Book Title: Bhagwati Sutra Part 02
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
View full book text
________________
श. २४ : उ. २३,२४ : सू. ३२९-३३५
भगवती सूत्र में और तृतीय गमक की नवम में), केवल इतना विशेष है-स्थिति–जघन्यतः तीन पल्योपम, उत्कृष्टतः भी तीन पल्योपम। इसी प्रकार अनुबन्ध भी। शेष पूर्ववत्। इसी प्रकार अन्तिम तीन गमक ज्ञातव्य हैं, केवल इतना विशेष है-स्थिति और कायसंवेध यथोचित ज्ञातव्य है।
(पांचवां और छट्ठा गमक नहीं होने से) ये सात गमक हैं। पिचहत्तरवां आलापक : ज्योतिष्क-देवों में संख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी-तिर्यञ्च
-पञ्चेन्द्रिय-जीवों का उपपात-आदि ३३०. यदि संख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी-पञ्चेन्द्रिय-तिर्यग्योनिकों से ज्योतिष्क-देव के रूप में उपपन्न होते हैं? तो असुरकुमारों में उपपद्यमान संख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी-पञ्चेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक जीवों की भांति (भ. २४/१३१-१३३) नौ ही गमक वक्तव्य है, केवल इतना विशेष है-ज्योतिष्क-देवों की स्थिति और कायसंवेध यथोचित ज्ञातव्य है।
शेष निरवशेष पूर्ववत्। ३३१. यदि मनुष्यों से उपपन्न होते हैं (पृच्छा)? भेद उसी प्रकार यावत् (भ. २४/१३४
१३५)। छिहत्तरवां आलापक : ज्योतिष्क-देवों में असंख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी-मनुष्यों
(यौगलिकों) का उपपात-आदि ३३२. भन्ते! असंख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी-मनुष्य जो ज्योतिष्क-देव में उपपन्न होने योग्य है, भन्ते! वह जीव कितने काल की स्थिति वाले ज्योतिष्क-देवों में उपपन्न होता है? इसी प्रकार जैसे ज्योतिष्क-देव में उपपद्यमान असंख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी-पञ्चेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक जीवों के सात गमक बतलाए हैं, वैसे ही मनुष्यों के भी वक्तव्य हैं (भ. २४/३२४-३२९). केवल इतना विशेष है-अवगाहना का अन्तर-प्रथम तीन गमकों में अवगाहना जघन्यतः कुछ-अधिक-नौ-सौ-धनुष, उत्कृष्टतः तीन गव्यूत। मध्यवर्ती तीन गमकों में अवगाहना जघन्यतः कुछ-अधिक-नौ-सौ-धनुष, उत्कृष्टतः भी कुछ-अधिक-नौ-सौ-धनुष। अन्तिम तीन गमकों में अवगाहना जघन्यतः तीन गव्यूत, उत्कृष्टतः भी तीन गव्यूत। शेष निरवशेष पूर्ववत् वक्तव्य है यावत् कायसंवेध तक। सितंतरवां आलापक : ज्योतिष्क-देवों में संख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी-मनुष्यों का
उपपात-आदि ३३३. यदि संख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी-मनुष्यों से ज्योतिष्क-देव के रूप में उपपन्न होते हैं? संख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी-मनुष्यों के असुरकुमार-देव में उपपद्यमान की वक्तव्यता (भ. २४/१३९-१४२), वैसे ही नव गमक वक्तव्य हैं, केवल इतना विशेष है-ज्योतिष्क-देव की स्थिति और कायसंवेध यथोचित ज्ञातव्य हैं। शेष पूर्ववत् निरवशेष
वक्तव्य है। ३३४. भन्ते! वह ऐसा ही है। भन्ते! वह ऐसा ही है।
चौबीसवां उद्देशक ३३५. भन्ते! सौधर्म-देव कहां से उपपन्न होते हैं क्या नैरयिक से उपपन्न होते हैं? भेद ज्योतिष्क-उद्देशक (भ. २४/३२२,३२३) की भांति वक्तव्य हैं।
७७४