Book Title: Bhagwati Sutra Part 02
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
View full book text
________________
भगवती सूत्र
श. २५ : उ. ५,६ : सू. २७३-२८० २७३. भन्ते! निगोद कितन प्रकार के प्रज्ञप्त हैं? गौतम! निगोद दो प्रकार के प्रज्ञप्त हैं, जैसे-निगोदक (निगोद-शरीर) और निगोदक जीव (निगोद-जीव)। २७४. भन्ते! निगोद कितने प्रकार के प्रज्ञप्त हैं? गौतम! निगोद दो प्रकार के प्रज्ञप्त हैं, जैसे-सूक्ष्म-निगोद और बादर-निगोद। इसी प्रकार (जीवाजीवाभिगम ५/३९-६० की भांति) निगोद की निरवशेष वक्तव्यता। नाम-पद २७५. भन्ते! नाम (भाव) कितने प्रकार के प्रज्ञप्त हैं?
गौतम! नाम (भाव) छह प्रकार के प्रज्ञप्त हैं, जैसे-औदयिक यावत् सान्निपातिक। २७६. वह औदयिक नाम क्या है?
औदयिक नाम दो प्रकार के प्रज्ञप्त हैं, जैसे-उदय और उदय-निष्पन्न। इसी प्रकार (भगवती के) सत्रहवें शतक के प्रथम उद्देशक (सू. १७) की भांति भाव की वक्तव्यता, केवल इतना विशेष है-यह नाम का नानात्व है, शेष पूर्ववत्। यावत् सान्निपातिक की वक्तव्यता। २७७. भन्ते! वह ऐसा ही है। भन्ते! वह ऐसा ही है।
छट्ठा उद्देशक संग्रहणी-गाथा
छठे उद्देशक में निर्ग्रन्थों के छत्तीस द्वार हैं१. प्रज्ञापना २. वेद ३. राग ४. कल्प ५. चारित्र ६. प्रतिषेवणा ७. ज्ञान ८. तीर्थ ९. लिंग १०. शरीर ११. क्षेत्र १२. काल १३. गति १४. संयम १५ निकास। १६. योग १७. उपयोग १८. कषाय १९. लेश्या २०. परिणाम २१. बन्ध २२. वेद २३. कर्म-उदीरणा २४. उपसम्पत्-प्रहाण २५. संज्ञा २६. आहार। २७. भव २८. आकर्ष २९. काल ३०.
अन्तर ३१. समुद्घात ३२. क्षेत्र ३३. स्पर्शना ३४. भाव ३५. परिमाण ३६. अल्पबहुत्व। प्रज्ञापना-पद २७८. राजगृह नगर में यावत् इस प्रकार बोले-(भ. १/१०) भन्ते ! निर्ग्रन्थ कितने प्रज्ञप्त हैं?
गौतम! निर्ग्रन्थ पांच प्रज्ञप्त हैं, जैसे-पुलाक, बकुश, कुशील, निर्ग्रन्थ और स्नातक। २७९. भन्ते! पुलाक कितने प्रकार के प्रज्ञप्त हैं?
गौतम! पुलाक पांच प्रकार के प्रज्ञप्त हैं, जैसे-ज्ञान-पुलाक, दर्शन-पुलाक, चारित्र-पुलाक, लिंग-पुलाक, पांचवां यथा-सूक्ष्म-पुलाक। २८०. भन्ते! बकुश कितने प्रकार के प्रज्ञप्त हैं? गौतम! बकुश पांच प्रकार के प्रज्ञप्त हैं, जैसे-आभोग-बकुश, अनाभोग-बकुश, संवृत-बकुश, असंवृत-बकुश, पांचवां यथा-सूक्ष्म-बकुश।
८१९