Book Title: Bhagwati Sutra Part 02
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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भगवती सूत्र
श. २५ : उ. ६ : सू. ३३३-३३७
३३३. यदि अवसर्पिणी-काल में होता है तो क्या सुषम-सुषमा-काल में होता है ?... पृच्छा (भ. २५/३२९) ।
गौतम ! जन्म और सद्भाव की अपेक्षा सुषम- सुषमा - काल में नहीं होता, सुषमा काल में नहीं होता, सुषम- दुष्षमा - काल में होता है अथवा दुष्षम - सुषमा - काल में होता है अथवा दुष्षमा- काल में होता है, दुष्षम - दुष्षमा काल में नहीं होता । संहरण की अपेक्षा अवसर्पिणी के किसी एक समाकाल अर में हो सकता 1
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३३४. यदि उत्सर्पिणी-काल में होता है तो क्या दुष्षम दुष्षमा काल में होता है.. पृच्छा (भ. २५ / ३३० ) ।
गौतम ! जन्म की अपेक्षा दुष्षम दुष्षमा काल में नहीं होता, पुलाक की भांति वक्तव्यता (भ. २५/३३०)। सद्भाव की अपेक्षा दुष्षम दुष्षमा - काल में नहीं होता, दुष्षमा - काल में नहीं होता । इसी प्रकार सद्भाव की अपेक्षा भी पुलाक की भांति वक्तव्यता यावत् सुषम-सुषमा- काल में नहीं होता ( भ. २५ / ३३० ) । संहरण की अपेक्षा उत्सर्पिणी के किसी एक समाकाल अर में हो सकता है।
३३५. यदि नो-अवसर्पिणी -नो- उत्सर्पिणी-काल में होता है...? पृच्छा (भ. २५ / ३३१)। गौतम ! जन्म और सद्भाव की अपेक्षा सुषम- सुषमा सदृश-काल में नहीं होता, पुलाक-निर्ग्रन्थ की भांति वक्तव्यता यावत् दुष्षम - सुषमा सदृश-काल में हो सकता है (भ. २५/ ३३१)। संहरण की अपेक्षा नो अवसर्पिणी-नो उत्सर्पिणी-काल के किसी एक समाकाल अर में हो सकता है। बकुश की भांति प्रतिषेवणा-कुशील की भी वक्तव्यता । इसी प्रकार कषाय- कुशील की भी वक्तव्यता । निर्ग्रन्थ और स्नातक की पुलाक की भांति वक्तव्यता । केवल इतना विशेष है - पुलाक की अपेक्षा अभ्यधिक वक्तव्य है संहरण । शेष पूर्ववत् ।
गति-पद
३३६. भन्ते! पुलाक मृत्यु को प्राप्त होने पर किस गति को प्राप्त होता है ?
गौतम ! देव - गति को प्राप्त होता है ।
३३७. देव- गति को प्राप्त होता है तो क्या भवनपति देवों में उपपन्न होता है ? वानमन्तर- देवों में उपपन्न होता है ? ज्योतिष- देवों में उपपन्न होता है ? वैमानिक देवों में उपपन्न होता है ?
गौतम ! भवनपति - देवों में उपपन्न नहीं होता, वानमन्तर- देवों में उपपन्न नहीं होता, ज्योतिष्क- देवों में उपपन्न नहीं होता, वैमानिक देवों में उपपन्न होता है। वैमानिक में उपपन्न होता है तो वह जघन्यतः सौधर्म - कल्प में, उत्कृष्टतः सहस्रार - कल्प में उपपन्न होता है। इसी प्रकार कुश की वक्तव्यता, केवल इतना विशेष है- बकुश उत्कृष्टतः अच्युत - कल्प में उपपन्न होता है । प्रतिषेवणा- कुशील की बकुश की भांति वक्तव्यता । कषाय-कुशील पुलाक की भांति वक्तव्यता, केवल इतना विशेष है - कषाय- कुशील उत्कृष्टतः अनुत्तरविमानों में उत्पन्न होता । इसी प्रकार निर्ग्रन्थ की वक्तव्यता यावत् वैमानिक - देवों में उपपन्न होता है तो अजघन्य - - अनुत्कृष्ट रूप अर्थात् केवल अनुत्तरविमानों म उपपन्न होता है ।
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