Book Title: Bhagwati Sutra Part 02
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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भगवती सूत्र
श. २५ : उ. ६ : सू. ३११-३१९ ३११. कषाय-कुशील...........? पृच्छा (भ. २५/३०७)।
गौतम! प्रतिषेवक नहीं होता, अप्रतिषेवक होता है। इसी प्रकार निर्ग्रन्थ की भी वक्तव्यता। इसी प्रकार स्नातक की भी वक्तव्यता। ज्ञान-पद ३१२. भन्ते! पुलाक कितने ज्ञानों में होता है? गौतम! दो में होता है अथवा तीन में होता है। यदि दो में होता है तो आभिनिवोधिक-ज्ञान (मति-ज्ञान) और श्रुत-ज्ञान में होता है। यदि तीन ज्ञान में होता है तो आभिनिबोधिक-ज्ञान, श्रुत-ज्ञान और अवधि-ज्ञान में होता है। इसी प्रकार बकुश की भी वक्तव्यता। इसी प्रकार प्रतिषेवणा-कुशील की भी वक्तव्यता। ३१३. कषायकुशील ........? पृच्छा (भ. २५/३१२)। गौतम! दो ज्ञान में होता है अथवा तीन ज्ञान में होता है अथवा चार ज्ञान में होता हैं। यदि दो ज्ञान में होता है तो आभिनिबोधिक-ज्ञान और श्रुत-ज्ञान में होता है। यदि तीन ज्ञान में होता है तो आभिनिबोधिक-ज्ञान, श्रुत-ज्ञान और अवधि-ज्ञान में होता है अथवा यदि तीन ज्ञान में होता है तो अभिनिबोधिक-ज्ञान, श्रुत-ज्ञान और मनःपर्यव-ज्ञान में होता है। यदि चार ज्ञान में होता है तो आभिनिबोधिक-ज्ञान, श्रुत-ज्ञान, अवधि-ज्ञान और मनःपर्यव-ज्ञान में होता है। इसी प्रकार निर्ग्रन्थ की भी वक्तव्यता। ३१४. स्नातक ................? पृच्छा (भ. २५/३१२)।
गौतम! स्नातक एक केवल-ज्ञान में होता है। ३१५. भन्ते! पुलाक कितने श्रुत का अध्येता होता है? गौतम! जघन्यतः नवम पूर्व की तीसरी आचार-वस्तु, उत्कृष्टतः नव-पूर्यों का अध्येता होता
३१६. बकुश.........? पृच्छा (भ. २५/३१५)। गौतम! जघन्यतः आठ प्रवचन-माताओं का, उत्कृष्टतः दस पूर्वो का अध्येता होता है। इसी प्रकार प्रतिषेवणा-कुशील-निर्ग्रन्थ की भी वक्तव्यता। ३१७. कषायकुशील ...........? पृच्छा (भ. २५/३१५)। गौतम! जघन्यतः आठ प्रवचन-माता, उत्कृष्टतः चौदह पूर्वो का अध्येता होता है। इसी प्रकार निर्ग्रन्थ की भी वक्तव्यता। ३१८. स्नातक...............? पृच्छा (भ. २५/३१५)।
गौतम! स्नातक श्रुतव्यतिरिक्त (श्रुतातीत) होता है। तीर्थ-पद ३१९. भन्ते! क्या पुलाक तीर्थ में होता है? अतीर्थ में होता है? गौतम! तीर्थ में होता है, अतीर्थ में नहीं होता। इसी प्रकार बकुश की भी वक्तव्यता। इसी
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