Book Title: Bhagwati Sutra Part 02
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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भगवती सूत्र
श. २४ : उ. २० : सू. २७२-२७८ वह कितने काल की स्थिति वाले पंचेन्द्रिय-तिर्यक्योनिक-जीवों में उत्पन्न होता है? गौतम! जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त की स्थिति वाले, उत्कृष्टतः कोटि-पूर्व आयुष्य वाले पंचेन्द्रिय-तिर्यक्योनिक-जीवों में उत्पन्न होता है। उसकी लब्धि तीनों ही गमकों में पृथ्वीकायिक-जीवों में उपपद्यमान की भांति वक्तव्य है। (भ. २४/१९९) कायसंवेध-इसी में असंज्ञी-पञ्चेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक के मध्यवर्ती तीन गमकों में वैसे ही अविकल रूप से वक्तव्य है। बावनवां आलापक : तिर्यंच-पंचेन्द्रिय-जीवों में संज्ञी-मनुष्यों का उपपात-आदि (पहला गमक : औधिक और औधिक) २७३. यदि संज्ञी-मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं तो क्या संख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी-मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं? असंख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी-मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं? गौतम! संख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी-मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं, असंख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी-मनुष्यों से उत्पन्न नहीं होते। २७४. यदि संख्यात वर्ष की आयुवाले संज्ञी-मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं तो क्या संख्यात वर्ष की आयु वाले पर्याप्त-संज्ञी-मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं? संख्यात वर्ष की आयु वाले अपर्याप्त-संज्ञी-मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं? गौतम! संख्यात वर्ष की आयु वाले पर्याप्त-संज्ञी-मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं, संख्यात वर्ष
की आयु वाले अपर्याप्त-संज्ञी-मनुष्य से भी उत्पन्न होते हैं। २७५. भन्ते! संज्ञी मनुष्य, जो पञ्चेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक-जीवों में उत्पन्न होने योग्य है, भन्ते! वह कितने काल की स्थिति वाले पंचेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक-जीवों में उत्पन्न होता है? गौतम! जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त की स्थिति वाले, उत्कृष्टतः तीन पल्योपम की स्थिति वाले पंचेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक-जीवों में उत्पन्न होता है। २७६. भन्ते! वे जीव एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं? लब्धि इसी संज्ञी मनुष्य के पृथ्वीकायिक-जीवों में उपपद्यमान प्रथम गमक की भांति वक्तव्य है (भ. २४/२०२,२०३) यावत्-भवादेश तक। काल की अपेक्षा जघन्यतः दो अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्टतः पृथक्त्व (यहां पृथक्त्व का अर्थ सात होता है) कोटि-पूर्व-अधिक-तीन-पल्योपम। (दूसरा गमक : औधिक और जघन्य) २७७. वही संज्ञी-मनुष्य जघन्य काल की स्थिति वाले पञ्चेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक-जीवों में उत्पन्न होता है, वही वक्तव्यता (भ. २४/२७६), केवल इतना विशेष है-(कायसंवेध)-काल
की अपेक्षा जघन्यतः दो अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्टतः चार-अन्तर्मुहूर्त-अधिक-चार-कोटि-पूर्व । (तीसरा गमक : औधिक और उत्कृष्ट) २७८. वही उत्कृष्ट काल की स्थिति में उत्पन्न संज्ञी-मनुष्य जघन्यतः तीन पल्योपम की स्थिति वाले, उत्कृष्टतः भी तीन पल्योपम की स्थिति वाले पंचेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक-जीवों के रूप में उत्पन्न होता है, वही वक्तव्यता (भ. २४/२६६), केवल इतना विशेष है-अवगाहनाजघन्यतः पृथक्त्व (दो से नौ)-अंगुल, उत्कृष्टतः पांच सौ धनुष। स्थिति-जघन्यतः पृथक्त्व(दो से नौ) मास, उत्कृष्टतः कोटि-पूर्व। इसी प्रकार अनुबन्ध भी। भव की अपेक्षा दो
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