Book Title: Bhagwati Sutra Part 02
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
View full book text
________________
भगवती सूत्र
श. २४ : उ. २० : सू. २५०- २५५
उनचासवां आलापक : तिर्यञ्च पञ्चेन्द्रिय-जीवों में असंज्ञी - तिर्यञ्च पञ्चेन्द्रिय-जीवों का उपपात-आदि
(पहला गमक)
२५०.
भन्ते! असंज्ञी-पञ्चेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक-जीव जो पञ्चेन्द्रिय - तिर्यग्योनिक-जीवों में उत्पन्न होने योग्य है, भन्ते ! वह कितने काल की स्थिति वाले पंचेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक-जीवों में उत्पन्न होता है ?
गौतम ! जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त्त की स्थिति वालों, उत्कृष्टतः पल्योपम-के-असंख्यातवें-भाग की स्थिति वालों में उत्पन्न होता है ।
२५१. भन्ते ! वे जीव एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं? शेष जैसे पृथ्वीकायिक- जीवों में उपपद्यमान असंज्ञी - पञ्चेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक - जीव- वैसे ही निरवशेष वक्तव्य है यावत् भवादेश तक। काल की अपेक्षा जघन्यतः दो अन्तर्मुहूर्त्त, उत्कृष्टतः पृथक्त्व (दो से नौ)-कोटि-पूर्व-अधिक-पल्योपम-का-असंख्यातवां भाग - इतने काल तक रहता है, इतने काल तक गति - आगति करता है ।
(दूसरा गमक)
द्वितीय गमक में यही लब्धि वक्तव्य है, केवल इतना विशेष है - काल की अपेक्षा जघन्यतः दो अन्तर्मुहूर्त्त, उत्कृष्टतः चार अन्तर्मुहूर्त्त अधिक - चार -कोटि- पूर्व-इतने काल तक रहता है, इतने काल तक गति आगति करता है।
(तीसरा गमक)
२५२. वही उत्कृष्ट काल की स्थिति वालों में उत्पन्न असंज्ञी - पञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिक-जीव जघन्यतः पल्योपम-के-असंख्यातवें भाग, उत्कृष्टतः भी पल्योपम-के-असंख्यातवें भाग की स्थिति वाले संज्ञी-पंचेन्द्रिय - तिर्यग्योनिक-जीवों में उत्पन्न होता है ।
२५३. भन्ते ! वे जीव एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ? इसी प्रकार जैसे रत्नप्रभा में उपपद्यमान असंज्ञी-पञ्चेन्द्रिय - तिर्यग्योनिक-जीव वैसे ही अविकल रूप से वक्तव्य है यावत् कालादेश तक, केवल इतना विशेष है - परिमाण - जघन्यतः एक अथवा दो अथवा तीन, उत्कृष्टतः संख्येय उत्पन्न होते हैं। शेष पूर्ववत् ।
(चौथे से छट्ठे गमक तक)
२५४. वही अपनी जघन्य काल की स्थिति उत्पन्न असंज्ञी-पञ्चेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक-जीव जघन्यतः अंतर्मुहूर्त्त की स्थिति वाले, उत्कृष्टतः कोटि-पूर्व आयुष्य वाले संज्ञी-पंचेन्द्रिय- तिर्यग्योनिक-जीवों में उत्पन्न होता है ।
२५५. भन्ते ! वे जीव एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ? अवशेष जैसे इस पृथ्वीकायिक- जीवों में उपपद्यमान का मध्य तीन गमकों (चोथे, पांचवें और छट्टे) में कहा वैसे यहां भी तीन गमकों में यावत् अनुबन्ध तक । भव की अपेक्षा जघन्यतः दो भव-ग्रहण, उत्कृष्टतः आठ भव-ग्रहण । काल की अपेक्षा जघन्यतः दो अन्तर्मुहूर्त्त, उत्कृष्टतः चार- अन्तर्मुहूर्त्त अधिक-चार-कोटि-पूर्व-इतने काल तक रहता है, इतने काल तक गति - आगति करता है।
७५७