Book Title: Bhagwati Sutra Part 02
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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बोसवां शतक
पहला उद्देशक
संग्रहणो गाथा १. द्वीन्द्रिय, २. आकाश, ३. प्राण-वध, ४. परमाणु, ६. अंतर, ७. बंध, ८. भूमि, ९.
चारण, १०. सोपक्रम-जीव। द्वीन्द्रिय-आदि-पद १. राजगृह नगर यावत् गौतम ने इस प्रकार कहा-भंते! (दो-तीन) यावत् चार-पांच द्वीन्द्रिय जीव एकत्र होकर साधारण-शरीर का निर्माण करते हैं, निर्माण कर उसके पश्चात् आहार करते हैं, उसका परिणमन करते हैं, शरीर का विशिष्ट निर्माण अथवा पोषण करते हैं? यह अर्थ संगत नहीं है। द्वीन्द्रिय जीव प्रत्येक आहार करने वाले स्वतंत्र आहार करने वाले, प्रत्येक परिणाम वाले स्वतंत्र परिणमन करने वाले हैं और वे प्रत्येक शरीर-अपने-अपने शरीर का निर्माण करते हैं। निर्माण कर उसके पश्चात् आहार करते हैं, उसका परिणमन करते हैं, शरीर का विशिष्ट निर्माण अथवा पोषण करते हैं। २. भंते! उन जीवों के कितनी लेश्याएं प्रज्ञप्त हैं? गौतम! तीन लेश्याएं प्रज्ञप्त हैं, जैसे–कृष्ण-लेश्या, नील-लेश्या, कापोत-लेश्या। इस प्रकार जैसे उन्नीसवें शतक (भ. १९/२२) में तैजसकायिक-जीवों की वक्तव्यता यावत् उद्वर्तन करते हैं, इतना विशेष है-सम्यग्-दृष्टि भी हैं, मिथ्या-दृष्टि भी हैं, सम्यग्-मिथ्यादृष्टि नहीं हैं। नियमतः दो ज्ञान और दो अज्ञान वाले हैं। मन-योग वाले नहीं हैं। वचनयोग वाले भी हैं, काय-योग वाले भी हैं। नियमतः छहों दिशाओं से आहार लेते हैं। ३. भंते! उन जीवों के इस प्रकार की संज्ञा, प्रज्ञा, मन अथवा वचन होता है कि हम इष्ट
और अनिष्ट रस का, इष्ट और अनिष्ट स्पर्श का प्रतिसंवेदन कर रहे हैं? गौतम! यह अर्थ संगत नहीं है किन्तु वे प्रतिसंवेदन करते हैं। स्थिति जघन्यतः अंतर्मुहुर्त, उत्कृष्टतः बारह संवत्सर। शेष पूर्ववत्। इसी प्रकार त्रीन्द्रिय जीवों की वक्तव्यता। इसी प्रकार चतुरिन्द्रिय जीवों की वक्तव्यता। इन्द्रियों में, स्थिति में नानात्व है, शेष पूर्ववत्। स्थिति की पण्णवणा (४/९८-१०१) की भांति वक्तव्यता। ४. भंते! (दो-तीन) यावत् चार-पांच पंचेन्द्रिय-जीव एकत्र होकर साधारण-शरीर का निर्माण
करते हैं? इस प्रकार द्वीन्द्रिय की भांति वक्तव्यता, इतना विशेष है लेश्या छह है, तीन दृष्टि, ज्ञान
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