसंपराय-संयम भी होता है (भ. २५/३०४), यथाख्यात-संयम नहीं होता। ३०६. निर्ग्रन्थ ..................? पृच्छा (भ. २५/३०४)। गौतम! सामायिक-संयम नहीं होता यावत् सूक्ष्मसंपराय-संयम नहीं होता, यथाख्यात-संयम होता है। इसी प्रकार स्नातक की भी वक्तव्यता। प्रतिषेवणा-पद ३०७. भंते! क्या पुलाक प्रतिषेवक (दोष लगाने वाला) होता है? अप्रतिषेवक (दोष नहीं
लगाने वाला) होता है? गौतम! प्रतिषेवक होता है, अप्रतिषेवक नहीं होता। ३०८. यदि पुलाक प्रतिषेवक होता है तो क्या मूल-गुण-प्रतिषेवक होता है? उत्तर-गुण-प्रतिषेवक होता है? गौतम! मूल-गुण-प्रतिषेवक भी होता है अथवा उत्तर-गुण-प्रतिषेवक भी होता है। मूल-गुण-प्रतिषेवक होता हुआ वह पांच आश्रवों में से किसी एक आश्रव की प्रतिषेवणा करता है, उत्तर-गुण-प्रतिषेवक होता हुआ वह दस प्रकार के प्रत्याख्यान में से किसी एक की प्रतिषेवणा करता है। ३०९. बकुश...........? पृच्छा (भ. २५/३०६)।
गौतम! बकुश प्रतिषेवक होता है, अप्रतिषेवक नहीं होता। ३१०. यदि प्रतिषेवक होता है तो क्या मूल-गुण-प्रतिषेवक होता है? उत्तर-गुण-प्रतिषेवक होता
गौतम! मूल-गुण-प्रतिषेवक नहीं होता, उत्तर-गुण-प्रतिषेवक होता है। उत्तर-गुण-प्रतिसेवक होता हुआ दस प्रकार के प्रत्याख्यान में से किसी एक की प्रतिषेवणा करता है। प्रतिषेवणा-पुलाक की भांति वक्तव्यता।
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