Book Title: Bhagwati Sutra Part 02
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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भगवती सूत्र
श. २५ : उ. ३ : सू. ५१-५३ आकाश-प्रदेशों का अवगाहन करने वाला प्रज्ञप्त है। जो युग्म-प्रदेशिक (परमाणु-स्कन्ध) है वह जघन्यतः बत्तीस-प्रदेशी है, और बत्तीस आकाश-प्रदेशों का अवगाहन करने वाला प्रज्ञप्त है, उत्कृष्टतः अनन्त-प्रदेशी (परमाणु-स्कन्ध) है और असंख्येय आकाश-प्रदेशों का
अवगाहन करने वाला प्रज्ञप्त है। ५२. भन्ते! त्रिकोण-संस्थान कितने प्रदेश वाला, कितने प्रदेश का अवगाहन करने वाला प्रज्ञप्त
गौतम! त्रिकोण-संस्थान दो प्रकार का प्रज्ञप्त है, जैसे-घन-त्रिकोण और प्रतर-त्रिकोण। जो प्रतर-त्रिकोण है वह दो प्रकार का प्रज्ञप्त है, जैसे-ओजस्प्रदेशिक और युग्मप्रदेशिक। जो ओजस्प्रदेशिक है वह जघन्यतः तीन-प्रदेशी (परमाणु-स्कन्ध) और तीन आकाश-प्रदेशों का अवगाहन करने वाला प्रज्ञप्त है, उत्कृष्टतः अनन्त-प्रदेशी (परमाणु-स्कन्ध) और असंख्येय आकाश-प्रदेशों का अवगाहन करने वाला प्रज्ञप्त है। जो युग्मप्रदेशिक है वह जघन्यतः छह-प्रदेशी (परमाणु-स्कन्ध) और छह आकाश-प्रदेशों का अवगाहन करने वाला प्रज्ञप्त है, उत्कृष्टतः अनन्त-प्रदेशी (परमाणु-स्कन्ध) और असंख्येय आकाश-प्रदेशों का अवगाहन करने वाला प्रज्ञप्त है। जो घन त्रिकोण है, वह दो प्रकार का प्रज्ञप्त है, जैसे-ओजस्प्रदेशिक और युग्मप्रदेशिक। जो ओजस्प्रदेशिक है वह जघन्यतः पैंतीस-प्रदेशी (परमाणु-स्कन्ध) और पैंतीस आकाश-प्रदेशों का अवगाहन करने वाला है, उत्कृष्टतः अनन्त-प्रदेशी (परमाणु-स्कन्ध) और असंख्येय आकाश-प्रदेशों का अवगाहन करने वाला है। जो युग्मप्रदेशिक है वह जघन्यतः चार-प्रदेशी (परमाणु-स्कन्ध) और चार आकाश-प्रदेशों का अवगाहन करने वाला प्रज्ञप्त है, उत्कृष्टतः अनन्त-प्रदेशी (परमाणु-स्कन्ध) और असंख्येय आकाश-प्रदेशों का अवगाहन करने वाला प्रज्ञप्त है। ५३. भन्ते! चतुष्कोण-संस्थान कितने प्रदेश वाला है....? पृच्छा। गौतम! चतुष्कोण-संस्थान दो प्रकार का प्रज्ञप्त है, जैसे-घन-चतुष्कोण और प्रतर-चतुष्कोण । जो प्रतर-चतुष्कोण है वह दो प्रकार का प्रज्ञप्त है, जैसे-ओजस्प्रदेशिक और युग्मप्रदेशिक । जो ओजस्प्रदेशिक है वह जघन्यतः नव-प्रदेशी (परमाणु-स्कन्ध) और नव आकाश-प्रदेशों का अवगाहन करने वाला प्रज्ञप्त है, उत्कृष्टतः अनन्त-प्रदेशी (परमाणु-स्कन्ध) और असंख्येय आकाश-प्रदेशों का अवगाहन करने वाला प्रज्ञप्त है। जो युग्मप्रदेशिक है वह जघन्यतः चार-प्रदेशी (परमाणु-स्कन्ध) और चार आकाश-प्रदेशों का अवगाहन करने वाला प्रज्ञप्त है, उत्कृष्टतः अनन्त-प्रदेशी (परमाणु-स्कन्ध) और असंख्येय आकाश-प्रदेशों का अवगाहन करने वाला है। जो घन-चतुष्कोण है वह दो प्रकार का प्रज्ञप्त है, जैसे-ओजस्प्रदेशिक और युग्मप्रदेशिक। जो
ओजस्प्रदेशिक है वह जघन्यतः सत्ताईस-प्रदेशी (परमाणु-स्कन्ध) और सत्ताईस आकाश-प्रदेशों का अवगाहन करने वाला है, उत्कृष्टतः अनन्त-प्रदेशी (परमाणु-स्कन्ध) और असंख्येय आकाश-प्रदेशों का अवगाहन करने वाला है। जो युग्मप्रदेशिक है वह जघन्यतः
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