Book Title: Bhagwati Sutra Part 02
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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भगवती सूत्र
श. २५ : उ. ६ : सू. ४०५-४१५ गौतम! प्रतिषेवणा-कुशीलत्व का परित्याग करता है। बकुश अथवा कषाय-कुशील अथवा
असंयम अथवा संयमासंयम को उपसंपन्न करता है। ४०६. कषाय-कुशील ........? पृच्छा (भ. २५/४०३)। गौतम! कषाय-कुशीलत्व का परित्याग करता है। पुलाक अथवा बकुश अथवा प्रतिषेवणा-कुशील अथवा निर्ग्रन्थ अथवा असयंम अथवा संयमासंयम को उपसंपन्न करता है। ४०७. निर्ग्रन्थ ...............? पृच्छा (भ. २५/४०३)। गौतम! निर्ग्रन्थत्व का परित्याग करता है। कषाय-कुशील अथवा स्नातक अथवा असंयम को उपसंपन्न करता है। ४०८. स्नातक ...........? पृच्छा (भ. २५/४०३)।
गौतम! स्नातक स्नातकत्व का परित्याग करता है। सिद्धि-गति को उपसंपन्न करता है। संज्ञा-पद ४०९. भन्ते! क्या पुलाक संज्ञोपयुक्त होता है? नोसंज्ञोपयुक्त होता है? गौतम! नोसंज्ञोपयुक्त होता है। ४१०. भन्ते ! बकुश.............? पृच्छा (भ. २५/४०९)। गौतम! संज्ञोपयुक्त होता है अथवा नोसंज्ञोयुक्त होता है। इसी प्रकार प्रतिषेवणा-कुशील की भी वक्तव्यता। इसी प्रकार कषाय-कुशील की भी वक्तव्यता। निर्ग्रन्थ और स्नातक निर्ग्रन्थ की पुलाक की भांति वक्तव्यता (भ. २५/४०९)। आहार-पद ४११. भन्ते! क्या पुलाक आहारक होता है? अनाहारक होता है?
गौतम! आहारक होता है, अनाहारक नहीं होता। इसी प्रकार यावत् निर्ग्रन्थ की वक्तव्यता। ४१२. स्नातक ............? पृच्छा (भ. २५/४११)।
गौतम! स्नातक आहारक होता है अथवा अनाहारक होता है। भव-पद ४१३. भन्ते! पुलाक कितने भव (जन्मों) में होता है?
गौतम! जघन्यतः एक, उत्कृष्टतः तीन जन्मों में होता है। ४१४. बकुश ........? पृच्छा (भ. २५/४१३)। गौतम! जघन्यतः एक, उत्कृष्टतः आठ जन्मों में होता है। इसी प्रकार प्रतिषेवणा-कुशील की भी। इसी प्रकार कषाय-कुशील की भी वक्तव्यता। निर्ग्रन्थ की पुलाक की भांति वक्तव्यता। ४१५. स्नातक .......? पृच्छा (भ. २५/४१३)। गौतम! एक।