Book Title: Bhagwati Sutra Part 02
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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भगवती सूत्र
श. २५ : उ. ६ : सू. ३३८-३४७ ३३८. भन्ते! स्नातक मृत्यु को प्राप्त होने पर किस गति को प्राप्त होता है?
गौतम! सिद्धि-गति को प्राप्त होता है। ३३९. भन्ते! पुलाक देव के रूप में उपपन्न होता है तो क्या वह इन्द्र के रूप में उपपन्न होता है? सामानिक-देव के रूप में उपपन्न होता है? तावत्रिंशक-देव के रूप में उपपन्न होता है? लोकपाल-देव के रूप में उपपन्न होता है? अहमिन्द्र-देव के रूप में उपपन्न होता है? गौतम! अविराधना की अपेक्षा इन्द्र के रूप में उपपन्न होता है, सामानिक-देव के रूप में उपपन्न होता है, तावत्रिंशक-देव के रूप में उपपन्न होता है, लोकपाल-देव के रूप में उपपन्न होता है, अहमिन्द्र-देव के रूप में उपपन्न नहीं होता। विराधना की अपेक्षा किसी भी प्रकार के देव के रूप में उपपन्न हो सकता है-भवनपति, वानमन्तर, ज्यौतिषिक अथवा वैमानिक । इसी प्रकार बकुश की भी वक्तव्यता। इसी प्रकार प्रतिषेवणा-कुशील की भी वक्तव्यता। ३४०. कषाय-कुशील..........? पृच्छा (भ. २५/३३९)। गौतम! अविराधना की अपेक्षा इन्द्र के रूप में भी उपपन्न होता है यावत् अहमिन्द्र के रूप में भी उपपन्न होता है। विराधना की अपेक्षा भवनपति आदि किसी भी प्रकार के देव के रूप में उपपन्न होता है। ३४१. निर्ग्रन्थ ............? पृच्छा (भ. २५/३३९)। गौतम! अविराधना की अपेक्षा इन्द्र के रूप में उपपन्न नहीं होता यावत् लोकपाल के रूप में उपपन्न नहीं होता (भ. २५/३३९)। अहमिन्द्र के रूप में उपपन्न होता है। विराधना की अपेक्षा भवनपति आदि किसी भी प्रकार के देव के रूप में उपपन्न होता है। ३४२. भन्ते! देवलोक में उपपद्यमान पुलाक की कितने काल की स्थिति प्रज्ञप्त है?
गौतम! जघन्यतः पृथक्त्व(दो से नौ)-पल्योपम और उत्कृष्टतः अट्ठारह-सागरोपम की। ३४३. बकुश............? पृच्छा (भ. २५/३४२)। गौतम! जघन्यतः पृथक्त्व (दो से नौ)-पल्योपम और उत्कृष्टतः बाईस-सागरोपम। इसी प्रकार प्रतिषेवणा-कुशील की भी वक्तव्यता। ३४४. कषाय-कुशील ................? पृच्छा (भ. २५/३४२)।
गौतम! जघन्यतः पृथक्त्व(दो से नौ)-पल्योपम और उत्कृष्टतः तेतीस-सागरोपम। ३४५. निर्ग्रन्थ...........? पृच्छा (भ. २५/३४२)।
गौतम! अजघन्य-अनुत्कृष्ट अर्थात् केवल तैतीस सागरोपम। संयम-स्थान-पद ३४६. भन्ते! पुलाक के कितने संयम-स्थान प्रज्ञप्त हैं?
गौतम! असंख्येय संयम-स्थान प्रज्ञप्त हैं। इसी प्रकार यावत् कषाय-कुशील की वक्तव्यता। ३४७. भन्ते! निर्ग्रन्थ के कितने संयम-स्थान प्रज्ञप्त हैं? गौतम! अजघन्य-अनुत्कृष्ट केवल एक संयम-स्थान। इसी प्रकार स्नातक की भी वक्तव्यता।
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