Book Title: Bhagwati Sutra Part 02
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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भगवती सूत्र
श. २४ : उ. १८-२० : सू. २३३-२४० -सौ-आठ-रात्रि-दिवस, (त्रीन्द्रिय-जीव के रूप में उत्पन्न होने वाले) द्वीन्द्रिय-जीव के विषय में तृतीय गमक में कायसंवेध इस प्रकार-उत्कृष्टतः एक-सौ-छियानवें-रात्रि-दिवस-अधिक-अड़चालीस-वर्ष, (त्रीन्द्रिय-जीव के रूप में उत्पन्न होने वाले) त्रीन्द्रिय-जीव के विषय में तृतीय गमक में कायसंवेध इस प्रकार उत्कृष्टतः तीन-सौ-बानवें-रात्रि-दिवस, इसी प्रकार
सर्वत्र कायसंवेध जानना चाहिए (चतुरिन्द्रिय से लेकर) यावत् संज्ञी-मनुष्य तक। २३४. भन्ते! वह ऐसा ही है। भन्ते! वह ऐसा ही है।
__उन्नीसवां उद्देशक तयालीसवां आलापक : चतुरिन्द्रिय में जीवों का उपपात-आदि २३५. भन्ते! चतुरिन्द्रिय-जीव कहां से उत्पन्न होते हैं? जैसे त्रीन्द्रिय-जीवों के विषय में उद्देशक है वैसे ही चतुरिन्द्रिय-जीवों के उद्देशक ज्ञातव्य है, केवल इतना विशेष है-स्थिति और
कायसंवेध जानना चाहिए। २३६. भन्ते! वह ऐसा ही है। भन्ते! वह ऐसा ही है।
बीसवां उद्देशक तिर्यंच-पंचेन्द्रिय-अधिकार २३७. भन्ते! पञ्चेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक-जीव कहां से उत्पन्न होते हैं क्या नैरयिक-जीवों से उत्पन्न होते हैं? तिर्यग्योनिक-जीवों से उत्पन्न होते हैं? मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं? देवों से उत्पन्न होते हैं? गौतम! पञ्चेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक-जीव नैरयिक-जीवों से उत्पन्न होते हैं, तिर्यग्योनिक-जीवों से उत्पन्न होते हैं, मनुष्यों से भी उत्पन्न होते हैं, देवों से भी उत्पन्न होते हैं। २३८. भन्ते! यदि पञ्चेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक-जीव नैरयिक-जीवों से उत्पन्न होते हैं तो क्या रत्नप्रभा-पृथ्वी के नैरयिकों से उत्पन्न होते हैं यावत् अधःसप्तमी-पृथ्वी के नैरयिक-जीवों से उत्पन्न होते हैं? गौतम! पञ्चेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक-जीव रत्नप्रभा-पृथ्वी के नैरयिक-जीवों से उत्पन्न होते हैं यावत् अधःसप्तमी-पृथ्वी के नैरयिक-जीवों से भी उत्पन्न होते हैं। चमालीसवां आलापक : तिर्यञ्च-पञ्चेन्द्रिय में प्रथम नरक के जीवों का उपपात-आदि (पहला गमक : औधिक और औधिक) २३९. भन्ते! रत्नप्रभा-पृथ्वी के नैरयिक-जीव, जो पञ्चेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक-जीवों में उत्पन्न होने योग्य है, भन्ते! वह कितने काल की स्थिति वाले पंचेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक-जीवों में उत्पन्न होता है? गौतम! जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त की स्थिति वाले, उत्कृष्टतः कोटि-पूर्व आयु वाल पंचेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक-जीवों में उत्पन्न होता है। २४०. भन्ते! वे जीव एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं? इस प्रकार (कायिक जीव के रूप में) असुरकुमार-देवों की भांति वक्तव्यता (भ. २४/२०७-२०८), केवल इतना विशेष
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