Book Title: Bhagwati Sutra Part 02
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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श. २४ : उ. २० : सू. २७८-२८४
भगवती सूत्र भव-ग्रहण, काल की अपेक्षा जघन्यतः पृथक्त्व (दो से नौ)-मास-अधिक-तीन-पल्योपम, उत्कृष्टतः कोटि-पूर्व-अधिक-तीन-पल्योपम-इतने काल तक रहता है, इतने काल तक गति
-आगति करता है। (चौथा, पांचवां और छट्ठा गमक : जघन्य और औधिक, जघन्य और जघन्य, जघन्य
और उत्कृष्ट) २७९. वही अपनी जघन्य काल की स्थिति में उत्पन्न संज्ञी-मनुष्य-पञ्चेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक-जीवों में उत्पन्न होता है। जैसे संज्ञी-पञ्चेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक-जीव के पञ्चेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक-जीवों में उपपद्यमान जीव के मध्यवर्ती तीन गमकों में वक्तव्यता है (लब्धि भ. २४/२६७) वही वक्तव्यता इसके भी मध्य तीन गमकों में अविकल रूप में बतलानी चाहिए, केवल इतना विशेष है-परिमाण-उत्कृष्टतः संख्येय उत्पन्न होते हैं। शेष पूर्ववत् । (सातवां गमक : उत्कृष्ट और औधिक) २८०. वही अपनी उत्कृष्ट काल की स्थिति में उत्पन्न संज्ञी-मनुष्य-पञ्चेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक-जीवों में उत्पन्न होता है। वही प्रथम गमक की वक्तव्यता, केवल इतना विशेष है-अवगाहना-जघन्यतः पांच सौ धनुष, उत्कृष्टतः भी पांच सौ धनुष। स्थिति और अनुबन्ध-जघन्यतः कोटि-पूर्व, उत्कृष्टतः भी कोटि-पूर्व। शेष पूर्ववत् यावत् भवादेश तक, काल की अपेक्षा जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त-अधिक-कोटि-पूर्व, उत्कृष्टतः पृथक्त्व-कोटि-पूर्व- अधिक-तीन-पल्योपम-इतने काल तक रहता है, इतने काल तक गति-आगति करता है। (आठवां गमक : उत्कृष्ट और जघन्य) २८१. वही संज्ञी-मनुष्य जघन्य काल की स्थिति वाले पंचेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक-जीवों में उत्पन्न होता है। वही वक्तव्यता, केवल इतना विशेष है-काल की अपेक्षा जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त-अधिक-कोटि-पूर्व, उत्कृष्टतः चार-अन्तर्मुहूर्त-अधिक-चार-कोटि-पूर्व। (नवां गमक : उत्कृष्ट और उत्कृष्ट) २८२. वही संज्ञी-मनुष्य उत्कृष्ट काल की स्थिति वाले पंचेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक-जीवों में उत्पन्न होता है। जघन्यतः तीन पल्योपम की स्थिति वाले, उत्कृष्टतः भी तीन पल्योपम की स्थिति वाले पंचेन्द्रिय-तिर्यकयोनिक-जीवों में उपपन्न होता है। वही लब्धि सातवें गमक की भांति (भ. २४/२८०)। भव की अपेक्षा-दो भव-ग्रहण। काय की अपेक्षा जघन्यतः एक कोटि-पूर्व-अधिक-तीन-पल्योपम, उत्कृष्टतः भी एक कोटि-पूर्व-अधिक-तीन-पल्योपम-इतने काल तक रहता है, इतने काल तक गति-आगति करता है। तिरेपनवां आलापक : तिर्यञ्च-पञ्चेन्द्रिय में भवनपति-देवों का उपपात-आदि २८३. (भन्ते!) यदि देवों से उत्पन्न होते हैं तो क्या भवनपति-देवों से उत्पन्न होते हैं,? वाणमन्तर देवों से उत्पन्न होते हैं? ज्योतिष्क-देवों से उत्पन्न होते हैं? वैमानिक-देवों से उत्पन्न होते हैं?
गौतम! भवनपति-देवों से उत्पन्न होते हैं यावत् वैमानिक-देवों से भी उत्पन्न होते हैं। २८४. (भन्ते!) यदि भवनपति-देवों से उत्पन्न होते हैं तो क्या असुरकुमार-भवनपति-देवों
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