Book Title: Bhagwati Sutra Part 02
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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श. २५ : उ. ६ : सू. ४१६-४२८
आकर्ष-पद
४१६. भन्ते ! पुलाक के एक भव में कितने आकर्ष - पुलाकत्व के स्पर्श प्रज्ञप्त हैं ?
गौतम ! जघन्यतः एक, उत्कृष्टतः तीन आकर्ष ।
४१७. बकुश...
? पृच्छा (भ. २५/४१६) ।
गौतम ! जघन्यतः एक, उत्कृष्टतः पृथक्त्व - सौ (दो सौ से नौ सौ ) आकर्ष । इसी प्रकार प्रतिषेवणा-कुशील की भी, इसी प्रकार कषाय - कुशील भी भी वक्तव्यता ।
४१८. निर्ग्रन्थ......... .? पृच्छा (भ. २५/४१६)।
गौतम ! जघन्यतः एक, उत्कृष्टतः दो आकर्ष ।
? पृच्छा (भ. २५/४१६)।
भगवती सूत्र
४१९. स्नातक..........
गौतम ! एक आकर्ष ।
४२०. भन्ते ! पुलाक के अनेक भवों में कितने आकर्ष - पुलाकत्व के स्पर्श प्रज्ञप्त हैं ?
गौतम ! जघन्यतः दो, उत्कृष्टतः सात आकर्ष ।
४२१. बकुश..
.? पृच्छा (भ. २५ / ४२०) ।
गौतम ! जघन्यतः दो, उत्कृष्टतः पृथक्त्व- हजार आकर्ष (दो हजार से नौ हजार तक) होते हैं। इसी प्रकार यावत् कषाय-कुशील की वक्तव्यता ।
.? पृच्छा (भ. २५/४२०) ।
४२२. निर्ग्रन्थ
गौतम ! जघन्यतः दो, उत्कृष्टतः पांच आकर्ष ।
४२३. स्नातक..
.? पृच्छा (भ. २५/४२०)।
गौतम ! एक भी आकर्ष नहीं होता ( क्योंकि उसी भव में मुक्त हो जाता है ।) ।
काल-पद
४२४. भन्ते ! (एक) पुलाक काल की अपेक्षा कितने काल तक होता है ?
गौतम ! जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्टतः भी अन्तर्मुहूर्त |
४२५. (एक) बकुश
.? पृच्छा (भ. २५/४२४) ।
गौतम ! जघन्यतः एक समय, उत्कृष्टतः देशोन कोटि - पूर्व । इसी (एक) प्रकार पतिषेवणा- कुशील और (एक) कषाय- कुशील की भी वक्तव्यता ।
२५ / ४२४) ।
४२६. (एक) निर्ग्रन्थ ? पृच्छा (भ. गौतम ! जघन्यतः एक समय, उत्कृष्टतः अन्तर्मुहूर्त्त । ४२७. (एक) स्नातक ? पृच्छा (भ. २५ / ४२४)। गौतम ! जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्टतः देशोन-कोटि- पूर्व ।
४२८. भन्ते ! (अनेक) पुलाक काल की गौतम ! जघन्यतः एक समय, उत्कृष्टतः
अपेक्षा कितने काल तक रहते हैं ?
अन्तर्मुहूतः ।
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