Book Title: Bhagwati Sutra Part 02
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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भगवती सूत्र
श. २५ : उ. ४ : सू. २२६-२३५ गौतम! स्वस्थानान्तर की अपेक्षा जघन्यतः एक समय, उत्कृष्टतः असंख्येय काल। परस्थानान्तर की अपेक्षा जघन्यतः एक समय, उत्कृष्टतः असंख्येय काल। २२७. (भन्ते!) (एक) परमाणु-पुद्गल की निरेज अवस्था में कितने काल का अन्तर होता
स्वस्थानान्तर की अपेक्षा जघन्यतः एक समय, उत्कृष्टतः आवलिका-का-असंख्यातवां-भाग। परस्थानान्तर की अपेक्षा जघन्यतः एक समय, उत्कृष्टतः असंख्येय काल। २२८. भन्ते! (एक) द्वि-प्रदेशी स्कन्ध का देशतः सैज अवस्था में कितने काल का अन्तर होता
गौतम! स्वस्थानान्तर की अपेक्षा जघन्यतः एक समय, उत्कृष्टतः असंख्येय काल। परस्थानान्तर की अपेक्षा जघन्यतः एक समय, उत्कृष्टतः अनन्त काल। २२९. (भन्ते!) (एक) द्वि-प्रदेशी स्कन्ध की सर्वतः सैज अवस्था में कितने काल का अन्तर होता है? देशतः सैज की भांति वक्तव्य है। २३०. (भंते!) द्वि-प्रदेशी स्कन्ध की निरेज अवस्था में कितने काल का अन्तर होता
स्वस्थानान्तर की अपेक्षा जघन्यतः एक समय, उत्कृष्टतः आवलिका-का-असंख्यातवां-भाग। परस्थानान्तर की अपेक्षा जघन्यतः एक समय, उत्कृष्टतः अनन्त-काल। इसी प्रकार यावत् (एक) अनन्त-प्रदेशी स्कन्ध वक्तव्य है। २३१. भन्ते! (अनेक) परमाणु-पुद्गलों की सर्वतः सैज अवस्था में कितने काल का अन्तर होता है?
अन्तर नहीं होता । २३२. (भन्ते!) (अनेक) परमाणु-पुद्गलों की निरेज अवस्था में कितने काल का अन्तर होता
अन्तर नहीं होता। २३३. भन्ते! (अनेक) द्वि-प्रदेशी स्कन्धों की देशतः सैज अवस्था में कितने काल का अन्तर होता है?
अन्तर नहीं होता। २३४. (भन्ते!) (अनेक) द्वि-प्रदेशी स्कन्धों की सर्वतः सैज अवस्था में कितने काल का अन्तर होता है?
अन्तर नहीं होता। २३५. (भन्ते!) (अनेक) द्वि-प्रदेशी स्कन्धों की निरेज अवस्था में कितने काल का अन्तर होता
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